भेड़ की बात होते ही सबसे पहला जो नाम दिमाग में आता है वो राजस्थान है. उसके बाद भेड़ को लेकर जो हम सोचते हैं वो है ऊन. लेकिन ऐसा नहीं है कि आज भेड़ का पालन सिर्फ ऊन के लिए ही होता है. जबकि आज की हकीकत तो ये है कि अब बाजार में भेड़ से मिलने वाली ऊन की कीमत घट गई है. कई नस्ल की भेड़ तो ऐसी हैं जिनकी ऊन फेंकने पड़ती है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि भेड़ की डिमांड सिर्फ ऊन के लिए ही होती है.
राजस्थान के अलावा दूसरे राज्यों में भी भेड़ पालकर मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है. जैसे आज घरेलू बाजार में ही भेड़ के मीट की खासी डिमांड है. यूपी की बात करें तो यहां होने वाली एक खास नस्ल की भेड़ का मीट बहुत पसंद किया जाता है. इसलिए यूपी में भी भेड़ पालकर हर महीने मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है.
ये भी पढ़ें: Animal Husbandry: 7 साल में डेयरी, फिशरीज-पोल्ट्री की बदल जाएगी तस्वीर, नौकरी-रोजगार के होंगे लाखों मौके
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थारन (सीआईआरजी), मथुरा के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. गोपाल दास ने किसान तक को बताया कि मुजफ्फरनगरी भेड़ के मीट में चिकनाई (वसा) बहुत होती है. जिसके चलते हमारे देश के ठंडे इलाके हिमाचल प्रदेश, जम्मूं-कश्मीर और उत्तराखंड में मुजफ्फरनगरी भेड़ के मीट को बहुत पसंद किया जाता है. इसके अलावा आंध्रा प्रदेश में क्योंकि बिरयानी का चलन काफी है तो चिकने मीट के लिए भी इसी भेड़ के मीट की डिमांड रहती है. जानकार बताते हैं कि चिकने मीट की बिरयानी अच्छी बनती है.
डॉ. गोपाल दास बताते हैं कि राजस्थान में बड़ी संख्या में भेड़ पाली जाती हैं. लेकिन वहां पलने वाली भेड़ और मुजफ्फरनगरी भेड़ में खासा फर्क है. दूसरी नस्ल की जो भेड़ हैं उनकी ऊन बहुत अच्छी होती है. जबकि मुजफ्फरनगरी भेड़ की ऊन रफ होती है. जैसे ऊन के रेशे की मोटाई 30 माइक्रोन होनी चाहिए. जबकि मुजफ्फरनगरी के ऊन के रेशे की मोटाई 40 माइक्रोन है. गलीचे के लिए भी कोई बहुत बढ़िया ऊन नहीं मानी जाती है.
डॉ. गोपाल दास ने बताया कि अगर आप मुजफ्फरनगरी भेड़ खरीद रहे हैं तो उसकी पहचान कुछ खास तरीकों से की जा सकती है. देखने में इसका रंग एकदम सफेद होता है. पूंछ लम्बी होती है. 10 फीसद मामलों में तो इसकी पूंछ जमीन को छूती है. कान लम्बे होते हैं. नाक देखने में रोमन होती है. मुजफ्फरनगर के अलावा बिजनौर, मेरठ और उससे लगे इलाकों में खासतौर पर पाई जाती है.
डॉ. गोपाल दास ने यह भी बताया कि मुजफ्फरनगरी भेड़ हार्ड नस्ल की मानी जाती है. इसीलिए इस नस्ल में मृत्यु दर सिर्फ 2 फीसद ही है. जबकि दूसरी नस्ल की भेड़ों में इससे कहीं ज्याादा है. इसके बच्चे 4 किलो तक के होते हैं. जबकि दूसरी नस्ल के बच्चे 3.5 किलो तक के होते हैं. अन्य नस्ल की भेड़ों से हर साल 2.5 से 3 किलो ऊन मिलती है. जबकि मुजफ्फरनगरी भेड़ 1.2 किलो से लेकर 1.4 किलो तक ही ऊन हर साल देती है. 6 महीने में मुजफ्फरनगरी का वजन 26 किलो हो जाता है. जबकि अन्ये नस्ल में 22 या 23 किलो वजन होता है. 12 महीने की मुजफ्फरनगरी का वजन 36 से 37 किलो तक हो जाता है. वहीं अन्य नस्ल की भेड़ इस उम्र पर सिर्फ 32 से 33 किलो वजन तक ही पहुंच पाती हैं. इसके बच्चे जल्दी बड़े होते हैं. दूसरी नस्लों की तुलना में मुजफ्फरनगरी भेड़ भी बकरियों के साथ पाली जा सकती है.
इसे भी पढ़ें: Goat Farming: ब्रीडर बकरे में हैं ये क्वालिटी तो बाड़े में होगी ज्यादा दूध देने वाली बकरियों की फौज
भेड़ों की कुल 44 नस्ल रजिस्टर्ड हैं.
भेड़ों को खासतौर पर दूध, मीट और ऊन के लिए पाला जाता है.
कुल मीट प्रोडक्शन में भेड़ की हिस्सेदारी 10.04 फीसद है.
देश में ऊन का कुल प्रोडक्शन 33.61 मिलियन टन है.
देश के पांच राज्यों में 85.54 फीसद ऊन प्रोडक्शन होता है.
2022-23 में देश में भेड़ के मीट का कुल उत्पादन 8.83 लाख टन था.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today