CIRG मथुरा को जमनापारी बकरी के लिए मिला राष्ट्रीय पुरस्कार, जानें वजह 

CIRG मथुरा को जमनापारी बकरी के लिए मिला राष्ट्रीय पुरस्कार, जानें वजह 

हाल ही में केन्द्री य बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने देश में पहली बार लैप्रोस्कोपिक तकनीक का इस्तेरमाल कर बकरी में आर्टिफिशल इंसेमीनेशन कराया था. जिसके 5 महीने बाद एक नर मेमने ने जन्म लिया था. मेमना अब करीब 25 दिन का हो चुका है. संस्थान की इस कामयाबी के चलते अब कम सीमेन में ज्यादा से ज्यादा बकरियों को आर्टिफिशल इंसेमीनेशन कराया जा सकेगा. इससे बकरियों की उस ब्रीड को बचाया जा सकेगा जिसकी संख्या न के बराबर रह गई है.

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CIRG मथुरा को जमनापारी बकरी के लिए मिला राष्ट्रीय पुरस्कार, जानें वजह जमनापारी बकरी नस्ल सुधार के लिए सीआईआरजी के डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार चेटली को पुरस्कार दिया गया.

करीब 43 साल पुराने केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ गया है. सीआईआरजी को बकरियों में खास जमनापारी नस्ल को बचाने और नस्ल सुधार के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक्स रीसोर्सेज की ओर से यह पुरस्कार दिया गया है. दूध और मीट के लिए पहचान बनाने वाली जमनापारी बकरी इटावा, यूपी की है. लेकिन देश के कई राज्यों में इसे पाला जाता है.  

सीआईआरजी के डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार चेटली, सीनियर साइंटिस्‍ट और जमनापारी बकरी परियोजना के प्रभारी डॉ. एमके सिंह को यह पुरस्कार दिया गया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में एनीमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट के डिप्टी डीजी डॉ. बीएन त्रिपाठी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय, पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एंव गौ अनुसंधान संस्थान, मथुरा के कुलपति प्रोफेसर एके श्रीवास्तव ने यह पुरस्कार दिया. 

आर्टिफिशल इंसेमीनेशन से बचाई जा रही हैं जमनापारी बकरी 

सीआईआरजी के डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार चेटली ने किसान तक को बताया कि हमारा संस्थान 43 साल से बकरियों पर काम कर रहा है. इसी कड़ी में जमनापारी बकरी की नस्ल को बचाने की कवायत चल रही है. सबसे पहले तो आर्टिफिशल इंसेमीनेशन का सहारा लेकर इस खास नस्ल की संख्याा बढ़ाई जा रही है. इसके लिए हम सीधे किसानों से संपर्क करते हैं. किसानों को 20-22 हजार रुपये कीमत का बकरा न खरीना पड़े इसके लिए हम उनकी आर्टिफिशल इंसेमीनेशन के जरिए मदद करते हैं. इतना ही नहीं हम बीते 4-5 साल में 4 हजार के करीब जमनापारी नस्ल के बकरे-बकरी किसानों में वितरित कर चुके हैं. 

मैदान में चारा खाती हुईं जमनापारी नस्ल के बकरे और बकरियां.
मैदान में चारा खाती हुईं जमनापारी नस्ल के बकरे और बकरियां.

जमनापारी को पुरस्कार मिलने से डिमांड बढ़ेगी 

डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार ने बताया कि यह बहुत खुशी की बात है कि जमनापारी नस्ल पर काम करने के चलते मिले इस पुरस्कार से इसकी डिमांड भी बढ़ेगी. यह नस्ल इटावा के चकरनगर की है. हमारे संस्थान में इस नस्ल‍ के करीब 500 बकरे और बकरियां हैं. दूध और मीट के लिए इन्हें खूब पाला जाता है. लोगों में अब धीरे-धीरे जागरुकता आ रही है. हमारे संस्थान की मदद से कोलकाता में एक प्राइवेट संस्थान जमनापारी नस्ल बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है. इसके अलावा कई सरकारी संस्थान भी हमारे संस्थान की मदद से नस्ल सुधार पर काम कर रहे हैं. 

किस राज्य में कितनी हैं जमनापारी बकरी 

केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक जमनापारी बकरियां पहले नंबर पर यूपी में 7.54 लाख, दूसरे पर मध्य प्रदेश 5.66 लाख, तीसरे पर बिहार 3.21 लाख, चौथे पर राजस्थान 3.09 लाख और पांचवें नंबर पर पश्चिम बंगाल में 1.25 लाख सबसे ज्यादा पाई जाती हैं. देश में दूध देने वाली कुल बकरियों की संख्या 7.5 लाख है. साल 2019 की पशु जनगणना के मुताबिक देश में 149 मिलियन बकरे-बकरी हैं. हालाकि देश में हर साल इसमे 1.5 से दो फीसद का इजाफा भी होता रहता है.
 

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