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Cactus Farming : सूखे इलाकों के लिए वरदान है कैक्टस, जानें इस लाभकारी पौधे की खेती का राज और मुनाफा

Cactus Farming : सूखे इलाकों के लिए वरदान है कैक्टस, जानें इस लाभकारी पौधे की खेती का राज और मुनाफा

कैक्टस की बिना कांटे वाली कई किस्में विकसित की गईं हैं. इन्हें आप गाय-भैसों और भेड़-बकरियों को खिलाकर उनकी सेहत बेहतर करने के साथ ही दूध उत्पादन मात्रा बढ़ सकते हैं. इसकी खेती के लिए सिंचाई की जरूरत नहीं होती है और यह कम उपजाऊ बलूई मिट्टी में भी ये आसानी से भरपूर उपज वाली फसल साबित होती है.

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कैक्टस सुखे एरिया के लिए बेहतर हरा चारा, ,फोटा सभार - बीएफ पूणे कैक्टस सुखे एरिया के लिए बेहतर हरा चारा, ,फोटा सभार - बीएफ पूणे

शहर-कस्बों में लोग बड़े शौक से अपने गमलों में कैक्टस यानि नागफनी का पौधा लगाते हैं. ये बस शौक की चीज नहीं है, बल्कि रेगिस्तानी इलाकों में भी उग जाने वाले इस पौधे को ऊंट बड़े चाव से खाते हैं. इसी को देखकर अब बिना कांटे वाली इसकी ऐसी कई किस्में विकसित की गईं हैं जो गाय-भैसों और भेड़-बकरियों को खिलाई जा सकती है. नागफनी पौष्टिक तत्वों से भरी होती है, जिसे चारे के रूप में खाकर पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर होता है और दूध की मात्रा भी बढ़ जाती है. नागफनी को अब बड़े पैमाने पर उपजाया जा रहा है. इसकी खासियत ये है कि इसके लिए सिंचाई की जरूरत नहीं और कम उपजाऊ बलूई मिट्टी में भी ये आसानी से भरपूर उपज देता है. ऐसी पौष्टिक चारे वाली नागफनी की खेती आप कैसे करें? ताकि दुधारू पशुओं के आहार को लेकर आप निश्चिंत हो सकें. आइये समझते हैं.

पशुओं के लिए बेहद पौष्टिक आहार 

कैक्टस के पौधे सूखे में जीवित रहने के लिए अद्वितीय कौशल होते हैं, आमतौर पर कैक्टस को बेकार पौधा माना जाता है, लेकिन किसान इस पौधे से अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. क्योंकि कैक्टस में महत्वपूर्ण खनिज और पोषण तत्वों की भरपूर मात्रा होने से यह एक पूर्ण आहार स्रोत है,कैक्टस का उपयोग पशुओं के खिलाने के लिए बेहद पौष्टिक आहार है. शोध में देखा गया है कि जानवर इसे आसानी से खा लेते हैं और पाचन में कोई दिक्कत नहीं होती है. इतना ही नहीं, गर्मी के दिनों में इसे जानवरों को खिलाने से उन्हें गर्मी और डिहाइड्रेशन से बचाया जा सकता है. कैक्टस के खाने से दूध उत्पादन और पशुओं का विकास अच्छा होता है .

सुखे और बंजर के लिए बहुउपयोगी पौध

कैक्टस से प्राप्त बायोमास को विभिन्न उत्पादों में बदलकर विभिन्न उत्पादों के लिए एक स्रोत बना रहा है, जैसे कि मुरब्बा, जूस, अमृत, कैंडी, मादक पेय, अचार, सॉस, शैंपू, साबुन और लोशन आदि. किसानों के लिए यह अच्छी आय जरिया भी बन रहा है. इसकी खेती में किसानों को ऊर्जा और पानी की बचत होती है. कैक्टस के पौधे बड़ी मात्रा में बायोमास पैदा करते हैं, जिससे किसानों को खेतों से बेहतर उपज प्राप्त होती है. इससे साथ ही कैक्टस से प्राप्त बायोमास को विभिन्न उत्पादों में बदलकर विभिन्न उत्पादों के लिए एक स्रोत बना रहा है यानी किसान कच्चे माल के रूप में नागफनी की खेती कर मुनाफा कमा सकते हैं. पिछले महीने ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने एक सेमिनार में वाटरशेड परियोजनाओं में हरित हरियाली के लिए कैक्टस की खेती को बढ़ावा देने पर बल दिया था.

पशुओं को कितना खिला सकते हैं कैक्टस ?

डेयरी पशुओं और ग्रामीण विकास पर कार्य करने वाली बाएफ पूना नाबार्ड के साथ मिलकर एक परियोजना चला रही है, जिसमें किसान वर्तमान में अपनी बकरियों, भेड़ों, गायों और भैंसों को खिलाने के लिए कैक्टस क्लैडोड का उपयोग कर रहे हैं. बाएफ पूना के अनुसार वयस्क बकरियां प्रतिदिन 3-4 किलोग्राम कैक्टस स्वेच्छा से खा लेती हैं, जबकि दूध देने वाली गायें प्रतिदिन मोटे चारे के साथ 7-8 किलोग्राम कैक्टस को खिला सकती हैं. कैक्टस को खिलाने से पशुओं के शरीर के वजन और दूध उत्पादन में बेहतर वृद्धि हुई है.

बिना कांटे वाली कैक्टस की किस्में

कैक्टस मुख्य रूप से इंडिया में कैक्टस 1270, कैक्टस 1271 टेक्सास 1308 है. इसके अलावा अपुंटिया फिकस-इंडिका ( Apuntia Ficus-Indica) जिसे कैक्टस नाशपाती (Cactus pear) और इंडियन फिग (भारतीय अंजीर) यानी नागफनी कहा जाता है. इन प्रजातियों में कांटे नहीं होते हैं और इनकी खेती के लिए बहुत कम पानी की जरूरत होती है. इसलिए इसकी खेती रेगिस्तान की बंजर भूमि में भी अच्छी तरह से की जा सकती है. 

कैक्टस की खेती कैसे करें?

भारत में वर्षा-आधारित विशाल क्षेत्रों में कैक्टस को पानी की न्यूनतम उपलब्धता के साथ उगाया जा सकता है. देश भर के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उपलब्ध रेगीस्तान, बंजर भूमि, और खारी मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है. कैक्टस की खेती से हरे चारे, सामुदायिक बायोगैस, बायो सीएनजी, बायो लेदर, और फार्मास्युटिकल और औद्योगिक उत्पादों जैसे कई उपयोग हो सकते हैं. कैक्टस की खेती जून-नवम्बर  बुवाई तक की जा सकती है और इसे क्लैडोड के माध्यम से बोया जा सकता है. खेत में 60 से 80 सेंटीमीटर गहरी जुताई के बाद प्रति एकड़ 6 टन कम्पोस्ट खाद डालना चाहिए. इसकी खेती के लिए 72 किलो यूरिया, 40 किलो डीएपी, 15 किलो एमओपी की आवश्यकता होती है. कैक्टस के पौधे को एक मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए और पौधे के बीच की दूरी को 40 सेंटीमीटर रखना चाहिए. पौधे को गड्ढा में लगाने पर ध्यान देना चाहिए, ताकि पौधा ठीक से जमीन में स्थिर रहे. पौधे 5-6 महीने में एक मीटर तक बढ़ जाते हैं और इसके बाद तने को काटना चाहिए. चारे के लिए नियमित रूप से 6 महीने के अंतराल पर कटाई की जा सकती है, जिससे हर साल प्रति एकड़ 20 टन हरा चारा मिल सकता है. 

जानकारी के लिए यहां संपर्क करें

कैक्टस की खेती के लिए आइजीएफआरई झांसी, सीआईएसएच बीकानेर, और काजरी जोधपुर से संपर्क करके इसकी प्रजातियां और पौधे के बारे में जानकारी लेकर वहां से इसके पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं. इसके अलावा बाएफ पूना से संपर्क करके इसकी जानकारी ली जा सकती है.