कश्मीर घाटी में इन दिनों सेब बागवानों के लिए सबसे मुसीबत का दौर चल रहा है. यहां के बागों में लहलहाने वाले रसीले सेब, जो देश भर में अपनी मिठास के लिए मशहूर हैं, लेकिन आज सड़कों पर सड़ने को मजबूर हो गए हैं. इसका कारण है कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली एकमात्र जीवनरेखा, राष्ट्रीय राजमार्ग-44 (एनएच-44) पर लगा हुआ हफ्तों लंबा जाम. इस जाम ने न केवल फलों को ट्रकों में कैद कर दिया है, बल्कि उन लाखों लोगों की उम्मीदों पर भी ताला लगा दिया है जिनकी रोजी-रोटी सेब की खेती से चलती है.
कश्मीर की अर्थव्यवस्था में सेब का योगदान किसी से छिपा नहीं है. भारत के कुल सेब उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा इसी वादी से आता है. यह केवल एक फल नहीं, बल्कि लाखों किसानों, मजदूरों, ट्रांसपोर्टरों और व्यापारियों के लिए साल भर की कमाई का जरिया है. अगस्त का मध्य महीना सेब की फसल के लिए सबसे अहम होता है, जब बागवान अपनी मेहनत के फल को तोड़कर मंडियों की ओर भेजते हैं. लेकिन इस साल, मौसम की मार ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. भारी बारिश और भूस्खलन के कारण एनएच-44 लगभग 14 अगस्त से ही बुरी तरह प्रभावित है, जिससे हजारों ट्रक रास्ते में ही फंस गए हैं.
सड़कों पर सेब के बक्सों के ढेर सड़ रहे हैं. यह सिर्फ फल की बर्बादी नहीं, बल्कि एक किसान की साल भर की मेहनत की बर्बादी है. परेशान बागवान पिछले कई दिनों से सरकार की नाकामी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि सेब का सीजन बहुत छोटा होता है. अगर इसे सही समय पर बाजार नहीं मिला, तो यह कूड़े के भाव भी नहीं बिकता है. फल व्यवसाय से जुड़े लोगों का अनुमान है कि राजमार्ग बंद होने के बाद से अब तक कश्मीरी बागवानों को 1000 करोड़ रुपये नुकसान होने का अनुमान है.
यह आंकड़ा हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रहा है. जिन किसानों ने कर्ज लेकर अपनी फसल तैयार की थी, वे अब भविष्य को लेकर चिंतित हैं. कई बागवानों के पास इतने बड़े पैमाने पर फलों को कोल्ड स्टोरेज में रखने की सुविधा भी नहीं है, जिसके कारण उन्हें अपनी आंखों के सामने अपनी मेहनत को सड़ते हुए देखना पड़ रहा है.
इस संकट का असर केवल कश्मीर तक सीमित नहीं है. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे बड़े राज्यों की मंडियों में कश्मीरी सेब की आपूर्ति लगभग ठप हो गई है. इससे व्यापारियों की चिंता भी बढ़ गई है. उन्हें डर है कि अगर जल्द ही हालात नहीं सुधरे, तो सेब की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिससे आम उपभोक्ता की जेब पर बोझ पड़ेगा.
इसके साथ ही, व्यापारियों को एक और डर सता रहा है. अगर राजमार्ग पूरी तरह से खुल जाता है, तो रुके हुए हजारों ट्रक एक साथ मंडियों में पहुंचेंगे. अचानक इतनी बड़ी मात्रा में सेब के बाजार में आने से कीमतें गिर जाएंगी, जिससे उन किसानों को भी नुकसान होगा जिनका माल सही-सलामत पहुंच गया है. यह स्थिति "आगे कुआं, पीछे खाई" जैसी है.
पिछले एक महीने में भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं ने श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग को भारी क्षति पहुंचाई है, विशेषकर चेनानी, उधमपुर, नाशरी और बनिहाल के हिस्सों में. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से भी संपर्क साधा है. केंद्र सरकार ने जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने का आश्वासन दिया है.
फिलहाल, यातायात को सुचारू करने के लिए एक अस्थायी दो-लेन का डायवर्जन बनाया गया है, जिससे कुछ हद तक राहत मिली है. लेकिन यह विशाल समस्या के लिए एक छोटा समाधान है. जब तक राजमार्ग को स्थायी रूप से ठीक नहीं किया जाता, तब तक कश्मीर के सेब बागवानों पर संकट के बादल मंडराते रहेंगे. यह संकट सिर्फ एक फसल का नहीं, बल्कि कश्मीर की पूरी अर्थव्यवस्था और उससे जुड़े लाखों लोगों के भविष्य का है.
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