पंजाब में धान की एक ऐसी किस्म है जिसके खिलाफ प्रशासन की छापेमारी चल रही है. इस किस्म का नाम पूसा-44 (PUSA-44) है जिसे इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी कि IARI ने तैयार किया था. इसे लगभग तीन दशक पहले विकसित किया गया था. इसे खेत में लगाने से लेकर कटाई तक में 155-160 दिन का समय लगता है.
धान की यह किस्म पूसा-44 देर से पकने वाली किस्म है. इसे तैयार होने में अधिक दिन लगते हैं. यहां तक कि अगली फसल को लगाने में भी यह धान अड़ंगा लगाता है. यही वजह है कि इसे खेती से हटाने की तैयारी चल रही है. इसकी खेती में पानी की खपत भी बहुत ज्यादा होती है जो कि भूजल स्तर को बहुत तेजी से गिराता है.
इन सभी कमियों को देखते हुए पंजाब के कृषि विभाग ने धान की इस वैरायटी पर छापेमारी का निर्देश दिया है. विभाग ने चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसर्स को निर्देश दिया है कि पूरे पंजाब में एक टीम बनाई जाए और निगरानी की जाए कि धान की वैरायटी पूसा-44 का बीज न बिके. अधिकारी राज्य के प्राइवेट बीज सेंटरों पर भी छापेमारी कर रहे हैं.
हालांकि इस धान के साथ एक अच्छी बात भी है. यह धान तैयार होने में भले अधिक दिन ले, लेकिन उपज बंपर देता है. यही वजह है कि कई कमियों के बावजूद किसान इस किस्म की खेती करते हैं. यह किस्म प्रति एकड़ 35-40 क्विंटल तक उपज देती है. इसे देखते हुए पंजाब के किसान बड़े स्तर पर इसकी खेती करते हैं.
हालांकि इस धान के साथ एक अच्छी बात भी है. यह धान तैयार होने में भले अधिक दिन ले, लेकिन उपज बंपर देता है. यही वजह है कि कई कमियों के बावजूद किसान इस किस्म की खेती करते हैं. यह किस्म प्रति एकड़ 35-40 क्विंटल तक उपज देती है. इसे देखते हुए पंजाब के किसान बड़े स्तर पर इसकी खेती करते हैं.
जसवंत सिंह ने यह भी कहा कि कुछ किसानों ने इस धान का बीज पिछले साल की उपज से बचा रखा है. इन किसानों को बार-बार समझाया जा रहा है कि वे इसका इस्तेमाल न करें. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. एसएस गोसाल ने कहा कि उन्होंने पूसा-44 किस्म लगाने के बारे में सलाह नहीं दी बल्कि 135 दिनों में तैयार होने वाली पीएआर-126 लगाने की सलाह दी जाती है.
धान की उन्नत किस्म पीआर 126 पंजाब के 50 सेल पॉइंट पर बिक रहा है. इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्रों और पीएयू कैंपस से भी इसे खरीद सकते हैं. संगरूर के एक किसान कुलविंदर सिंह ने कहा कि पूसा-44 वैरायटी अधिक उपज देती है, इसलिए चावल सेलर और आढ़ती इसे लगाने के लिए सुझाव देते हैं. इसलिए पूसा-44 वैरायटी से किसानों के साथ-साथ सेलर और आढ़तियों के लिए भी लाभदायक है.
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