कपास किसानों को दोहरी मारइस साल खरीफ सीजन में किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. करीब एक महीने पहले जब फसल की कटाई शुरू हुई, तभी लगातार हुई बारिश ने कपास (कॉटन), बाजरा, मूंग, मक्का और धान जैसी फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया. किसानों को उम्मीद थी कि सरकार उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर राहत देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
हरियाणा के हिसार, सिरसा और फतेहाबाद क्षेत्र को राज्य का “कॉटन बेल्ट” कहा जाता है, लेकिन इस बार यहां के कपास किसानों को भारी नुकसान हुआ. बारिश से कपास की गुणवत्ता खराब हो गई और मंडियों में दाम गिर गए.फतेहाबाद के खजूरी गांव के किसान ओम प्रकाश ने बताया कि उन्होंने 7 एकड़ में कपास बोई थी, लेकिन बाजार में उन्हें सिर्फ 6,500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला, जबकि सरकारी एमएसपी 28 एमएम के लिए 8,910 रुपये और 27 एमएम के लिए 7,860 रुपये तय है. ढांगर गांव के अनिल कुमार ने बताया कि कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) की अनुपस्थिति के कारण उन्हें निजी व्यापारियों को सस्ते दामों पर फसल बेचनी पड़ी. इस साल हरियाणा में करीब 3.8 लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई हुई थी.
हिसार, भिवानी, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और झज्जर जिलों के किसानों ने बाजरा उगाया था, लेकिन खरीद एजेंसियों ने रंग बदलने के कारण फसल खरीदने से इनकार कर दिया. अधिकारी कह रहे हैं कि वे केंद्र सरकार से नई गुणवत्ता मानक (specifications) का इंतजार कर रहे थे, लेकिन कोई निर्देश नहीं मिला. खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अनुसार, अब तक केवल 146.40 मीट्रिक टन बाजरा 111 किसानों से खरीदा गया है, जबकि कुल 5,89,278.95 मीट्रिक टन मंडियों में पहुंच चुका है.
सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए भावांतर भरपाई योजना (BBY) के तहत 575 रुपये प्रति क्विंटल की अतिरिक्त राशि देने की घोषणा की, जिससे कुल भाव 2,200 रुपये प्रति क्विंटल होना था. लेकिन हकीकत यह है कि किसानों को सिर्फ 1,800 रुपये से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिला. सूत्रों के मुताबिक, इस योजना के तहत फर्जी पंजीकरण कर करोड़ों रुपये की भ्रष्टाचार की घटनाएं सामने आई हैं.
सरकारी एजेंसियों ने अभी तक मूंग की एक दाना तक खरीद नहीं की है, जबकि मक्का की सिर्फ 2.4 मीट्रिक टन खरीद एक ही किसान से की गई है. किसानों को मजबूर होकर निजी व्यापारियों को औने-पौने दामों पर फसल बेचनी पड़ रही है.
धान खरीद को लेकर भी कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक 59 लाख मीट्रिक टन धान मंडियों में पहुंचा है, जो पिछले साल से 5 लाख मीट्रिक टन ज्यादा है. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि खरीद का आंकड़ा (61,09,787.27 मीट्रिक टन), मंडी में आए धान (59,03,015.94 मीट्रिक टन) से भी ज्यादा दर्ज किया गया है. इससे सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठ रहे हैं.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. राम कंवर ने कहा कि “सरकारी आंकड़ों में जो गड़बड़ियां हैं, वे खरीद प्रणाली में गहराई तक फैले भ्रष्टाचार को दिखाती हैं.” खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री से इस पर संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
किसानों की मेहनत के बावजूद इस खरीफ सीजन में उन्हें उचित दाम नहीं मिले. कपास, बाजरा, मूंग, मक्का और धान-सभी फसलों की खरीद में या तो देरी हुई या भ्रष्टाचार के आरोप लगे. सरकार द्वारा दिए गए वादे “हर दाना खरीदा जाएगा” अब किसानों के लिए सिर्फ एक अधूरा भरोसा बनकर रह गए हैं.
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