जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून सीजन में होने वाली बारिश में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. कहीं अधिक बारिश तो कहीं बारिश की बूंदों के इंतजार में किसान आसमान की ओर नजरे गड़ाए हुए हैं. हालांकि की मौसम विभाग ने मॉनसून जाते जाते अच्छी बारिश की संभावना व्यक्त की है. लेकिन किसानों का कहना है कि इन दिनों भगवान और सरकार दोनों ने किसानों से नजरें फेर लिए हैं. जहां पिछले एक दो दिनों के दौरान राज्य के शाहाबाद क्षेत्र सहित अन्य जिलों में हुई मध्यम बारिश की वजह से धान में लगने वाले रोग में कमी आई है. वहीं धान के पौधों का विकास तेजी से हुआ है.
दूसरी ओर जिन जिलों में बारिश नहीं हुई है, उन क्षेत्रों में धान काफी प्रभावित हुआ है. पटना जिले के किसान अभिजीत सिंह कहते हैं कि इस साल धान की फसल को बचाना बड़ी बात है. वहीं अबकी बार मौसम ने उनकी सोयाबीन की फसल को भी बर्बाद कर दिया है. बारिश नहीं होने से धान के पौधों का विकास रुक जाता है.
बता दें कि इस बार बिहार में करीब 93 प्रतिशत तक धान की खेती हुई है. वैसे बिहार में करीब 36 लाख हेक्टेयर में धान की खेती का सरकारी लक्ष्य है जो करीब करीब अपने लक्ष्य के आसपास है. लेकिन इस बार बारिश सही ढंग से नहीं होने से किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए चिंता में हैं.
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मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार सहरसा जिला में मॉनसून सीजन का सामान्य से करीब 53 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है. वहीं सीतामढ़ी जिले में सामान्य से 52 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है. इस स्थिति में जिलों के किसानों को अपनी फसल बचाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है.
वहीं सहरसा जिला के कहरा प्रखंड के सुलिंदाबाद गांव के निवासी नीरज कहते हैं कि पिछले 14 से 15 दिनों के बीच अच्छी बारिश नहीं हुई है. थोड़ी बहुत बारिश हुई लेकिन संतोषजनक नहीं थी. उनके पूरे पंचायत में करीब 1500 एकड़ में धान की खेती होती है. लेकिन इस बार 80 प्रतिशत ही खेती हुई है. सिंचाई का बेहतर साधन नहीं होने की वजह से बारिश ही खेती का मुख्य सहारा है. वे कहते हैं धान कि रोपनी भले ही 80 प्रतिशत उनके पंचायत में हुई है, लेकिन पानी के अभाव में 40 प्रतिशत ही धान की फसल बच पाई है.
सीतामढ़ी शहर से दो किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित सीरौली प्रथम पंचायत के रामनगर गांव के सुरेंद्र कहते हैं कि धान की फसल सुखने के कगार पर है. डीजल से खेत की सिंचाई की जा रही है. लेकिन घर तक पहुंचेगा या नहीं, वह देखना होगा. हालात ये है कि जितना धान नहीं होगा, उससे अधिक डीजल का तेल लग चुका है. उन्होंने चार बीघे में धान की खेती की है. इसकी सिंचाई में अभी तक 35 हजार रुपये का तेल लग चुका है. सरकार से अनुरोध है कि जिले को सूखा घोषित किया जाए.
बीते दिनों राज्य के कुछ जिलों में बारिश होने से किसान काफी खुश हैं. कैमूर जिले के पींकू सिंह, भानु सिंह सहित अन्य किसान कहते हैं कि बारिश नहीं होने से धान की फसल का विकास नहीं हो रहा था. साथ ही रोगों का प्रकोप बढ़ चुका था. लेकिन अब बारिश होने से धान के पौधों का विकास शुरू हो चुका है. साथ ही रोगों का प्रकोप कम हुआ है. अब लग रहा है कि धान घर तक पहुंच जाएगा.
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