मॉनसून की दस्तक के साथ ही बिहार में बागवानी का बाजार तेजी से गुलजार हो गया है. धान की बुआई के साथ-साथ अब किसान और आम लोग फलदार पौधों की ओर भी रुख कर रहे हैं. राज्य के विभिन्न नर्सरी केंद्रों से प्रतिदिन 60 से 70 पिकअप गाड़ियों के माध्यम से पौधों की बिक्री हो रही है. इनमें 80 प्रतिशत हिस्सेदारी केवल आम के पौधों की है. खासकर मालदह आम की मांग सबसे ज्यादा है. बिहार नर्सरी मैन एसोसिएशन के अध्यक्ष एके मनी के मुताबिक एक पिकअप में करीब एक लाख रुपये से लेकर एक लाख पच्चीस हजार रूपये तक के पौधे होते हैं.
इस हिसाब से रोजाना करीब 60 से 70 लाख रुपये का कारोबार केवल फलदार पौधों से हो रहा है. हालांकि पिछले साल की तुलना में इस बार रफ्तार थोड़ी कम है, लेकिन आने वाले दिनों में इसमें बढ़त की उम्मीद जताई जा रही है.
बिहार नर्सरी मैन एसोसिएशन के अध्यक्ष एके मनी कहते हैं कि यदि राज्य के छह प्रमुख जिलों की बात करें. हाजीपुर (वैशाली), पूर्णिया, भागलपुर, बांका, समस्तीपुर और बेतिया (पश्चिम चंपारण) तो यहां मॉनसून के सीजन में प्रतिदिन लगभग 60 से 70 पिकअप गाड़ियों के माध्यम से पौधों की बिक्री हो रही है. ये सभी निजी छोटी-बड़ी नर्सरियां हैं. एक गाड़ी में लगभग एक लाख से लेकर एक लाख पच्चीस हजार रुपये तक के पौधे आते हैं. यानी, प्रतिदिन लगभग 70 लाख रुपये का कारोबार हो रहा है. हालांकि यह रफ्तार अभी धीमी है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके बढ़ने की उम्मीद है.
वर्तमान में बिहार में लगभग 2000 के आसपास छोटी-बड़ी नर्सरियाँ हैं. वहीं, वर्ष 2024 में पूरे साल में प्रतिमाह लगभग 15 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था, जो इस वर्ष और बढ़ने की संभावना है. अगर अस्थायी सड़कों की नर्सरियों और सरकारी संस्थानों की बिक्री भी जोड़ दी जाए, तो यह आंकड़ा और बढ़ सकता है. इस समय राज्य में करीब 2000 के आसपास सक्रिय नर्सरियां हैं. फलदार पौधों के प्रति यह रुझान केवल निजी नर्सरियों तक सीमित नहीं है.
कृषि विश्वविद्यालय, पूसा. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर और मीठापुर के कृषि अनुसंधान संस्थानों में भी लोगों की भीड़ देखी जा रही है. सबौर विवि हर साल 1 से डेढ़ लाख पौधे बेचता है. वहीं इस साल मीठापुर संस्थान ने तीन दिन में ही 4.5 लाख रुपये के लगभग 6000 पौधे बेच दिए, जिनमें दूधिया मालदह आम की मांग सबसे ज्यादा रही. बागवानी के इस बढ़ते बाजार ने मानसून में बिहार के किसानों और बागवानी प्रेमियों के बीच नई उम्मीदें जगा दी हैं.
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