फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की लीगल गारंटी के मुद्दे पर किसान आंदोलन पार्ट-2 पिछले 169 दिन से जारी है. सरकार कह रही है कि किसी भी सूरत में वो एमएसपी की लीगल गारंटी नहीं देगी और किसान कह रहे हैं कि वो फसलों के उचित दाम का हक लेकर रहेंगे. इस बीच लोकसभा और राज्यसभा में लगभग हर विपक्षी सांसद एमएसपी को लेकर सवाल उठा रहा है. जिससे आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद हैं. हालांकि सरकार एमएसपी पर सीधे-सीधे कुछ बोलने की बजाय कांग्रेस की उन गलतियों को गिना रही है जिसमें उसने कहा था कि लागत पर 50 फीसदी मुनाफा भी नहीं दिया जा सकता. यही नहीं सड़क से लेकर संसद तक में उस एमएसपी कमेटी के बारे में भी सवाल उठ रहे हैं जिसे केंद्र ने दो साल पहले गठित किया था और वो इतने वक्त के बाद भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है.
किसान एमएसपी की लीगल गारंटी मिलने के फायदे गिना रहे हैं और सरकार अपने समर्थक अर्थशास्त्रियों के जरिए आम जनता के बीच ऐसी धारणा बनाने की कोशिश में जुटी हुई है कि किसानों को फसलों के दाम की गारंटी मिली तो महंगाई बढ़ जाएगी और सरकारी खजाने पर बोझ पड़ेगा. कुल मिलाकर यह मुद्दा किसानों की नाक और सरकार की मूछ का सवाल बना हुआ है. सवाल यह है कि ऐसा कौन कर्मचारी है जो अपनी पूरी सैलरी नहीं लेना चाहेगा और ऐसा कौन किसान है जो अपनी फसलों का उचित दाम नहीं चाहेगा. किसान वैसे ही सरकार द्वारा तय किए फसलों का पूरा दाम चाहते हैं जैसे कि सरकारी कर्मचारी सरकार द्वारा तय किए गए वेतन का पाई-पाई वसूलते हैं.
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बीते लोकसभा चुनाव में फसलों के दाम के मुद्दे पर ही बीजेपी को भारी सियासी नुकसान झेलना पड़ा है. हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक में उसकी सीटें कम हो गई हैं. इसके बावजूद सरकार किसान आंदोलन पार्ट-2 को सिर्फ पंजाब-हरियाणा के मुट्ठी भर लोगों का आंदोलन मानकर आगे बढ़ रही है. यह सरकार का अपना निर्णय है कि वो किसानों को गंभीरता से ले या न ले. लेकिन, इस बात पर सवाल तो पूछा ही जाएगा कि दो साल पहले गठित एमएसपी कमेटी ने अब तक क्या किया? इस कमेटी की उपलब्धि क्या है?
सरकार ने बताया है कि 22 जुलाई 2022 से अब तक कमेटी की 6 बैठकें हो चुकी हैं. इसके अतिरिक्त, कमेटी की उप-समितियों की 35 बैठकें हुई हैं. कमेटी के सदस्य गुणवंत पाटिल ने 'किसान तक' से बातचीत में कहा कि नई सरकार के गठन के बाद कमेटी की कोई बैठक नहीं हुई है. हम लोग जल्द से जल्द इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपने की कोशिश करेंगे.
कमेटी गठन के नोटिफिकेशन में कहीं भी 'एमएसपी गारंटी' जैसा कोई शब्द इस्तेमाल नहीं किया गया है. कृषि राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने एक लिखित सवाल के जवाब में 30 जुलाई को लोकसभा में इस कमेटी को लेकर जानकारी दी. उन्होंने कहा, "सरकार प्रतिबद्ध है कि एमएसपी का पूरा लाभ देश के किसानों तक पहुंचे. इसीलिए सरकार द्वारा देश के किसानों के लिए एमएसपी की व्यवस्था को और अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने पर सुझाव देने के लिए एक कमेटी गठित की गई है."
इसके अतिरिक्त, इस कमेटी को कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) को अधिक स्वायत्तता देने और इसको अधिक वैज्ञानिक बनाने के उपायों की व्यावहारिकता पर भी सुझाव देना है. यह कमेटी प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण के विषयों पर भी काम कर रही है.
एमएसपी को लेकर कमेटी बनाने की घोषणा 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ ही की गई थी. लेकिन आंदोलनकारी कुछ लिखित चाहते थे. जब 9 दिसंबर 2021 को तत्कालीन कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने किसान संगठनों को एक पत्र जारी किया तब जाकर आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर से वापस अपने घरों को गए थे.
इस घोषणा के करीब आठ महीने बाद 12 जुलाई, 2022 को कमेटी के गठन का नोटिफिकेशन आया था. हालांकि, सरकार ने इस कमेटी का चेयरमैन उन्हीं संजय अग्रवाल को बना दिया, जिनके केंद्रीय कृषि सचिव रहते तीन कृषि कानून लाए गए थे और 13 महीने लंबा किसान आंदोलन चला था. अग्रवाल इस महत्वपूर्ण कमेटी का चेयरमैन रहते हुए ही इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) के सहायक महानिदेशक के तौर पर भी काम कर रहे हैं. यह एक स्वायत्त गैर-लाभकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है. ऐसे में सवाल यह है कि वो किसके हितों की रक्षा करेंगे?
यही नहीं, आंदोलनकारी किसानों का आरोप है कि इस कमेटी में सरकार के कई घोर समर्थकों, किसानों का विरोध करने वालों और बीजेपी नेताओं को भी जगह दी गई है. इसलिए इस कमेटी से उन्हें कोई खास उम्मीद नहीं है. रिपोर्ट आ भी जाएगी तो वो किसानों को दाम मिलने की गारंटी नहीं देगी. इस कमेटी में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा यानी एसकेएम से तीन नाम मांगे थे, लेकिन उन्होंने नाम नहीं दिए. इन्हीं आरोपों के साथ ही एसकेएम का कोई भी धड़ा इस कमेटी में आज तक शामिल नहीं हुआ.
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