भारत समेत दुनिया भर के कई देशों में पपीते की सफलतापूर्वक खेती की जाती है. वहीं पपीता एक ऐसा फल है, जिसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है. किसान इसकी खेती कम लागत में आसानी से कर सकते हैं. भारत में सबसे ज्यादा पपीते की खेती आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात तथा मध्यप्रदेश में की जाती है. मांग ज्यादा होने की वजह से पपीते स्थानीय स्तर पर भी हाथों-हाथ बिक जाता है. वहीं पपीते का उपयोग दवाओं से लेकर कॉस्मेटिक्स बनाने तक में भी होता है. इसलिए दवा और कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट निर्माण करने वाली कंपनियां भी किसानों से संपर्क कर इसे खरीद लेती हैं.
अगर खेती की बात करें तो पपीते की खेती के लिए 10 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. इसके अलावा, पौधे का विकास सही तरीके से हो सके उसके लिए दोमट या बलुई मिट्टी ज्यादा उपयुक्त होती है. वहीं अगर बात पपीते की फसल में लगने वाले कीट एवं रोग की करें तो वो निम्नलिखित हैं-
एफिड कीट: इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं और पौधे में मौजेक रोग को बढ़ावा देने का काम करते हैं.
प्रबंधन तकनीक: मिथाइल डिमेटोन या डायमिथोएट की 2 मिली मात्रा/ ली. पानी में मिलाकर पौध रोपण के बाद जरूरत के अनुसार 15 दिन के अंतर से पत्तियों पर छिड़काव करें.
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लाल मकड़ी: लाल मकड़ी, पपीते की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों में से एक है. फसल पर इसके प्रभाव से फल खुरदुरे और काले रंग के हो जाते हैं. वहीं पत्तियों पर आक्रमण की वजह से पीली फफूंद पड़ जाती है.
प्रबंधन तकनीक: पौधे पर लाल मकड़ी का आक्रमण दिखते ही प्रभावित पत्तियों को तोड़कर दूर गढढे में दबा दें. वहीं, अनुशंसित कीटनाशक को पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
तना गलन (तने तथा जड़ के गलने की बीमारी): पपीते की फसल में तना गलन रोग के कारण पौधे के तने का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है. वहीं, धीर-धीरे यह गलन जड़ तक पहुंच जाती है. इस कारण पौधा सूख जाता है.
प्रबंधन तकनीक: तना गलन रोग अन्य पौधों में नहीं पकड़ें उसके लिए जल निकास में सुधार करें तथा रोग ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर हटा दें. उसके बाद पौधों पर अनुशंसित फफूंदनाशक को पानी में मिलाकर पौध पर छिड़काव करें तथा ड्रेंचिंग करें.
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डम्पिंग ऑफ (आर्द गलन): यह रोग पपीते में नर्सरी अवस्था में आता है. वहीं, आर्द गलन रोग की वजह से पौधे जमीन की सतह के पास से गलकर मरने लगते हैं.
प्रबंधन तकनीक: आर्द गलन रोग से बचने के लिए बुवाई से पहले पपीते के बीजों का उपचार करें.
लीफकर्ल: लीफकर्ल रोग एक विषाणु जनित रोग है जो कि सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है. इस रोग के कारण पत्तियां मुड़ जाती हैं. इस रोग से 70-80 प्रतिशत तक फसल का नुकसान हो जाता है.
प्रबंधन तकनीक: पपीते के स्वस्थ पौधों का रोपण करें. रोगी पौधों को उखाड़कर खेत से दूर गड्ढे में दबाकर नष्ट कर दें. इसके अलावा, अनुसंशित फफूंदनाशक का प्रयोग करें.
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