भारत खाद्य तेलों का बड़ा आयातक भी है और तिलहन फसलों का निर्यातक भी है. अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ ने चालू वित्त वर्ष में तिलहनों का निर्यात 10 से 15 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया है. देसी तिलहनों के निर्यात कारोबार से जुड़े व्यापारियों ने बताया कि तिलहन निर्यातकों को इस समय दक्षिण पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका से अच्छे ऑर्डर मिल रहे हैं. वित्त वर्ष 2022-23 में तिलहन निर्यात 20 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 1.33 अरब डॉलर (10,900 करोड़ रुपये) हो गया है. लेकिन, अब इस पर रोक लगाने की जरूरत है. महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने इसकी वजह बताई है.
ठक्कर ने कहा कि सरकार एक तरफ बड़े पैमाने पर निकृष्ट दर्जे के तिलहन और खाद्य तेलों को आयात कर रही है तो दूसरी तरफ देश में पैदा होने वाले पौष्टिक एवं स्वास्थ्य के लिए लाभदायक तिलहनों को दूसरे देशों को निर्यात करवा रही है. भारत से मुख्य तौर पर मूंगफली, तिल, सोयाबीन, रायडा एवं सूरजमुखी के बीज निर्यात किये जाते हैं. निर्यातकों ने कहा कि इस साल अब तक ऑर्डर में तेजी आई है. इस साल भी निर्यात में ऊंची बढ़त देखने को मिलेगी. इस वर्ष तिलहन का रकबा काफी बढ़ गया है. इससे उत्पादन भी बढ़ेगा. उत्पादन बढ़ने से निर्यात भी बढ़ेगा.
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लेकिन, यह थोड़ा रुक कर सोचने का भी वक्त है. क्योंकि हम पाम ऑयल के रूप में अपने देश में बहुत ही खराब तेल मंगाकर लोगों को खिला रहे हैं. जिससे लोगों की सेहत खराब हो रही है. दूसरी ओर अच्छे देसी तेल वाली उपज दूसरे देशों को बेच दे रहे हैं. साल 2020-21 में, भारत का खाद्य तेल आयात बिल एक साल पहले के 71,625 करोड़ रुपये की तुलना में बढ़कर 1,17,075 करोड़ रुपये हो गया था. पिछले साल 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये इस मद में खर्च किए गए.
ठक्कर का कहना है कि यह चिंतन का विषय है कि क्या जो देश हमारे यहां से देसी तिलहन खरीद रहे हैं वो पाम ऑयल नहीं मंगाकर खा सकते. दरअसल, हमारी पुरानी चीजों के फायदे और लोगों को पता हैं, बस हम खुद भूल गए हैं. भारत इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, चीन, फिलीपींस और यूरोपीय संघ को तिलहन निर्यात करता है. तिलहनों के कुल निर्यात में मूंगफली और तिल की हिस्सेदारी 80 से 85 फीसदी है. हम इंडोनेशिया, मलेशिया से पाम ऑयल मंगा रहे हैं और इन दोनों देशों को अपने देसी तिलहन बेच रहे हैं.
ठक्कर ने बताया कि इस वक्त सबसे ज्यादा खाद्य तेल हम इंडोनेशिया और मलेशिया से मंगा रहे हैं. यहां से हमारे पास पाम ऑयल आ रहा है. जबकि, रूस और यूक्रेन से हम सूरजमुखी का तेल खरीद रहे हैं. इसी तरह अर्जेंटीना से सोयाबीन ऑयल मंगाया जा रहा है. दूसरी ओर, हमारे यहां के किसानों को प्रमुख तिलहनी फसल सरसों का सही दाम तक नहीं मिल रहा है. इस समय सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5450 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि किसानों को 4000 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल का ही भाव मिल रहा है. उसके बाद भी हम खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर होने का सपना देख रहे हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर तिलहनों के कुल खेती क्षेत्र में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 34.64 प्रतिशत है. क्योंकि यहां पर सोयाबीन और सरसों दोनों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है. महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत की है. यह सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक है. गुजरात की 13.53 प्रतिशत, राजस्थान की 11.43 प्रतिशत, कर्नाटक की 5.04 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश की 5.02 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश की 2.66 प्रतिशत, तेलंगाना की 1.74 प्रतिशत और तमिलनाडु की 1.21 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
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