दलहन और तिलहन की खेती में उत्तर प्रदेश आत्मनिर्भर बने, इसके लिए लगातार प्रयास भी जारी हैं. अगले कुछ वर्षों में प्रदेश दलहन एवं तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा. मांग एवं आपूर्ति में संतुलन होने से न तो आम आदमी के थाल की दाल पतली होगी न ही तेल में उबाल आएगा. कृषि विभाग ने इस बाबत चार साल (2023-24 से 2026-27) की मुकम्मल कार्ययोजना तैयार की है. इस दौरान योजना पर करीब 236 करोड़ रुपये खर्च होंगे. इसके तहत दलहनी एवं तिलहनी फसलों के बीज के मिनी किट का फ्री वितरण, प्रगतिशील किसानों के यहां डिमांस्ट्रेशन (प्रदर्शन) और किसान पाठशालाओं के जरिए विशेषज्ञों द्वारा खेती के उन्नत तौर-तरीकों की जानकारी देना शामिल है.
उल्लेखनीय है कि हाल ही में पहली बार केंद्र सरकार ने इसके लिए बतौर पायलट प्रोजेक्ट कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए करार किया है. झारखंड, बिहार, तमिलनाडु और गुजरात के कुछ किसानों से ये करार केंद्र की संस्था नेशनल कॉपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन (एनसीसीएफ) ने किया है. प्रोजेक्ट सफल रहा तो अन्य राज्यों में भी इसे विस्तार दिया जाएगा. दलहनी फसलों में सर्वाधिक खपत अरहर के दाल की होती है, इसलिए केंद्र सरकार ने अरहर की खेती के लिए 35 और उर्द की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 18 जिले चयनित किए हैं.
योगी सरकार पहले से दलहनी फसलों के प्रोत्साहन के लिए बुंदेखंड को फोकस कर दलहन ग्राम योजना चला रही है. करीब दो साल पहले केंद्र सरकार ने खेतीबाड़ी में भी एक जिला एक उत्पाद योजना लागू की थी. इसमें एक फसल के लिए एक या एक से अधिक जिलों को भी शामिल किया था. इसके तहत चने की फसल के लिए चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर और सोनभद्र को चुना गया था.
योजना के तहत प्रदेश के अलग-अलग कृषि जलवायु के अनुरूप तय समयावधि में संबंधित क्षेत्र के किसानों को दलहनी एवं तिलहनी फसलों के बीज के निःशुल्क मिनी किट दिये जा रहे हैं. इस क्रम में दलहनी फसलों के लिए उर्द, मूंग, अरहर, चना, मटर, मसूर का चयन किया गया है. तिलहनी फसलों में तिल, मूंगफली, राई/सरसों और अलसी के बीज शामिल हैं.
विश्व बैंक की मदद से चलने वाली यूपी एग्रीज योजना भी दलहन और तिलहन में प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार होगी. खासकर, झांसी और इससे सटे इलाकों में मूंगफली की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए क्लस्टर विकसित करने की योजना है.
किसान देखकर इन फसलों की उन्नत खेती के बाबत सीखें इसके लिए प्रगतिशील किसानों के फील्ड में प्रदर्शन भी होंगे. साथ ही किसान पाठशाला में भी एक्सपर्ट किसानों को रोग एवं कीट प्रतिरोधी उन्नत प्रजाति, खेत की तैयारी से लेकर बोआई के तरीके, फसल संरक्षण के उपाय एवं भंडारण के बारे में बताएंगे. इसका मकसद रकबे के साथ उसी अनुपात में उत्पादन बढ़ाना है.
अपने दूसरे कार्यकाल के तुरंत बाद (अप्रैल 2022) सीएम योगी ने एक समीक्षा बैठक में निर्देश दिया था कि अगले पांच साल में प्रदेश को दलहन और तिलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुकम्मल योजना तैयार करें. तभी से इस पर काम भी शुरू हो गया था. इसके लिए प्रमाणित एवं आधारीय बीजों का आवंटन बढ़ा दिया गया था. किसानों को रबी-ख़रीफ की मुख्य फसलों के साथ दलहन एवं तिलहन के इंटरक्रॉपिंग, बार्डर लाइन सोईंग और असमतल भूमि पर सूक्ष्म सिंचाई के साधनों के दलहन एवं तिलहन की फसलों की बोआई के लिए जागरूक किया गया. अब सरकार इस बाबत एक मुकम्मल कार्ययोजना लेकर आई है।
फिलहाल खाद्य तेलों की आवश्यकता के सापेक्ष 30-35 फीसदी और दलहन की आवश्यकता के सापेक्ष प्रदेश में 40-45 फीसदी ही उत्पादन हो रहा है. जब भी दलहन, तिलहन की मांग और आपूर्ति थोड़ी गड़बड़ होती है तो अधिक आबादी के कारण भारत से ही सर्वाधिक मांग निकलती है. इस मांग के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यातक देश भाव चढ़ा देते हैं. आबादी एवं खपत के नाते उत्तर प्रदेश इससे खासा प्रभावित होता है. बढ़े हुए दाम मीडिया की सुर्खियां बनते हैं. दलहनी और तिलहनी फसलों में आत्मनिर्भर होने के बाद मांग एवं आपूर्ति में बैलेंस होने पर ऐसा नहीं हो सकेगा.
आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. ऐसे में यहां कि मांग और आपूर्ति का देश ही नहीं दुनिया के बाजारों पर भी असर पड़ता है। ऐसे में किसी भी योजना के केंद्र में उत्तर प्रदेश जरूर रहता. ऐसे में उसका लाभ भी उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक मिलता है.
7 साल में तिलहन की उपज में दोगुने से अधिक की वृद्धि हुई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017-2018 में तिलहन की उपज 13.62 मिट्रिक टन थी, जो 2023-2024 में बढ़कर 28.15 मिट्रिक टन हो गई। इस साल (2024-205) के आंकड़े आने पर इसमें और बढ़त संभव है.
यह सब मुमकिन हुआ योगी सरकार तिलहन के उत्पादन में वृद्धि की प्रतिबद्धता के चलते. साथ ही इसमें केंद्र सरकार का भी लगातार सहयोग रहा. तिलहन के मामले में 2026-2027 तक उत्तर प्रदेश आत्मनिर्भर हो जाए, यह यूपी सरकार का लक्ष्य है. इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इन फसलों की खरीद के साथ सरकार हर साल मिनी किट के रूप में किसानों को बेहतर उपज वाले उन्नत किस्म के निःशुल्क बीज भी मुहैया करवा रही है. इस क्रम में पिछले साल 10797.2 कुंतल बीज किसानों को दिए गए थे. इस साल 111315.6 कुंतल बीज मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया है.
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