भेड़-बकरी को गरीबों का पशु कहा जाता है. लेकिन सही मायनों में यह किसानों का एटीएम हैं. जब जरूरत हो तो इनका दूध निकालकर बेचा जा सकता है. या फिर अगर मोटी रकम की जरूरत हो तो तैयार पशु को हाट-बाजार में ले जाकर बेचा जा सकता है. यह कहना है केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान के डायरेक्टर अरुण कुमार तोमर का. बुधवार को वो ऋषभदेव तहसील के ग्राम मसारो की ओवरी मे भेड़ -बकरी पालन पर किसान -वैज्ञानिक संगोष्ठी में बोल रहे थे.
संस्थान की ओर से भेड़-बकरी पालन की जानकारी लेने आए आदिवासी किसानों और पशुपालकों को पानी की बोतल, छाता, कीटनाशक स्प्रे मशीन, टॉर्च, प्लास्टिक की बाल्टी आदि का भेड़-बकरी पालन में काम आने वाले जरूरी सामान का वितरण किया गया. वहीं दूसरी ओर 25 आदिवासी किसानों को फेंसिंग के साथ ही टीनशेड का सामान (दो लोहे की जाली के बंडल, 4 लोहे के पाइप और 5 आयरन शीटस) ओवरी पंचायत व उसके पास की पंचायत के लाभार्थियों को कार्यक्रम के दौरान निशुल्क वितरित किए गए.
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इस मौके पर उदयपुर लोकसभा सांसद अर्जुन लाल मीना के गांव में डायरेक्टर डॉ अरुण कुमार तोमर ने कार्यक्रम में उपस्थित आदिवासी किसानों को संबोधित करते हुए बताया कि भेड़-बकरी गरीबों के पशु हैं, जिनको आदिवासी महिला और पुरुष किसान पालकर अपनी आजीविका आसानी से चला सकता है. इसलिए मेरा आदिवासी भाई-बहनों से निवेदन है कि छोटे पुश भेड़ और बकरी चलते फिरते एटीएम हैं, जिनसे किसी भी समय मीट और दूध प्राप्त किया जा सकता है.
अन्य पशु की अपेक्षा कम से कम संसाधन में पाला जा सकता है. इसलिए आदिवासी किसान क़ृषि और पशुपालन के माध्यम से अपनी आजीविका को चला कर आत्मनिर्भर भारत के विकास में सहयोग करें. इतना ही नहीं भेड़ और बकरी पर संचालित राष्ट्रीय पशुधन मिशन में भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के माध्यम से अपने व्यवसाय को एग्रीटेक में भी बदल सकते हैं.
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केवीके इंचार्ज डॉ. प्रफुल चंद्र भटनागर ने आदिवासी किसानों को आर्गेनिक फार्मिंग पर जोर देते हुए इंटीग्रेटेड फार्मिंग अपनाने पर भी जोर दिया. जिससे आदिवासी किसानो की क़ृषि, बागवानी और पशुपालन के माध्यम से सालभर कमाई होती रहे. उन्होंने कार्यक्रम में आए किसान और पशुपालकों से संस्थान का ज्यादा से ज्यादा फायदा लेने की अपील की है. उन्होंने बताया कि कैसे वर्तमान में पशुपालन को वैज्ञानिक तरीक से करते हुए ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. इसके लिए भेड़-बकरी की सही नस्ल का चयन, पोषण प्रबंधन, चारा प्रबंधन, स्वास्थ्य प्रबंधन और वर्ष भर मौसम आधारित प्रबंधन तथा नियमित टीकाकरण से छोटे पशु में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा लिया जा सकता है.
कार्यक्रम के दौरान क़ृषि विज्ञान केंद्र, बड़गाव, उदयपुर के प्रभारी डॉ. प्रफुल चंद्र भटनागर, डॉ. मणिलाल सेवानिवृत्त रेडियोलॉजिस्ट, डॉ. महेश मिश्रा, हरीजी मीना विशिष्ट अतिथि, डॉ. निर्मला सैनी, डॉ. आशीष चोपड़ा, डॉ. गणेश सनावने टीएसपी नोडल अधिकारी अविकानगर ने अपने वैज्ञानिक अनुभव से आदिवासी किसानों को लाभान्वित किया. डॉ. अमर सिंह मीना वरिष्ठ वैज्ञानिक, मुकेश चोपड़ा, प्रदीप आदि ने भी कार्यक्रम में सहयोग दिया.
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