इस राज्य में धान की फसल पर बैक्टीरियल ब्लाइट सिंड्रोम का हमला, सैकड़ों एकड़ रकबा हुआ प्रभावित

इस राज्य में धान की फसल पर बैक्टीरियल ब्लाइट सिंड्रोम का हमला, सैकड़ों एकड़ रकबा हुआ प्रभावित

जिला कृषि अधिकारी संजय कचोले ने बताया कि यह बीमारी मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण होती है. उन्होंने कहा कि पिछले महीने गर्म दिन और ठंडी रातों के चलते संक्रमण के लिए अनुकूल माहौल बना. उन्होंने कहा कि इस वर्ष, जिले में अच्छी बारिश के कारण औसत आंकड़े से अधिक 60,000 हेक्टेयर से अधिक धान की खेती दर्ज की गई.

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इस राज्य में धान की फसल पर बैक्टीरियल ब्लाइट सिंड्रोम का हमला, सैकड़ों एकड़ रकबा हुआ प्रभावितधान की फसल में लगी नई बीमारी. (सांकेतिक फोटो)

महाराष्ट्र के पुणे जिले में धान की फसल पर बैक्टीरियल ब्लाइट सिंड्रोम का हमला हुआ है. इससे सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसल को नुकसान पहुंचा है. ऐसे में किसानों को आर्थिक नुकसान की चिंता सताने लगी है. हालांकि, कृषि अधिकारी इस संक्रम के प्रसार को रोकने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए वे गांव-गांव में जाकर किसानों को जागरूक कर रहे हैं. साथ ही इसके इलाज के उपाय भी बता रहे हैं. अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही बैक्टीरियल ब्लाइट सिंड्रोम के फैलाव को रोक दिया जाएगा. 

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जिला कृषि अधिकारियों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण सैकड़ों एकड़ धान की फसल पर इस संक्रमित रोग का हमला हुई है. अंबेगांव, जुन्नार, मुलशी, मावल, भोर और वेल्हे तहसीलों में खड़ी धान की फसलों में संक्रमण देखा गया है. अधिकारियों ने उचित निवारक कदम उठाने के लिए जागरूकता अभियान शुरू किया है. वे संक्रमण के पैमाने का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.

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60,000 हेक्टेयर में होती है धान की खेती

जिला कृषि अधिकारी संजय कचोले ने बताया कि यह बीमारी मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण होती है. उन्होंने कहा कि पिछले महीने गर्म दिन और ठंडी रातों के चलते संक्रमण के लिए अनुकूल माहौल बना. उन्होंने कहा कि इस वर्ष, जिले में अच्छी बारिश के कारण औसत आंकड़े से अधिक 60,000 हेक्टेयर से अधिक धान की खेती दर्ज की गई. कृषि कार्यकर्ताओं और धान उत्पादकों के एक वर्ग ने जिला कृषि अधिकारियों पर इन वर्षों में किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया.

कम बारिश के कारण फसल बर्बाद

खेड़ के कार्यकर्ता शांताराम सर्वाडे ने कहा कि किसानों को केवल पारंपरिक रोग नियंत्रण उपायों के बारे में ही जानकारी है. वे आर्थिक तंगी के कारण उन तरीकों को अपनाते हैं, लेकिन इससे उनकी फसल नहीं बचती. अंत में, उन्हें कम फसल मिलती है. तहसील या ब्लॉक स्तर के कृषि अधिकारियों को जागरूकता पैदा करने और उन्हें बीमारियों को नियंत्रित करने के बेहतर विकल्प देने की आवश्यकता है. इस साल हमें संक्रमण के कारण अच्छी उपज नहीं मिलेगी. कम बारिश के कारण पिछले दो वर्षों से धान की अच्छी पैदावार नहीं हो रही है.

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क्या कहते हैं गांव के किसान

अम्बेगांव तहसील के मालिन गांव के किसान विजय लेम्बे ने बताया कि इस साल, हमारे सामने संक्रमण की चुनौती है. यह हमारी योजना को कमजोर कर देगा, क्योंकि धान हमारी आय का मुख्य स्रोत है. वहीं, संबंधित अधिकारियों को हमारे जैसे लोगों के लिए कीटनाशकों के लिए सब्सिडी देनी चाहिए.

 

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