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Mustard Price: भरतपुर में बंद हो गई 70 फीसदी मिलें, अभी भी एमएसपी से नीचे हैं सरसों के भाव 

Mustard Price: भरतपुर में बंद हो गई 70 फीसदी मिलें, अभी भी एमएसपी से नीचे हैं सरसों के भाव 

पूर्वी राजस्थान सरसों पैदा करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है. भरतपुर में सरसों की सबसे बड़ी मंडी है. भरतपुर में ही सरसों के तेल की कम से कम 100 मिल हैं. लेकिन लगातार कम भाव के कारण ये मिलें बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं. यह हाल तब है जब राजस्थान देश में सबसे अधिक सरसों पैदा करता है.

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सरसों के साथ-साथ तेल के दामों में भी भारी गिरावट हुई है. फोटो- Kisan Tak सरसों के साथ-साथ तेल के दामों में भी भारी गिरावट हुई है. फोटो- Kisan Tak

इस साल सरसों के कमजोर भावों ने किसानों की कमर तो तोड़ी ही है, व्यापारियों को भी खासा नुकसान पहुंचाया है. पूर्वी राजस्थान सरसों पैदा करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है. भरतपुर में सरसों की सबसे बड़ी मंडी है. भरतपुर में ही सरसों के तेल की कम से कम 100 मिल हैं. लेकिन लगातार कम भाव के कारण ये मिलें बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं. यह हाल तब है जब राजस्थान देश में सबसे अधिक सरसों पैदा करता है. प्रदेश में सरसों के कुल उत्पादन में 48.2 प्रतिशत योगदान है.  किसान तक ने सरसों के भावों की वजह से किसान और व्यापारियों पर हो रहे प्रभाव पर एक पड़ताल की है. पढ़िए ये रिपोर्ट.

अकेले भरतपुर में 100 मिल, 70 बंद

भरतपुर में सरसों से संबंधित करीब 100 मिल हैं. इनमें से 70 मिलें अच्छा भाव नहीं मिलने के कारण बंद हो गई हैं. भरतपुर स्थित मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन के सदस्य भूपेन्द्र गोयल किसान तक से इस संबंध में बात करते हैं. वे बताते हैं, “इस साल सरसों ने किसानों का नुकसान तो किया ही है. व्यापारियों की भी कमर तोड़ दी है. हमारे यहां सिर्फ 30 फीसदी मिलें ही चालू हालत में हैं. ये मिलें भी बहुत सीमित स्तर पर काम कर रही हैं.”

पॉम ऑयल बना सरसों का दुश्मन

भारत सरकार की आयात नीति सरसों किसानों और व्यापारियों की दुश्मन बन गई है. मिले आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2022 से अप्रैल 2023 के बीच सालाना आधार पर भारत सरकार ने पाम ऑयल की खरीद 53 फीसदी ज्यादा की है. इसमें सूरजमुखी और सोयाबीन भी शामिल है. यह पिछले साल से करीब 21 प्रतिशत अधिक है.

इसके अलावा केन्द्र सरकार ने नवंबर 2021 से अक्टूबर 2022 के बीच 14 मिलियन टन वेजिटेबल ऑयल खरीदा. इस पर करीब 1.6 लाख करोड़ रुपये भारत ने खर्च किए हैं. भूपेन्द्र कहते हैं, “केन्द्र सरकार की जो तेल आयात करने की नीति है, वही हमारे नुकसान की सबसे बड़ी वजह है. पाम ऑयल के आयात पर किसी भी तरह का शुल्क नहीं है.”

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एक तरह किसानों का नुकसान, दूसरी ओर व्यापारी परेशान

किसान तक ने किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट से बात की. वे कहते हैं, “वर्तमान में कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल के आयात पर केवल पांच फीसदी कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर उपकर और 10 फीसदी शिक्षा उपकर लगता है. मतलब तेल आयात पर सिर्फ 5.5 फीसदी टैक्स है. जबकि रिफाइंड खाद्य तेल के मामले में प्रभावी आयात शुल्क 13.75 फीसदी है. इस साल इसी वजह से सरसों का दाम बहुत कम हो गए हैं. इसीलिए हम खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी पहले की तरह 45 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं.”

एक क्विंटल पर दो से ढाई हजार रुपये का किसान को नुकसान

जाट जोड़ते हैं, “फिलहाल सरसों के दाम भरतपुर में 4871 रुपये प्रति क्विंटल के हैं. जो एमएसपी 5450 रुपये से काफी कम है. वहीं, पिछले साल सरसों के दाम सात हजार रुपये प्रति क्विंटल तक गए थे. इस बार यह पांच हजार से नीचे ही रहे हैं. इस तरह किसानों को प्रति क्विंटल दो हजार से ढाई हजार रुपये तक का नुकसान हो रहा है.यही नुकसान सरसों के व्यापारियों को भी उठाना पड़ रहा है.”

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95 रुपये प्रति लीटर हैं सरसों तेल का भाव

भूपेन्द्र बताते हैं कि 2021 में सरसों तेल के भाव 200 रुपये प्रति किलो को छू गए थे, लेकिन इस साल भाव 95 रुपये प्रति लीटर ही हैं. रिटेल में यह भाव 100 से 110 रुपये प्रति लीटर के बीच हैं. सरसों मिल मालिकों की लागत भी नहीं निकल रही, इसीलिए भरतपुर में 70 फीसदी से अधिक मिलें बंद हो गई हैं. इसीलिए हमारी मांग है कि सरकार जल्द से जल्द पाम ऑयल पर आयात शुल्क को बढ़ाए ताकि स्थानीय तेलों के बाजार को मजबूती मिले.