चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर ने टमाटर किसानों के लिए एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल की है. विश्वविद्यालय ने बैक्टीरियल विल्ट रोग से बचाव करने वाली टमाटर की दो नई किस्में विकसित की हैं — “हिम पालम टमाटर-1” और “हिम पालम टमाटर-2”.
कुलपति प्रो. नवीन कुमार ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इन किस्मों का विकास विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग द्वारा किया गया है और ये किस्में उच्च उत्पादकता के साथ-साथ बैक्टीरियल विल्ट के प्रति पूर्णतः प्रतिरोधी हैं. यह रोग विशेष रूप से हिमाचल के निचले और मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में टमाटर की खेती के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है.
क्या है बैक्टीरियल विल्ट?
बैक्टीरियल विल्ट एक गंभीर रोग है जो 10-15 दिनों में पौधों को पीला और मुरझाया बना देता है. यह बीमारी बीज और मिट्टी के माध्यम से फैलती है और गर्म और नम जलवायु में तेजी से फैलती है. इसके कारण किसान टमाटर, शिमला मिर्च और लाल मिर्च की खेती से किनारा कर चुके हैं, क्योंकि कोई रासायनिक इलाज कारगर नहीं साबित हुआ है.
इन दोनों किस्मों को 4 मई 2024 को विश्वविद्यालय की कृषि अधिकारियों की कार्यशाला में अनुमोदित किया गया है और अब प्रस्ताव को राज्य किस्म विमोचन समिति (SVRC) को भेजा गया है. स्वीकृति के बाद, बीजों की आपूर्ति हिमाचल के किसानों को की जाएगी, जिससे रोग-प्रभावित क्षेत्रों में भी कमर्शियल टमाटर की खेती संभव हो सकेगा.
कुलपति प्रो. नवीन कुमार ने सब्जी विज्ञान और पुष्प विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक टीम को इस लगभग दो दशक लंबे अनुसंधान कार्य के लिए बधाई दी और उम्मीद जताई कि ये किस्में किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ राज्य की सब्जी अर्थव्यवस्था को मजबूती देंगी.
किसानों के लिए टमाटर के ये दोनों किस्में वरदान साबित होंगी क्योंकि विल्ट रोग से प्रतिरोधी होने के चलते फसल नुकसान नहीं होगा. किसानों का खाद और स्प्रे पर खर्च भी घटेगा. किसान इस विल्ट रोग से सबसे अधिक परेशान रहते हैं क्योंकि कुछ ही दिनों में टमाटर की फसल बर्बाद हो जाती है. नई किस्में इस रोग से मुक्त हैं और जल्द उत्पादन भी देती हैं.
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