Goat Farming: बकरी और उसके बच्चों को बड़ी बीमारियों से बचाएगा CIRG का खास मकान

Goat Farming: बकरी और उसके बच्चों को बड़ी बीमारियों से बचाएगा CIRG का खास मकान

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने बकरी पालन में जगह की कमी और बीमारियों को दूर करने के लिए दो मंजिला मकान बनाया है. एक बार बनाने के बाद 18 से 20 साल तक यह मकान चल जाता है. इस मकान के दोहरे फायदे हैं. एक तो इससे जगह की कमी पूरी हो जाती है. वहीं बकरी के बच्चे तमाम तरह की बीमारियों से भी बच जाते हैं.  

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Goat Farming: बकरी और उसके बच्चों को बड़ी बीमारियों से बचाएगा CIRG का खास मकानसीआईआरजी, मथुरा ने बकरियों के लिए प्लास्ट‍िक का ये रेडीमेड हाउस तैयार किया है. फोटो क्रेडिट-किसान तक

बकरी पालन में अगर रखरखाव का खास ख्याल रखा जाए तो फिर ये 100 फीसद मुनाफे का सौदा है. लेकिन जरूरी है कि बकरी शहर या गांव में जहां भी किया जा रहा है बकरी पालन पूरी तरह से केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के बनाए नियमों के मुताबिक हो. सीआईआरजी साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन करने की सलाह देता है. यहां तक की साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन के दौरान बड़े बकरे-बकरी, छोटे बच्चे और हेल्दी, बीमार, गर्भवती बकरियों को अलग-अलग रखने की सलाह भी दी जाती है. 

यही वजह है कि बकरी और उसके बच्चों  को पेट के कीड़ों समेत कई और बीमारियों से बचाने के लिए सीआईआरजी ने एक खास तरह का मकान तैयार किया है. गांव में बकरी पालन के लिए तो ये खास मकान फायदेमंद है ही, शहर में इसके दोहरे फायदे हैं. सीआईआरजी की रिसर्च के बाद ये मकान अब बाजार में आसानी से मिल जाता है. 

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मकान में बड़े बकरे-बकरी और मिट्टी से दूर ऊपर रहते हैं बच्चे

सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने किसान तक को बताया कि बेशक दो मंजिला मकान से जगह की कमी और बचत होती है. लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि बकरी के बच्चे बीमारियों से बच जाते हैं. वो बीमारियां जिन पर अच्छी खासी रकम खर्च हो जाती है. खासतौर पर मिट्टी के संपर्क में रहने से चारे या फिर और दूसरे तरीके से मिट्टी छोटे बच्चों के पेट में जाती है. इससे उनके पेट में कीड़े पनपने लगते हैं. इससे बच्चों की मौत भी हो जाती है. यही वजह है कि इस तरह के मकान में नीचे बड़ी बकरियां रखी जाती हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर छोटे बच्चे रखे जाते हैं. ऊपरी मंजिल पर रहने के चलते बच्चे मिट्टी के संपर्क में नहीं आ पाते हैं तो इससे वो मिट्टी खाने से बच जाते हैं.

दूसरा पहलू यह भी है कि बकरियों के शेड में बहुत सारा चारा जमीन पर गिर जाता है. जिसके चलते चारे पर बकरी का यूरिन और मेंगनी (मैन्योर) भी लग जाता है. बकरी या उनके बच्चे  जब इस चारे को खाते हैं तो इससे भी वो बीमार पड़ जाते हैं. इतना ही नहीं अगर जमीन कच्ची नहीं है तो यूरिन से उठने वाली गैस से भी बकरी और उनके बच्चे बीमार पड़ जाते हैं. 

20 साल तक चलता 1.80 लाख रुपये में बना खास मकान 

डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि एक बड़ी बकरी को डेढ़ स्वायर मीटर जगह की जरूरत होती है. हमने दो मंजिला मकान का जो मॉडल बनाया है वो 10 मीटर चौड़ा और 15 मीटर लम्बा है. इस मॉडल मकान में नीचे 10 से 12 बड़ी बकरी रख सकते हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर 17 से 18 बकरी के बच्चों को बड़ी ही आसानी से रख सकते हैं. और इस साइज के मकान की लागत 1.80 लाख रुपये आती है. इस मकान को बनाने में इस्तेमाल होने वाली लोहे की एंगिल और प्लास्टिक की शीट बाजार में आसानी से मिल जाती है. रहा सवाल ऊपरी मंजिल पर बनाए गए फर्श का तो कई कंपनियां इस तरह का फर्श बना रही हैं और आनलाइन मिल भी रहा है. 

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बकरियों के ऊपर नहीं गिरती है मेंगनी

बकरियों के लिए बनने वाले प्लास्टिक के इस दो मंजिला मकान में ऊपरी मंजिल की मेंगनी और बच्चों का यूरिन नीचे बड़ी बकरियों पर न गिरे इसके लिए बीच में प्लास्टिाक की एक शीट लगाई जाती है. शीट की इस छत का ढलान इस तरह से दिया जाता है कि यूरिन और मेंगनी मकान के किनारे की ओर गिरती हैं. दो मंजिला मकान के इस मॉडल में बकरी की मेंगनी सीधे मिट्टी के संपर्क में नहीं आती है. जिससे मेंगनी पर मिट्टी नहीं लगती है और उसकी खाद बनाने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आती है.  

 

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