भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने 11 सितंबर को एक पत्र केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी जीनोम एडिटेड चावल (Genome Editing- GE) की दो नई किस्मेंके प्रति अपना विरोध व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि सरकार जल्द ही किसानों और ग्राहकों तक लाने की योजना बना रही है. जीन-संपादित (एडिटेड) चावल भारत के किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण के लिए कई खतरे लेकर आता है.
राकेश टिकैत ने आगे लिखा है कि भारतीय किसान यूनियन कई दशकों से जीएम फसलों के खतरों और दुष्प्रभावों को लेते हुए आवाज़ लगा रहा है. हम आपका धन्यवाद करते हैं कि आपने जीएम फसलों के खिलाफ बार-बार आवाज उठाई है. हालांकि आप इस बात में गलत हैं कि जीएम फसलों के कारण पैदावार बढ़ती है. चाहे आप जीएम सरसों का उदहारण देख लें, जिससे अधिक पैदावार वाली गैर जीएम किस्में भारत में आज भी हैं, या फिर कपास/सोयाबीन आदि में अधिकतर देश जिनकी भारत से अधिक पैदावार है, वह गैर जीएम किस्मों का प्रयोग कर रहे हैं, आप धर्म पाल जी, डॉ ऋछारिया और उनसे जुड़े कई शोधकर्ताओं के अध्ययन के आंकड़े देखें तो पाएंगे कैसे देसी बीजों आज से भी अधिक पैदावार दे पा रहे थे.
किसान नेता टिकैट ने कहा कि हम आपके जीनोम एडिटेड/सम्पादित धान की घोषणा का विरोध करते हैं. अगर ज़रूरत पढ़ी तो इसका सड़कों और खेतों में भी विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि आपको गुमराह किया गया है कि जीन एडिटिंग/संपादन सुरक्षित है. यह जीएम फसलों की नई पीढ़ी तकनीक ही है. विश्व भर देशों में जीन एडिटेड फसलों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो रहा है की जीनोम एडिटेड चावल जीएम तकनीक का एक नया अवतार है और उसमें भी वहीं खतरे हैं. यह निम्नलिखित हैं.
1. जीन एडिटिंग में भी जीएम फसलों की तरह बाहर के जीन का प्रयोग होता है;जीन एडिटेड/सम्पादित धान में भी हुआ है- इसमें बाहरी वायरस और बैक्टीरिया के जीन का प्रयोग किया गया है. हम यह कैसे मान लें कि उनका कोई प्रभाव नहीं पढ़ रहा हो और उसके कण पूरी तरह से हटा दिए गए हो.
2. जीन एडिटिंग में भी देसी बीज किस्मों के नुकसान होने का खतरा है; जैसे बीटी कपास में भी हुआ है- जीन एडिटेड/सम्पादित धान आसानी से देसी/जंगली धान कि किस्मों को प्रदूषित कर सकते हैं, जिससे हमारी धान की जैव विविधता को खतरा रहेगा. ऐसा ही नुकसान भारत की कपास किस्मों पर जीएम कपास के कारण हो चुका है.
3. जीन एडिटेड फसलों में भी जीएम फसलों की तरह जीन में दुष्परिणाम और गलत जगह बदलाव देखने को मिलते हैं- दुनिया भर में आ रहे परिणाम बताते कि जीन एडिटिंग/संपादन एक सटीक तकनीक नहीं है. इसके कारण अनचाहे परिणाम और गलत जगह बदलाव भी देखने को मिलते हैं.
4. चावल को भारतीय संस्कृति में अक्षत (जो टूटा हुआ न हो) के रूप में जाना जाता है और कई रीती-रिवाजों में वैसे ही प्रयोग में होता है, परन्तु जीन एडिटेड चावल का जीन तोड़ा हुआ है. यह क्षतिग्रस्त है और यह हमारे रीती-रिवाज़ों में उपयोग के लिए कारगर नहीं रहेगा.
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि जीन एडिटेड/सम्पादित धान को सूखे, खारी स्थितियों, अधिक पैदावार आदि के लिए लाया जा रहा है. किन्तु हमारे पास ऐसी अनेक देसी चावल की किस्में हैं जो यह
सब गुणवत्ता दे सकते है. आपको और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इन किस्मों को बढ़ावा देना चाहिए. आप इसमें बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े सवालों के बारे में अवगत हैं.
उन्होंने कहा कि यह सभी सवाल स्वतंत्र, रिटायर्ड वैज्ञानिकों द्वारा उठाए जा चुके हैं. अगर आपको और भारतीय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों को जीन एडिटेड/सम्पादित तकनीक (धान और अन्य फसलों) पर इतना ही भरोसा है, तो कृपा उसकी जैव सुरक्षा का पूर्ण ब्यौरा और दस्तावेज को सार्वजनिक करें.
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