राजस्थान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पशुपालन पर आधारित है. पशुपालन के कारण ही प्रदेश दूध उत्पादन में देश में पहले स्थान पर है. इसीलिए कल सूबे के मुखिया अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री कामधेनु पशु बीमा योजना की शुरूआत की. भीलवाड़ा के गुलाबपुरा में गहलोत ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बुलाकर इस योजना को लांच किया. इस रिपोर्ट में किसान तक आपको मुख्यमंत्री कामधेनु पशु बीमा योजना के बारे में बता रहा है. रिपोर्ट में आप जानेंगे कि इस योजना का फायदा कैसे लिया जा सकता है और इसके फायदे क्या हैं?
मुख्मयंत्री कामधेनु पशु बीमा योजना के तहत सरकार ने प्रति परिवार दो दुधारू पशुओं का 40-40 हजार रुपये का बीमा किया है. इसकी प्रीमियम राशि भी सरकार ही भरेगी. पिछले महीनों राज्य सरकार की ओर से पंचायत स्तर पर लगाए गए महंगाई राहत कैंपों में इस योजना के लिए रजिस्ट्रेशन किए गए थे.
सरकार ने इन कैंपों में पशुपालकों के रजिस्ट्रेशन के बाद गारंटी कार्ड बांटे थे. इसके तहत अब तक 1.10 करोड़ से अधिक रजिस्ट्रेशन पूरे राजस्थान में किए जा चुके हैं. कल सीएम गहलोत ने इसी योजना की आधिकारिक रूप से शुरूआत की.
राज्य सरकार ने गांव-गांव स्तर पर महंगाई राहत कैंप खोलकर पशुपालकों के रजिस्ट्रेशन किए हैं. कोई भी पशुपालक या किसान अपने जन आधार कार्ड के साथ कैंप में पहुंच कर आसानी से अपना रजिस्ट्रेशन करा सकता है. हालांकि महंगाई राहत कैंप अब पंचायत स्तर पर नहीं लग रहे, लेकिन कुछ स्थाई कैंप जरूर लगे हुए हैं.
यदि कोई पशुपालक अभी भी बीमा करवाना चाहता है तो महंगाई राहत पोर्टल पर जाकर अपना नजदीकी कैंप ढूंढ़ सकता है. इसके लिए कहीं किसी भी तरह की फीस या पैसे नहीं लिए जा रहे हैं. दस्तावेज के तौर पर पशुपालक को जनाधार कार्ड और मोबाइल लेकर जाना होगा.
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प्रदेश में साल 2021 और 2022 में फैले लंपी बीमारी के कारण लाखों पशुओं की मौत हुई थी. हालांकि राज्य सरकार ने प्रति पशु 40 हजार रुपये मुआवजा दिया, लेकिन उसमें सभी पशुपालकों को मुआवजा नहीं मिल सका था. इसके अलावा यह योजना प्रदेश के पशुपालकों के लिए वरदान साबित हो सकती है.
क्योंकि राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 55 फीसदी भाग रेगिस्तान है. करीब 75% आबादी गांवों में रहती है. 2019 पशुगणना के अनुसार प्रदेश में करीब 5.67 करोड़ मवेशी हैं. इसमें 1.39 गौवंश, 1.36 भैंस, 80 लाख भेड़, 2.08 करोड़ बकरी और करीब 2.13 लाख ऊंट शामिल हैं. देश के कुल दूध उत्पादन में राजस्थान का पहला स्थान है.
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साथ ही राजस्थान की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का 10 फीसदी शेयर है. जबकि कृषि और पशुपालन पूरी एसजीडीपी में 22% का योगदान करते हैं. इसके अलावा तथ्य है कि प्रदेश के 52 फीसदी किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम कृषि भूमि है. कम बरसात या गैर कृषि सीजन में वे पशुपालन के भरोसे ही जीवन यापन करते हैं.
इसीलिए राजस्थान के लिए कहा जाता है कि अकाल और लगातार सूखे के बाद भी यहां का किसान आत्महत्या नहीं करता. इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि खेती ना होने के बाद भी यहां का किसान पशुओं के सहारे गुजर कर लेता है.
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