महाराष्ट्र में प्याज और कपास किसानों के साथ-साथ सरसों और सोयाबीन का दाम भी नहीं मिल रहा है. दोनों तिलहन फसलों के दाम काफी कम हो गए हैं, जिससे किसान परेशान हैं. राज्य में सरसों की खेती बहुत कम होती है, लेकिन सोयाबीन की बड़े पैमाने पर खेती होती है. महाराष्ट्र सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, इसलिए काफी किसानों की आजीविका इसकी खेती पर निर्भर है. राज्य की कई मंडियों में दोनों फसलों का दाम एमएसपी से कम चल रहा है. जबकि खाद्य तेलों का आयात हो रहा है. किसानों का कहना है कि जिन फसलों का दाम ज्यादा होना चाहिए था उनका दाम एमएसपी से भी बहुत कम मिल रहा है.
महाराष्ट्र एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि 18 अप्रैल को नागपुर की उमरेड मंडी में सिर्फ 3 क्विंटल सरसों की आवक हुई उसके बाद भी न्यूनतम दाम सिर्फ 3600 रुपये क्विंटल रहा. अधिकतम दाम 3650 और औसत दाम 3625 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज किया गया था. इसी प्रकार 16 अप्रैल को बुलढाणा जिले के शेगांव में सिर्फ 5 क्विंटल सरसों की आवक हुई. इसके बावजूद न्यूनतम दाम सिर्फ 3500, अधिकतम 5005 और औसत दाम 4200 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि इसका एमएसपी 5650 रुपये क्विंटल है.
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महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक प्रदेश है.इसके बावजूद यहां किसानों को एमएसपी तक नहीं मिल पा रहा है. यहां की लासलगांव विंचुर मंडी में 18 अप्रैल को सिर्फ 476 क्विंटल सोयाबीन की आवक हुई. यहां पर सोयाबीन का न्यूनतम दाम सिर्फ 3000 रुपये क्विंटल रहा. अधिकतम दाम 4513 और औसत दाम सिर्फ 4450 रुपये क्विंटल रहा. जबकि एमएसपी 4600 रुपये क्विंटल है. सोयाबीन का दाम ज्यादातर मंडियों में एमएसपी से कम है. सोयाबीन का दाम बहुत कम होने की वजह से किसानों को बहुत नुकसान हो रहा है, क्योंकि इसकी खेती ज्यादा होती है.
राज्य के किसानों का कहना है कि 2021 में उन्हें सोयाबीन का सबसे ज्यादा 11 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक का दाम मिला था. उसके बाद कभी इतना पैसा नहीं नहीं मिला. किसानों का कहना है कि दाम 7000 से ज्यादा मिले तब फायदा होगा. महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के चेयरमैन पाशा पटेल के अनुसार महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन की लागत प्रति क्विंटल 6234 रुपये आती है. यह लागत चार कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा दी गई रिपोर्ट पर आधारित है. इसलिए इससे ज्यादा दाम मिलने पर ही फायदा है.
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