सरसों प्रमुख तिलहन फसल है. हम खाद्य तेलों के बड़े आयातक हैं इसलिए सरसों की खेती किसानों के लिए अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा कमाई देने वाली फसल मानी जा सकती है. इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही कोई बड़ा रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. सरसों की खेती में पानी की कम आवश्यकता होती हैं. इसलिए इसकी खेती नेचर के लिहाज से भी अच्छी है. अक्टूबर से इसकी बुवाई शुरू कर सकते हैं. उससे पहले किसान इसकी अच्छी किस्मों का चयन कर लें. अगेती बुवाई ज्यादा उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है.
सरसों के तेल का लगभग सभी घरों में उपयोग किया जाता है. इस वजह से इसका रेट अच्छा मिलता है. बाजार में इसकी हमेशा मांग बनी रहती हैं. ऐसे में किसान इसकी खेती कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. इसकी खेती राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड, बिहार और पंजाब में की जाती है.
सरसों की बुवाई का उपयुक्त समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक माना जाता है. किसानों को खेती में लाभ हो इसलिए सरसों की कई किस्में विकसित की गई हैं. हमेशा ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों का चयन करें. अपने क्लाइमेटिक जोन के हिसाब से किस्मों का चयन करें, वरना नुकसान हो सकता है.
सरसों की यह किस्म अच्छी मानी जाती है. इसकी बुवाई सितंबर महीने में की जा सकती है. सरसों की इस किस्म की औसत उपज 19.93 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है. इसके बीजों से 41.5 प्रतिशत तक तेल की मात्रा प्राप्त की जा सकती है.यह किस्म बुवाई के 107 दिन में पककर तैयार हो जाती है. सरसों की पूसा सरसों 28 किस्म की खेती राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के मैदानी क्षेत्रों में की जाती
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सरसों की ये किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के इलाकों के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इस किस्म की फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है.अक्टूबर में बुवाई करने पर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है. इसमें तेल की मात्रा 37 से 40 प्रतिशत तक होती है. यानी तेल की रिकवरी अच्छी है.
इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा, दिल्ली ने विकसित किया है. ये किस्म अगेती बुवाई के लिए भी उपयुक्त है. फसल 125 से 140 दिनों में पककर तैयार होती है.इस किस्म की खेती से तेल की मात्रा 38 से 45 प्रतिशत तक मिलती है. इस किस्म की उत्पादन क्षमता 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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सरसों की पूसा महक किस्म उत्तर पूर्वी और पूर्वी राज्यों में सितंबर की बुवाई के लिए अधिक उपयुक्त पाई गई है. इसकी किस्म की खेती राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम, उडीसा, झारखंड में की जा सकती है. इस किस्म से 17.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इस किस्म के बीजों में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है. इस किस्म को पककर तैयार होने में करीब 118 दिन का समय लगता है.
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