Soybean Price: तेल महंगा-सोयाबीन सस्ता, बाजार में मचा हाहाकार...आख‍िर क्या कर रही है सरकार?

Soybean Price: तेल महंगा-सोयाबीन सस्ता, बाजार में मचा हाहाकार...आख‍िर क्या कर रही है सरकार?

महाराष्ट्र में सोयाबीन के गिरते दामों ने किसानों की कमर तोड़ दी है. एमएसपी 5328 रुपये होने के बावजूद बाजार में 4000–4400 रुपये प्रति क्विंटल तक भाव मिलने से किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहे. खरीद केंद्रों की कमी, बारिश से नुकसान और व्यापारियों की मनमानी के चलते किसान भारी आर्थिक संकट झेल रहे हैं और कई खेती छोड़ने की बात कह रहे हैं.

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Soybean Price: तेल महंगा-सोयाबीन सस्ता, बाजार में मचा हाहाकार...आख‍िर क्या कर रही है सरकार?सोयाबीन के दाम में भारी गिरावट

'हालत बहुत खराब है. सरकार ने सोयाबीन का सरकारी रेट 5328 रुपये तय किया है, लेकिन बेचने जाओ तो 4000 से 4400 रुपये रेट मिलता है. इससे खेती की लागत भी नहीं निकलेगी.' ये कहना है महाराष्ट्र में हिंगोली के सोयाबीन किसान बालासाहब बोंगाने का. उन्होंने 10 एकड़ में सोयाबीन की खेती ये सोच कर की थी कि कमाई अच्छी होगी, खूब पैसा आएगा और घर का खर्च आराम से चलेगा. मगर मामला बिल्कुल उलटा हो गया. खर्च चलाने की बात तो दूर, यहां तो कर्ज भी चुकता नहीं हो पाएगा. बालासाहब की तरह सैकड़ों किसान सोयाबीन के गिरते रेट से पस्त हैं और अपनी खेती पर पछता रहे हैं.

किसानों के ये हालात तब हैं जब सोयाबीन की खेती में महाराष्ट्र का नाम प्रमुख है. महाराष्ट्र देश का प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्य है जहां विदर्भ, मराठवाड़ा और मध्य महाराष्ट्र क्षेत्रों में इसकी खेती सबसे अधिक होती है. खरीफ मौसम में सोयाबीन को मुख्य तिलहनी फसल के रूप में उगाया जाता है. सैकड़ों किसान सोयाबीन की खेती को पेशे के रूप में लेते हैं. सोयाबीन के अलावा तुअर, चना, मूंग और उड़द की खेती बड़े पैमाने पर होती है. साथ ही कपास भी उगाया जाता है. लेकिन किसानों की सबसे बड़ी शिकायत सोयाबीन और कपास को लेकर है.

दावे और हकीकत में फर्क

खेती पर लिखी गई रिपोर्ट्स और स्टडी पढ़ें तो पता चलेगा कि महाराष्ट्र के सोयाबीन किसानों को अच्छी कमाई होती है. सरकार भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करते वक्त ऐसी बात करती है. लेकिन धरातल पर हालात कुछ और हैं, जैसा कि हिंगोली और अकोला जैसे इलाकों के किसान बताते हैं.

एक स्टडी के मुताबिक, महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती ऑपरेशनल (मजदूरी, बीज, खाद आदि) लागत निकालने के बाद लगभग 9,335 रुपये प्रति हेक्टेयर का नेट रिटर्न देती है. यानी अगर किसान 5–6 हेक्टेयर खेती करता है, तो ऑपरेशनल लागत काटने के बाद कुल कुछ हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की शुद्ध आय हो सकती है. पुराने समय में, जब कीमतें अच्छी थीं (जैसे जब मंडी भाव 7,000–9,000 रुपये/क्विंटल या उससे ज्यादा हुआ करते थे), तब सोयाबीन किसानों की इनकम बेहतर होती थी. लेकिन अब किसानों के इतने अच्छे दिन नहीं हैं क्योंकि उन्हें 4000-4500 रुपये क्विंटल का रेट लेने में भी दिक्कत आ रही है.

MSP घोषित, खरीद सेंटर चालू नहीं

बालासाहब बोंगाने कहते हैं कि सरकार ने एमएसपी घोषित कर दी, लेकिन खरीद सेंटर चालू नहीं किए. मजबूरी में किसान को प्राइवेट व्यापारियों के पास उपज बेचनी पड़ रही है. व्यापारी को भी पता है कि किसान मजबूर है, कहीं जाएगा नहीं. इसलिए औने-पौने दाम पर खरीदी करता है. इसमें सारा दोष सरकार का है. अगर सरकार खरीदी सेंटर अधिक खोले और कीमतों की निगरानी करे तो किसान को नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा. बोंगाने ने कहा, कुछ खरीदी सेंटर खुले हैं, लेकिन वहां छोटा किसान नहीं टिक सकता. ये सेंटर बहुत दूर हैं और वहां किसानों की भीड़ अधिक है. छोटा किसान किराये की गाड़ी पर माल लादकर सेंटर के बाहर 15 दिन इंतजार नहीं कर सकता. बड़े किसान कर सकते हैं क्योंकि वे सस्ते में भी उपज बेचकर मुनाफा निकाल सकते हैं.

बोंगाने सरकार के साथ व्यापारियों को भी निशाने पर लेते हैं. वे कहते हैं कि व्यापारी को पता होता है कि छोटे किसान के पास माल स्टोर करने की जगह नहीं होती. इसलिए वे कम दाम पर भी किसान को उपज बेचने के लिए मजबूर करते हैं. इसका फायदा व्यापारी उठाते हैं जबकि किसान नुकसान में जाता है. महाराष्ट्र में अभी ऐसा ही चल रहा है.

सोयाबीन तेल के दाम बढ़े, सोयाबीन के नहीं

कुछ ऐसी ही बात हिंगोली के किसान वसंतराव बाबा कहते हैं. रेट में गिरावट के लिए वे बारिश और सरकार को दोषी ठहराते हैं. उन्होंने कहा कि इस बार बारिश ने अच्छे सोयाबीन को भी बर्बाद कर दिया. उपज भी बहुत गिर गई है. 25-30 एकड़ में सोयाबीन उगाने वाले किसान वसंतराव ने कहा कि बाजार में सोया तेल के दाम लगातार बढ़ते गए, मगर सोयाबीन का दाम नहीं बढ़ा बल्कि गिर ही गया. इस गिरे भाव के चलते सोयाबीन की लागत भी नहीं निकलेगी. एक एकड़ में सोयाबीन उगाने का खर्च ही 15-20 हजार रुपये है जबकि किसान को 12-15 हजार रुपये मिल रहे हैं. खरीदी के समय व्यापारी माल भी वापस कर देते हैं. इससे ढुलाई का खर्च बढ़ जाता है.

वसंतराव ने कहा, खेती करना अब जान पर आफत बन गई है. फिर भी सोचते हैं कि खेती नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या. इसमें शासन का भी दोष है क्योंकि उसे खरीदी सेंटर बढ़ाने चाहिए. जंगली जानवर फसल बहुत चौपट करते हैं, उसकी तारबंदी पर ही 10-20 हजार रुपये खर्च हो जाता है. अगर शासन इस पर ध्यान नहीं देगा तो किसान कैसे जिएगा.

लागत निकालना भी मुश्किल

किसान गजानन गोरेगांव से बात करने पर कुछ ऐसी जानकारी सामने आई. वे कहते हैं कि केवल सोयाबीन को ही नुकसान नहीं है बल्कि तुर, कपास, मूंग और उड़द जैसी फसलों को भी बारिश ने खराब कर दिया है. इससे रेट मिलने में दिक्कत आ रही है. गोरेगांव के सोयाबीन की खेती में 7500 रुपये प्रति क्विंटल का खर्च आया है, लेकिन खुले मार्केट में 4200 रुपये का रेट मिल रहा है. नेफेड का रेट 5328 रुपये है, लेकिन उनके पूरे इलाके में मात्र दो सेंटर चालू हैं. इन सेंटरों पर भीड़ इतनी अधिक होती है कि 15 दिन माल मार्केट के बाहर रोकना होता है. साधारण किसान 15 दिन किराये की गाड़ी नहीं रोक सकता, इसलिए प्राइवेट व्यापारियों को सस्ते में सोयाबीन बेचकर भाग रहा है.

गजानन गोरेगांव नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि सरकार बड़ी बातें करती है, लेकिन पैसे देने की बारी आती है तो मुकर जाती है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह वादा भी याद दिलाया जिसमें चुनाव से पहले उन्होंने किसानों को सोयाबीन का रेट कम से कम 6000 रुपये देने की बात कही थी. गजानन कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री की बात भी अमल में नहीं आ रही है तो दूसरे की क्या ही कहें. 

जान पर आफत सोयाबीन की खेती

गजानन के मुताबिक, सोयाबीन की 30 किलो वाली एक बोरी बीज की कीमत 4000 रुपये है जबकि अभी एक क्विंटल सोयाबीन का रेट 4200 रुपये मिल है. इससे किसानों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि 5 एकड़ में उन्हें मात्र 16 क्विंटल सोयाबीन मिला है जबकि 40-45 क्विंटल उपज होनी चाहिए. एक तरफ बारिश तो दूसरी ओर सरकार की ढिलाई ने किसानों को परेशानी में डाल रखा है. गजानन गोरेगांव पूछते हैं कि आखिर बैंक का कर्ज कैसे भरेगा, अगले साल की खेती के लिए पैसे कहां से आएंगे?

अकोला के किसान गणेश पाटिल ने कहा कि सोयाबीन को लेकर उनकी असली शिकायत सरकार से है. इतने दिन हो गए, लेकिन खरीदी अभी तक चालू क्यों नहीं हुई. वे बताते हैं कि 5-6 साल पहले सोयाबीन का भाव 7200 रुपये तक मिला, वही आज 4200 रुपये पर गिर गया है. सोयाबीन की खेती पर प्रति क्विंटल खर्च 5000 रुपये है. एक एकड़ में कम से कम 20 हजार का खर्च आता है. लेकिन एवरेज देखें तो किसान को 4200 रुपये का भाव मिल रहा है. इससे से तो लागत भी नहीं निकल रही है. 

खेती छोड़ने को मजबूर किसान

गणेश पाटिल ने तो यह भी कह दिया कि चांस मिला तो सोयाबीन की खेती छोड़कर किसी और फसल की खेती करेंगे. 15 एकड़ में सोयाबीन उगाने वाले पाटिल की बातों से साफ है कि उनकी तरह महाराष्ट्र के सैकड़ों किसान सोयाबीन के रेट से परेशान हैं और खेती छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं. 

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