हर एक बकरी पालक की ये चाहत होती है कि उसके बाड़े (गोट फार्म) में ज्यादा दूध देने वाली बकरी और ज्यापदा से ज्यादा वजन वाला बकरा हो. गोट साइंटिस्ट की मानें तो ज्यादा दूध देने वाली बकरियों और वजनदार बकरों की नस्ल बढ़ाना कोई मुश्किल काम नहीं है. इसके लिए जरूरी है कि बकरियों को गाभिन कराते वक्त हम थोड़ा सा अलर्ट हो जाएं. और बकरे-बकरियों के बारे में जो भी जानकारी है उसका फायदा उठाएं. खासतौर पर जिस बकरे से अपनी बकरी को गाभिन करा रहे हैं उसके बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा कर लें.
कहने का मतलब है कि ब्रीडर बकरे का फैमिली ट्री जरूर देख और पढ़ लें. क्योंकि यही वो मौका होता है जब थोड़ी सी मेहनत और 100-200 रुपये ज्यादा खर्च करने पर हमारे फार्म में मौजूद बकरे-बकरियों की नस्ले अच्छी होती चली जाती है.
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के सीनियर साइंटिस्ट एमके सिंह ने किसान तक को बताया कि ब्रीडर बकरा आपके अपने गोट फार्म हाउस का हो या किसी और का, लेकिन इस बात की तस्दीक कर लेना बहुत जरूरी है कि ब्रीडर उस प्योर नस्ल का है या नहीं जिस नस्ल की बकरी है. वहीं इस बात की जांच भी कर लें कि ब्रीड के मुताबिक ब्रीडर बकरे में वो सारे गुण भी हैं कि नहीं. जैसे उसका रंग, उसकी हाइट, उसका वजन, उसके कान और शरीर की बनावट.
एमके सिंह बताते हैं कि ब्रीडर बकरे की फैमिली क्वालिटी से मतलब यह है कि जो ब्रीडर की मां है वो दूध कितना देती थी. उस बकरी से एक बार में कितने बच्चे होते थे. इतना ही नहीं जब ब्रीडर पैदा हुआ था तो उस वक्त कितने बच्चे दिए थे. ब्रीडर के पिता की हाइट कितनी थी. पिता की ग्रोथ रेट कैसी थी. ब्रीडर के दूसरे भाई-बहन कैसे हैं.
एमके सिंह ने एक जरूरी टिप्स देते हुए बताया कि जब भी बकरी को क्रॉस कराने ले जाएं तो पहले ब्रीडर बकरे की हैल्थ को जरूर जांच लें. अंदरुनी बीमारियों के बारे में जल्दी पता करना तो मुमकिन नहीं है, लेकिन ब्रीडर फुर्तीला है या नहीं. उसकी उम्र एक-डेढ़ साल है तो उसका वजन उम्र के मुताबिक 35 से 40 किलो हो. साथ ही क्रॉस कराने के दौरान इस बात का भी खास ख्याील रखें कि ब्रीडर बकरे में और गाभिन होने वाली बकरी में किसी भी तरह का ब्लड रिलेशन न हो. वर्ना इससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
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