UP पुलिस की नौकरी छोड़ खेत की मेड़ पर शुरू की अरहर की खेती, पढ़िए पूर्वांचल के इस किसान की सफल कहानी

UP पुलिस की नौकरी छोड़ खेत की मेड़ पर शुरू की अरहर की खेती, पढ़िए पूर्वांचल के इस किसान की सफल कहानी

अरहर की एक प्रजाति 120 से 140 दिनों में तैयार हो जाती है. इस प्रजाति की बुआई जुलाई माह में की जाती है और नवंबर के अंतिम सप्ताह और दिसंबर माह में कटाई हो जाती है.

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UP पुलिस की नौकरी छोड़ खेत की मेड़ पर शुरू की अरहर की खेती, पढ़िए पूर्वांचल के इस किसान की सफल कहानीगोरखपुर के प्रगतिशिल किसान अविनाश कुमार (Photo-Kisan Tak)

Dal Farming: दालों की खेती के बारे में बात करें तो भारत में अरहर दाल (Arhar Cultivation) बड़े पैमाने पर उगाई जाती है. वहीं पूर्वांचल के भी किसान अब अरहर की खेती कर मोटा मुनाफा कमा रहे है. इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के रहने वाले अविनाश कुमार खेती की मेड़ पर अरहर की खेती कर हर साल लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं. इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से बातचीत में अविनाश ने बताया कि कुल 11 एकड़ में अरहर की खेती कर रहे है. एक एकड़ में 27-30 हजार रुपये की बचत हो जाती है. यानी 3-3.50 लाख रुपये सालाना आय हो रही है. उन्होंने बताया कि घर के गोबर का कंपोस्ट खाद बनाकर अरहर की खेती में प्रयोग करने से लागत कम मुनाफा अधिक होगा.

आपको बता दें कि गोरखपुर के प्रगतिशिल किसान अविनाश कुमार औषधीय पौधों की खेती करते हैं. साथ ही कृषि के क्षेत्र में विभिन्न फसलों के पैदावार पर शोध करते रहते हैं. इसी क्रम में अभी वह शबला सेवा संस्थान के सहयोग से अरहर की दो प्रजाति की खेती कर रहें हैं. अरहर की एक प्रजाति 120 से 140 दिनों में तैयार हो जाती है. इस प्रजाति की बुआई जुलाई माह में की जाती है और नवंबर के अंतिम सप्ताह और दिसंबर माह में कटाई हो जाती है.

आमतौर पर पूर्वाचल और बिहार में अरहर की खेती में आठ से नौ माह का समय लगता है. इस प्रजाति की खेती करने से आधा समय में फसल तैयार हो जाती है. साथ ही इस फसल की कटाई के बाद दूसरी फसल की खेती कर सकते हैं. अविनाश कुमार कहते हैं कि इस प्रजाति का बीज मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र से लाया गया है.

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उन्होंने किसान भाईयों से अपील करते हुए कहा कि अरहर की दूसरी प्रजाति की अपने खेत के मेड़ पर कर सकते हैं. इसकी खेती करने से किसानों को अतिरिक्त लाभ होगा. क्योंकि खेत में धान की फसल या अन्य फसल की खेती कर खेत के मेड़ पर अरहर की खेती कर आय में बढ़ोतरी करना संभव है. इसकी अवधि करीब आठ माह है. एक पौधा में करीब पांच किलोग्राम का फलन है. अधिक भी फलन संभव है.

25 कृषि विश्वविद्यालय का किया दौरा

अविनाश ने आगे बताया कि दोनों अरहर की प्रजाति की खेती प्राकृतिक विधि से करने पर मुनाफा अधिक होता है. वहीं लागत शून्य लगती है. उन्होंने कहा, दुनिया का 85% अरहर उत्पादन भारत में ही होता है. प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पोषक तत्वों से भरपूर अरहर को दालों का राजा भी कहते हैं. अविनाश बताते हैं कि बचपन से उनका रुझान खेती-किसानी तरफ रहा है. इसलिए अब तक देश के 80 कृषि विज्ञान केंद्र और 25 कृषि विश्वविद्यालय का दौरा करके खेती के नई-नई तकनीक की जानकारी ली. अविनाश मूल रूप से बिहार मधुबनी के रहने वाले हैं. पर उनका जन्म गोरखपुर में हुआ. 1998 में यूपी पुलिस की नौकरी ज्वाइन की. इसके बाद 2005 में नौकरी छोड़कर खेती में आ गए. 

कम लागत और आमदनी ज्यादा

गोरखपुर के सफल किसान अविनाश कुमार ने बताया कि सह-फसल के रूप में अरहर की खेती करने पर यह 5 साल तक किसानों को कम खर्च में दोगुना लाभ कमा कर देती है. अरहर के साथ ज्वार, बाजरा, उड़द और कपास की खेती कर सकते हैं. अरहर खुद तो पोषण का खजाना होती ही है. साथ ही मिट्टी को भी पोषण प्रदान करती है. अरहर के उत्पादन की बात करें तो करीब 1 हेक्टेयर उपजाऊ और सिंचित भूमि से 25-40 क्विंटल तक उपज ले सकते हैं. वहीं कम पानी वाले इलाकों में भी अरहर 15-30 क्विंटल तक उत्पादन दे देती है. यही कारण है कि प्रमुख दलहनी फसल होने के साथ-साथ इसे नकदी फसल भी कहते हैं. 


 

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