Cow: फार्म या बाड़े में नहीं, सड़क पर पलकर बड़ी होती है और वहीं दूध देती है ये खास गाय

Cow: फार्म या बाड़े में नहीं, सड़क पर पलकर बड़ी होती है और वहीं दूध देती है ये खास गाय

दूध का कारोबार करने वालों को पहले से पता होता है कि आज गायों को लेकर देवासी समाज के पशुपालकों का डेरा कहां लगा है. आज तो मोबाइल पर बात हो जाती है, पहले तो फोन भी नहीं थे. सुबह-शाम को दूध के वक्त ये लोग अपनी गाड़ी लेकर वहीं पहुंच जाते हैं. खेतों में ही गाय का दूध निकाला जाता है.

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Cow: फार्म या बाड़े में नहीं, सड़क पर पलकर बड़ी होती है और वहीं दूध देती है ये खास गायसड़क पर जातीं गाय. प्रतीकात्मक फोटो

ऊंची कद-काठी, बड़े-बड़े और मोटे सींग, सफेद रंग और तेजी से दौड़ते झुंड के झुंड. अगर हाइवे और बाईपास की सड़कों पर कुछ खास गायों के झुंड आपको देखने को मिलते होंगे. ये कांकरेज नस्ल की गाय हैं. इस नस्ल की गाय का शरीर आम देसी गाय के मुकाबले बहुत बड़ा और भारी-भरकम होता है. इनके बारे में ये भी कहा जाता है कि देसी गाय में जिस कद के सांड होते हैं वैसी तो कांकरेज नस्ल की गाय होती हैं. हालांकि इनका मूल स्थान गुजरात है, लेकिन बड़ी संख्या में राजस्थान में भी पाली जाती हैं.

खास बात ये है कि राजस्थान में साल के 12 में से चार महीने ही ये फार्म या बाड़े में रहती हैं, बाकी के आठ महीने इनके सड़कों पर ही गुजरते हैं. यहीं ये बड़ी होती है और दूध भी देती हैं. ये एक बहुत ही हॉर्ड नस्ल कही जाती है, इसलिए हर मौसम को आसानी से सह लेती है और बीमार भी नहीं पड़ती है. कांकरेज के पशुपालकों की मानें तो ये दिनभर में अधिकतम पांच लीटर तक दूध देती है. 

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सड़क किनारे खेत से चलती है कांकरेज की डेयरी

राजस्थान में कांकरेज नस्ल की गाय का पालन ज्यादातर देवासी समाज करता है. यही वो समाज है जो गाय, भेड़-बकरी को लेकर कई-कई महीने तक अपने गांव को छोड़कर दूसरे शहर और राज्यों में लेकर निकल जाते हैं. हरे चारे और पानी की कमी के चलते इन्हें अपने गांव छोड़ने पड़ते हैं. ऐसे ही एक पशुपालक हरीश ने किसान तक को बताया कि दिनभर गायों को यहां-वहां चरने के बाद शाम को सभी गाय किसी खाली पड़े खेत या खुले मैदान में आ जाती हैं. यहीं पर इनका दूध निकाला जाता है. हम अपनी गायों के साथ शहर के किस हिस्से में हैं ये बात मोबाइल से आसपास के डेयरी वालों को बता दी जाती है. शाम को दूध निकालने के वक्त डेयरी वाले अपनी गाड़ी लेकर आ जाते हैं. यहीं से वो दूध खरीदकर ले जाते हैं. 

एक झुंड में होती हैं 150 से 200 गाय

हरीश बताते हैं कि झुंड गाय का हो या फिर भेड़-बकरी का उसे रेवड़ कहा जाता है. एक झुंड यानि रेवड़ में 150 से 200 गाय होती हैं. रेवड़ छोटे पशु का हो या फिर बड़े पशु का उसे कम से कम दो लोग मिलकर संभालते हैं. सभी रेवड़ एक जगह जमा नहीं होते हैं. किसी भी एक शहर में 10 से 12 रेवड़ होते हैं. वर्ना तो पशुओं को चारे की कमी हो जाएगी. सड़क पर चलते वक्त गायों को सभालना मुश्किल काम होता है. क्योंकि सड़क पर चलने वाले वाहनों को कोई परेशानी न हो इसका ख्याल रखना पड़ता है. एक गांव में हम दो से तीन दिन तक रुकते हैं. हालांकि ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि वहां हरा चारा कितना है. इसी हिसाब से हम धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ते रहते हैं.

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