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MSP Guarantee: सरकार के एमएसपी प्रस्ताव से फसल मूल्य गारंटी का लक्ष्य हासिल करने में मदद की संभावना

MSP Guarantee: सरकार के एमएसपी प्रस्ताव से फसल मूल्य गारंटी का लक्ष्य हासिल करने में मदद की संभावना

किसान यूनियन के नेताओं ने एमएसपी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. मगर किसान सरकार से टकराव की अपेक्षा तर्कसंगत दबाव के साथ नए प्रस्ताव के जरिए अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं. अगर कृषि उत्पादों की बेहतर मार्केटिंग और किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाने में नाफेड सीसीआई  के जरिये पायलट प्रोजेक्ट की तरह ले रही है, जो अच्छा सकारात्मक कदम हो सकता है.

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एमएसपी गारंटी एमएसपी गारंटी

केंद्र सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों से पांच सालों तक पांच फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद करने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर फेडरेशन (NCCF), नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (NAFED) और कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) के माध्यम से पांच साल के लिए कपास, मक्का, अरहर/तूर, मसूर और उड़द खरीदने का प्रस्ताव है. लेकिन किसान यूनियन के नेताओं ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. मगर किसान सरकार से टकराव की अपेक्षा तर्कसंगत दबाव के साथ नए प्रस्ताव के जरिए अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं. अगर कृषि उत्पादों की बेहतर मार्केटिंग और किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए एनसीसीएफ, नेफेड, सीसीआई  के जरिये पायलट प्रोजेक्ट की तरह ले रहे हैं, तो अच्छा सकारात्मक कदम  हो सकता है.

अगर सरकार अपनी संस्थाओं के जरिए कृषि उपज मार्केटिंग कराती है, तो किसानों के विश्वास जीत कर सरकार किसानों के विकास के लिए कई बदलाव कर सकती है. दूसरी ओर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को धान, गेहूं के फसल चक्र के बराबर प्रति हेक्टेयर कपास, मक्का, अरहर/तूर, मसूर, और उड़द किसानों को लाभ मिले, इसके साथ उन क्षेत्रों के छोटे, मझोले और  वर्षा आधारित क्षेत्रों के राज्य के किसानों के लिए एक बेहतर अवसर प्रदान कर सकता है. सिंचाई वाले क्षेत्रों में धान गेहूं फसल चक्र के कारण भूमिगत जल नीचे जा रहा है और अधिक रासायनिक खाद और कीटनाशकों से जमीन खराब हो रही हैं, इस समस्या को सुधारने का मौका मिल सकता है.

सरकार के प्रस्ताव से परहेज क्यों?

कम वर्षा और जहां सिंचाई के पानी की कमी है, उन क्षेत्रों में खेती करने वाले राज्यों के किसानों में सबसे अधिक परेशान महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के किसान हैं. इनकी आर्थिक स्थिति खेती करने वाले राज्यों के किसानों की तुलना में अधिक उत्तम नहीं है, लेकिन उनकी फसलें उचित मूल्य पर नहीं बिक पाती हैं. इससे उन्हें अधिक कर्ज या परेशानी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में इन फसलों से एमएसपी पर खरीदारी का प्रस्ताव सही समझ कर किसानों को आगे बढ़ने में परहेज नहीं करना चाहिए क्योंकि एक दिन में सिस्टम नहीं बन सकता. अगर सिस्टम बनाने के लिए सरकार मंशा साफ दिखा रही है, तो परहेज भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इस प्रस्ताव से कई रास्ते खुल सकते हैं. 

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सरकार पर भी दबाव बनेगा कि आपके अनुसार कहने पर हमने फसलें उगाई थीं, आप खरीदारी करें. सरकार जिन संस्थाओं को जिम्मेदारी दे रही है, उन पर भी बेहतर मार्केटिंग और बेहतर चेन बनाने का दबाव बनेगा क्योंकि सरकार की ज्यादा कृषि संस्थाएं केवल किसानों की खेती में लगने वाली लागत वस्तुओं को उपलब्ध कराने पर काम करती हैं. लेकिन किसानों को उपज के बेहतर दाम मिलें, इसके लिए कृषि की सरकारी सस्थाओं को आगे आना होगा.

किसान फसल बदलें तो लाभ की गांरटी होनी चाहिए 

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को धान गेहूं फसल चक्र के बराबर प्रति हेक्टेयर कपास, मक्का, अरहर/तूर, मसूर, और उड़द की फसलों से लाभ मिले, उसके लिए नीतियां बनानी पड़ेंगी. इन फसलों में धान गेहूं फसल की तुलना में रासायनिक उर्वरक प्रति हेक्टेयर कम लगता है और रासायनिक उर्वरक पर सरकार सब्सिडी देती है. कपास, मक्का, अरहर/तूर, मसूर, और उड़द के किसान अगर धान गेहूं के किसानों की तुलना में कम रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, तो कम उपयोग किए गए रासायनिक उर्वरक की सब्सिडी का लाभ इन फसलों के किसानों को मिलना चाहिए. दूसरा, इन फसलों में धान गेहूं की तुलना में कम पानी लगता है, जिससे भूमिगत जल कम ह्रास होता है. इन फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन राशि भी दी जानी चाहिए.

गन्ना फसल मूल्य की गारंटी के लिए बेहतर उदाहरण

देश में गन्ना फसल की राजनीति के बावजूद कृषि बाजार व्यवस्था में गन्ना बिक्री एक बेहतर उदारण है जहां चीनी मिलें  सरकार द्वारा निर्थारित मूल्य नियम के अनुसार गन्ना की खरीदारी करती हैं और किसानों को गन्ना मूल्य मिलता है. इसमें सहकारी और निजी कंपनियां की शूगर मिलें शामिल हैं. इसमें किसान को उत्पाद मूल्य की गारंटी भी रहती है. जिन फसलों को सरकार ने एमएसपी पर खरीदने के लिए किसान यूनियनों के सामने प्रस्ताव रखा है, उन फसलों के लिए गन्ना बेहतर उदारण है.

शुगर मिलें और किसान दोनों संतुष्ट दिखाई दे रहे हैं. गन्ना फसल की तरह ही दूसरी फसलों के लिए भी इस तरह के सिस्टम की शुरुआत की जा सकती है. इससे मार्केटिग में सरकार को भी परेशानी नहीं होगी. इस प्रक्रिया की शुरुआत मक्के की फसल से की जा सकती है, क्योंकि मक्के की फसल का उपयोग विभिन्न उत्पादों में होता है और अब मक्के से इथेनॉल के उत्पादन की बात हो रही है. इस तरह गन्ने का बेहतर मूल्य दिलवाने में इथेनॉल अहम रोल बनता जा रहा है. इसके बाद धीरे-धीरे दूसरी फसलों के लिए इस तरह का सिस्टम विकसित किया जा सकता है.

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टकराव की जगह समाधान के लिए पहल जरूरी

किसानों की शिकायत है कि सरकार दलहन और तिलहन उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहन देती है, लेकिन खरीदारी की बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण बाजार में एमएसपी से कम दामों पर बेचना पड़ता है. दूसरी ओर सरकारें चुनाव के समय वादा तो करती रही हैं, लेकिन निभाती नहीं हैं. किसान यूनियन के नेताओं का कहना है कि सरकार आंदोलन के बिना किसानों के दर्द को नहीं समझती और सत्ता पाने के बाद तो किसानों की समस्याओं पर ध्यान भी नहीं दिया जाता. मगर इस समस्या का हल करने के लिए सरकार ने जो पहल की है, किसान यूनियन के नेताओं को टकराव की जगह समाधान के लिए इस पर विचार करना चाहिए.