इस साल बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में जून –जूलाई में कम बारिश के चलते किसान खरीफ फसलों की खेती नही कर पाए हैं या अनियमित बारिश की वजह से किसानों की फसल खराब हो गई है या बुवाई नही कर पाए हैं. कम अवधि वाली चारे की फसल या सब्जियों के खेत खाली हो गए हैं तो इस वक्त तोरिया की ‘कैच क्रॉप’ के रूप में खेती कर खरीफ एवं रबी के मध्य में खेती कर अतिरिक्त आय ली जा सकती है. सितंबर माह में खेतों में फसल तोरिया की बुआई कर इस फसल को 80 से 90 दिनो में कटाई कर ली जाती है. इसके बाद नवंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर दिसंबर के पहले सप्ताह तक गेहूं और जौ की बुआई करके अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. बता दें कि कम समय में बढ़ने वाली फसल है. इस कम लागत कम समय में बेहतर मुनाफा दे जाती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आईएआरआई पूसा के एग्रोनॉमी विभाग के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के अनुसार किसी भी फसल की पैदावार का सीधा संबंध उसकी फसल अवधि से होता है. आज के समय में में किसान कम समय में तैयार होने वाली किस्मों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. एक साल में एक खेत में तीन- चार फसल लेने से किसानों का लाभ का दायरा बढ़ जाता है. दूसरी वजह है कि कम समय में पकने वाली किस्मों में जोखिम कम भी होता है. तोरिया कम समय में पकने वाली तिलहनी फसल है.इसको सितंबर के मध्य तक चारे की फसल या सब्जियों से खाली खेतों में कैच क्रॉप खेती करके अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं या जो किसान कम बारिश के चलते खरीफ फसलो की खेती नही कर पाए हैं वे भी सितम्बर में तोरिया की बुवाई करके अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं. आइए जानते हैं तोरिया की कम दिन में तैयार होने वाली किस्मों के बारे में-
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चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) कानपुर ने तोरिया की आजाद चेतना किस्म विकसित की है. इसको साल 2020 में रिलीज किया गया था. आजाद चेतना की उपज 6 क्विंटल प्रति एकड़ है. यह 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इसमें भी तेल की मात्रा 42.4 फीसदी तक हो सकती है. इस तोरिया की किस्म की समय से कटाई कर किसान गेहूं की बुवाई कर गेहूं की फसल से भी लाभ ले सकते हैं.
तोरिया की भवानी किस्म 80 से 85 दिन अवधि में पक जाती है. इनकी औसत उपज छह क्विंटल प्रति एकड़ है. इस किस्म को चन्दशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगकी विश्वविद्यालय कानपुर द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म से 6 से लेकर 7 कुंतल तक पैदावार ली जा सकती है. इसमें तेल का प्रतिशत 39 से लेकर 40 तक होता है. ये किस्म तोरिया –गेहूं फसल चक्र के लिए बेहतर है.
इस किस्म को गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि और प्रौद्योगकी विश्व विद्यालय द्वारा विकसित किया गया है. तोरिया की उत्तरा किस्म 93 से लेकर 101 दिन में पक जाती है. इस किस्म की पैदावार 5-6 कुंतल प्रति एकड़ है. इसमें तेल का प्रतिशत 41 तक होता है. इस किस्म की बुवाई कर देर से गेहूं की बुवाई किसान कर सकते हैं. इस किस्म को साल 2010 में रिलीज किया गया था.
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तोरिया की तपेश्वरी किस्म के फसल लगभग 80 से 90 दिन के बाद तैयार हो जाते हैं. इस किस्म का प्रति एकड़ उत्पादन लगभग 6 क्विंटल है.इस किस्म के बीजों में तेल की मात्रा 40 से 42 प्रतिशत तक पाई जाती है.इस किस्म को साल 1918 में रीलीज किया गया था.
पंत तोरिया 208 किस्मं साल 2017 में रीलीज किया गया था को गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि और प्रौद्योगकी विश्व विद्यालय पन्त नगर द्वार विकसित किया गया है . सिंचित क्षेत्र के लिए यह बेहतर किस्म है.इस किस्म से प्रति एकड़ 6 से 7 कुंतल तक पैदावार तक मिल जाती है. इसमे ते ल की मात्रा 42 प्रतिशत है. इस किस्म की फसल 90 मे दिन में तैयार हो जाती है .
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तोरिया के बीज की बुवाई के लिए प्रति एकड़ सवा किलो बीज की जरूरत होती है. तोरिया की बुआई लाइनों में 30 सेंटीमीटर का अंतर रखकर बीज को चार से पांच सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए. तोरिया एक तेल फसल है. इसे सल्फर की जरूरत है, इसलिए फॉस्फोरस की खाद में सिंगल सुपर फॉस्फेट मिलाएं, क्योंकि इसमें 12 प्रतिशत सल्फर भी होता है. अगर फॉस्फोरस के लिए डीएपी डालना हो तो सल्फर की पूर्ति के लिए आखिरी जुताई के समय प्रत्येक एकड़ में 100 किलोग्राम जिप्सम मिलाना चाहिए. बुआई के समय प्रति एकड़ 25 किलोग्राम यूरिया, 50 किलोग्राम सुपर फॉस्फेट और 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट डालें.
इस तरह जिन किसानों ने कम बारिश के चलते ख़रीफ़ और रबी के बीच अपने खेत को खाली छोड़ा है उन्हें तोरिया की फसल से कुछ हद तक लाभ मिल सकता है .
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