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kinnow farming: यूपी में पंजाब के मुकाबले बेहद कम मिल रहा किन्नू का भाव, परेशानी में किसान

kinnow farming: यूपी में पंजाब के मुकाबले बेहद कम मिल रहा किन्नू का भाव, परेशानी में किसान

संतरे का हमशक्ल कहे जाने वाले किन्नू की खेती से किसानों को 3 से 4 वर्षों में अच्छा फायदा हो रहा है. पंजाब के मुकाबले यूपी का किन्नू साइज में छोटा है और मिठास में कम है. इसी वजह से पंजाब के किन्नू के मुकाबले यूपी के किन्नू का दाम भरपूर नहीं मिल रहा है.

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उत्तर प्रदेश में किसानों का किन्नू की खेती के प्रति लगातार मोह बढ़ रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, एटा, कासगंज जिला में 1500 से ज्यादा हेक्टेयर क्षेत्रफल में किन्नू की खेती होने लगी है. संतरे का हमशक्ल कहे जाने वाले किन्नू की खेती से किसानों को 3 से 4 वर्षों में अच्छा फायदा भी हो रहा है. उद्यान विभाग की मानें तो उत्तर प्रदेश में किन्नू से होने वाली कमाई का आंकड़ा 200 करोड़ को पार कर चुका है. पिछले सीजन में 50 हजार टन किन्नू की पैदावार हुई जो काफी अच्छी है जबकि 2021-22 में आगरा का लोकल किन्नू 18 से 22 रुपये किलो के रेट पर बिक रहा था. 2022-23 में किसानों को 45 रुपये किलो तक का दाम मिला है. लेकिन पंजाब के मुकाबले यूपी का किन्नू साइज में भी छोटा है और मिठास में भी पीछे है.

इसी वजह से पंजाब के किन्नू के मुकाबले यूपी के किन्नू का दाम भरपूर नहीं मिल रहा है. भारतीय मृदा अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय कार्यालय लखनऊ के निदेशक डॉ. अखिलेश दुबे ने बताया कि यूपी की जलवायु किन्नू के अनुकूल नहीं है. इस वजह से यहां के किन्नू का आकार छोटा और स्वाद में खटास भरा है. 

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यूपी में किन्नू अनुकूल जलवायु नहीं

यूपी के किसान भले ही इन दिनों किन्नू की खेती की तरफ तेजी से अपना कदम बढ़ा रहे हैं लेकिन कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां की जलवायु किन्नू और संतरा के लिए अनुकूल नहीं है. किन्नू की सबसे ज्यादा खेती इन दिनों पंजाब में हो रही है. वहां का किन्नू आकार में बड़ा और रंग भी अच्छा है. यहां तक कि स्वाद में भी संतरे की तरह है जिसकी वजह से वहां किसानों को अच्छा मूल्य मिल रहा है जबकि यूपी में अनुकूल जलवायु न होने के कारण किन्नू का न तो रंग पूरी तरीके से अच्छा है बल्कि आकार में भी छोटा है.

इसी वजह से यूपी के किन्नू का भाव मंडी में पंजाब के मुकाबले कम मिल रहा है. भारतीय मृदा अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ अखिलेश दुबे ने किसान तक को बताया कि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में किन्नू की खेती के लिए अनुकूल जलवायु है जबकि यूपी में नहीं है. यहां किन्नू की जगह किस मर्कट की खेती कर सकते हैं. यह इसी प्रजाति का एक फल है जो यहां की जलवायु के लिए अनुकूल है. 

बढ़ रहा है किन्नू का उत्पादन

यूपी में जलवायु भले किन्नू के अनुकूल नहीं है लेकिन उत्पादन में कोई कमी नहीं है. यहां का किन्नू भले ही आकार में छोटा और स्वाद में खटास लिए हुए है. लेकिन किसानों को उत्पादन भरपूर मिल रहा है. 2022-23 में यूपी में 50 हजार टन किन्नू का उत्पादन हुआ जबकि क्षेत्रफल 1500 हेक्टेयर रहा, जबकि 2022-23 में किन्नू की बिक्री से 200 करोड़ रुपये की कमाई हुई.

मोसंबी के लिए सही जलवायु

उत्तर प्रदेश की जलवायु मोसंबी की खेती के लिए पूरी तरह से अनुकूल है. जो भी किसान मोसंबी की खेती कर रहे हैं उन्हें अच्छा फायदा भी हो रहा है. भारतीय मृदा अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ अखिलेश दुबे को पूसा में नींबू वर्गीय फलों पर काम करने का लंबा अनुभव है. उन्होंने बताया कि यूपी की जलवायु में मोसंबी की खेती सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है. किसान किन्नू की बजाय अगर मोसंबी की खेती करते हैं तो उन्हें ज्यादा उत्पादन मिलेगा. मोसंबी की खेती में लागत भी कम है और यहां की मिट्टी में भी बड़ी आसानी से उगाई जा सकती है.