Sugarcane Farming: शरद कालीन गन्ने की खेती के लिए बेहतरीन किस्में, जानिए क्या है खासियत और कितनी मिलेगी उपज?

Sugarcane Farming: शरद कालीन गन्ने की खेती के लिए बेहतरीन किस्में, जानिए क्या है खासियत और कितनी मिलेगी उपज?

गन्ने की अच्छी उपज से मिलने वाले मुनाफे से किसानों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. इसके लिए जरूरी है कि गन्ने की नई और उन्नतशील किस्मों का चयन करें क्योकि भारत में गन्ने का औसत उत्पादन दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है. इसका मुख्य कारण गन्ने की किस्मों की कम उत्पादकता है.

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Sugarcane Farming: शरद कालीन गन्ने की खेती के लिए बेहतरीन किस्में, जानिए क्या है खासियत और कितनी मिलेगी उपज?अधिक उपज के लिए गन्ना की अच्छी किस्मों की करें बुवाई

खेती में गन्ने की फसल को नकदी फसल माना जाता है क्योंकि गन्ना को महज खेती की एक फसल न बनाकर बिजनेस बना गया है. हालांकि गन्ना सब्र का फल माना जाता है क्योंकि इसकी उपज आने में तकरीबन 10 से 12 महीनों से ज्यादा समय लगता है. इसके साथ ही इसमें लगने वाली लागत भी ज्यादा होती है. ज़ाहिर है इतना सब्र रखने का फल मीठा ही होना चाहिए. यही वजह है कि गन्ना मीठा होता है. गन्ने की अच्छी उपज से मिलने वाले मुनाफे से किसानों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. इसके लिए जरूरी है कि गन्ने की नई और उन्नतशील किस्मों का चयन करें क्योकि भारत में गन्ने का औसत उत्पादन दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है. इसका मुख्य कारण गन्ने की किस्मों की कम उत्पादकता है. चीनी का उत्पादन भी इस पर निर्भर करता है. इसलिए, गन्ने की बेहतरीन किस्मों का चयन करके अच्छी उपज  का आधार रख सकते हैं.

शरद कालीन गन्ने  की कब करें बुवाई?

कई बार गन्ने की फसल में रोग लगने या खराब किस्म से खेती करने के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. यह जरूरी है कि गन्ने की खेती आधुनिक और अच्छी किस्मों का चयन करके की जाए क्योकि गन्ने की खेती में बेहतर किस्में चुनाव कर अच्छी उपज का आधार रख सकते हैं. फसल के रोग बीमारी के नुकसान से भी बच सकेंगे. शरद कालीन गन्ने की खेती के लिए जरूरी है गन्ने की बेहतरीन किस्मों का चयन किया जाय. शरदकालीन गन्ने की खेती के लिए 15 सितंबर से 30 नवंबर  सबसे तक उपयुक्त समय होता  है.

गन्ने की बेहतर किस्में 

गन्ने पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड में चीनी उत्पादन के लिए कई किस्मों की खोज की गई जिससे गन्ने के उपज को बढ़ाया जा सकता है. सलाह में कहा जाता है कि शीतकालीन गन्ने की बुआई की तैयारी करें, अनुशंसित प्रजातियों के स्वस्थ बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करें और बीज किसी गन्ना सस्थान और गन्ना मिलों के फार्म से प्राप्त करें. जहां तक संभव हो पेड़ी गन्ने के बीज का प्रयोग ना करें.

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सीओ 0238  (करण-4)

गन्ने की किस्म Co 0238 यानी करण 4 को आईसीएआर के गन्ना प्रजनन संस्थान अनुसंधान केंद्र, करनाल और भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान कोयंबटूर द्वारा विकसित किया गया है. इसे साल 2008 में विकसित किया गया था और 2009 में जारी किया गया. इसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अधिसूचित किया गया है. इसकी उपज क्षमता 32.5 टन प्रति एकड़ है और इसकी रिकवरी दर 12 प्रतिशत से अधिक है. इस किस्म की खासियत है कि पानी की कमी और जल भराव दोनों स्थितियों में बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है. बेहतर पैदावार और अधिक रिकवरी के कारण इस किस्म की खेती सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में की जा रही है, जबकि पंजाब में 70 फीसदी किसान इस किस्म की खेती कर रहे हैं. 

गन्ने की किस्म CO-0118  (करण-2)

गन्ने की CO-0118 यानी करन-2  किस्म लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है. यह किस्म साल 2009 में जारी की गई थी. इसके गन्ने लंबे, मध्यम, मोटे और भूरे बैंगनी रंग के होते हैं. CO 0118 में हालांकि रस की गुणवत्ता इससे बेहतर है. लेकिन सीओ 0238, गन्ने की उपज थोड़ी कम है. इसकी प्रति एकड़ उपज 31 टन प्रति एकड़ है. साल 2016 के बाद इस किस्म की खेती रकबा लगातार बढ़ रहा है और अधिकांश चीनी मिल  CO 0238  को बाद खेती के लिए दूसरी किस्म  CO 0118 की खेती की सिफारिश की जा रही है. इस किस्म को गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल द्वारा विकसित किया गया है.. यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए भी स्वीकृत है.

सीओ-0124 (करण-5)

गन्ने की किस्म सीओ 0124 गन्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान, करनाल और गन्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान, कोयंबटूर द्वारा संयुक्त रूप से विकसित गई किस्म है. इसे वर्ष 2010 में जारी किया गया था और इसकी उपज क्षमता 30 टन प्रति एकड़ है. यह सिंचित अवस्था में मध्यम देर से पकने वाली किस्म है. यह लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है. यह किस्म जलभराव और भराव दोनों स्थितियों में बेहतर उपज देती है.

सीओ -0237 (करण-8)

सीओ 0237 किस्म को गन्ना प्रजनन संस्थान क्षेत्रीय केंद्र करनाल द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म साल 2012 में जारी की गई थी. यह एक अगेती किस्म है. इसकी औसत उपज 28.5 टन प्रति एकड़ है. इसकी लाल सड़न रोग के प्रति रोगरोधी किस्म है. यह किस्म जल जमाव के प्रति भी सहनशील है. इस किस्म को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य उत्तर प्रदेश के लिए अनुमोदित किया गया है.

सीओ 05011 (करण-9) 

सीओ 05011 किस्म 2012 में जारी की गई थी. गन्ने की यह किस्म मध्यम लंबी, मध्यम मोटी, बैंगनी रंग के साथ हरे रंग की और आकार में बेलनाकार होती है. यह किस्म लाल सड़न और उकठा प्रतिरोधी है. इस किस्म की औसत उपज 34 टन प्रति एकड़ है. इसे आईसीएआर-गन्ना प्रजनन संस्थान क्षेत्रीय केंद्र, करनाल और भारतीय गन्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य उत्तर प्रदेश के लिए अनुमोदित किया गया है.

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उन्नत किस्म के स्वस्थ और शुद्ध बीज ही चुनें

गन्ने का बीज लगभग 8 माह या उससे कम पुराना हो तो अंकुरण अच्छा होता है. बीज ऐसे खेत से लें जो बीमारियों और कीटों से मुक्त हो और जिसमें पर्याप्त मात्रा में उर्वरक और पानी दिया गया हो. हर 4-5 साल में बीज बदलें क्योंकि समय के साथ रोग और कीट की संवेदनशीलता बढ़ जाती है. एक किस्म के स्थान पर गन्ना की चार से पांच किस्मों की बुवाई करें जिससे गन्ना के खेती में किस्मों का संतुलन बनाया जा सके.


 

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