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राजस्थान के बीकानेर में है ऊंटों का म्यूजियम, जानें इसके बारे में सबकुछ

राजस्थान के बीकानेर में है ऊंटों का म्यूजियम, जानें इसके बारे में सबकुछ

राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र यानी एनआरसीसी राजस्थान के बीकानेर शहर में है. इसके कैंपस में कैमल म्यूजियम बना हुआ है. इस म्यूजियम में ऊंटों से जुड़ी तमाम जानकारियों को बेहद करीने से सजाकर काफी जानकारियों के साथ यहां आने वाले पर्यटकों के लिए रखा गया है.

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बीकानेर के राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में है कैमल म्यूजियम. फोटो- माधव शर्मा बीकानेर के राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में है कैमल म्यूजियम. फोटो- माधव शर्मा

आपने इंसानों, इतिहास और साहित्य के साथ-साथ जंगली जानवरों का म्यूजियम देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी ऊंटों का म्यूजिमय देखा है? अगर नहीं, तो यह खबर आपके लिए है. दरअसल राजस्थान के बीकानेर जिले में है राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र यानी एनआरसीसी के कैंपस में कैमल म्यूजियम बना हुआ है. इस म्यूजियम में ऊंटों से जुड़ी तमाम जानकारियों को बेहद करीने से सजाकर काफी जानकारियों के साथ यहां आने वाले पर्यटकों के लिए रखा गया है. इस केन्द्र को पांच जुलाई 1984 को स्थापित किया गया था. तब से यह केन्द्र ऊंटों के संवर्धन, विकास और इससे जुड़ी तमाम रिसर्च के लिए काम कर रहा है. 

ऊंटों से जुड़ी जानकारी, उसकी विकास यात्रा, ऊंट के सामाजिक-धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को पर्यटकों और केन्द्र में आने वाले लोगों को बताने के लिए यह म्यूजियम बनाया गया है. म्यूजियम देखने के लिए पर्यटकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता. हालांकि सेंटर में प्रवेश के लिए 50 रुपए चार्ज किए जाते हैं. साथ ही यह सोमवार से शुक्रवार तक शाम छह बजे तक खुला रहता है. 

ऊंटों की नस्ल और सामान से जुड़ी जानकारी 

ऊंटों के इस संग्रहालय में घुसने से पहले ही ऊंट का एक स्कल्पचर बनाया गया है. साथ ही अंदर जाने पर भारत में पाए जाने वाले ऊंटों की नस्लों के बारे में जानकारी दी गई है. जिसमें बीकानेरी, जैसलमेरी, मेवाड़ी, जालौरी और गुजरात के कच्छ में पाए जाने वाले कच्छी ऊंट आदि शामिल हैं. ऊंटों की इन सभी नस्लों की विशेषताएं, पहचानने के तरीके और इनकी उपयोगिता के बारे में विस्तार से म्यूजियम में बताया गया है.  

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म्यूजियम में फोटो पर लिखकर समझाया गया है कि जैसलमेरी ऊंट पूरी ऊंचे और पतली टांगों वाले होते हैं. इनकी गर्दन पतली और लंबी होती है और ये काफी फुर्तीले होते हैं. इसीलिए इन्हें दौड़ के लिए भारतीय सेना भी इस्तेमाल करती है. इसी तरह बीकानेरी और अन्य नस्लों के बारे में भी बताया गया है. इसके अलावा म्यूजियम में ऊंटनी के दूध के तमाम फायदों के बारे में विस्तार से बताया गया है.

ऊंटों की हड्डी और बालों से बने सामान की प्रदर्शनी

इस म्यूजियम में ऊंटों की उपयोगिता दिखाने पर खासा महत्व दिया गया है. इसीलिए ऊंट की चमड़ी, हड्डी, बालों से बनने वाले विभिन्न उत्पादों के बारे में जानकारी दी गई है. इसमें जिंदा ऊंट के बालों से दरी, कंबल, पहनने के गर्म ऊनी कपड़ों के बारे में बताया है.

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साथ ही ऊंट के मरने के बाद उसकी हड्डियों और चमड़ी से बने सजावटी सामानों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है. साथ ही ऊंटों की काठ यानी बैठने की पलानों की भी इस म्यूजियम में प्रदर्शनी लगाई गई है. यह क्षेत्र के हिसाब से छोटी-बड़ी, लकड़ी का अंतर और उसमें क्षेत्रीयता के हिसाब से वहां की संस्कृति के बारे में अंकित जानकारी शामिल है. 

सेना का अभिन्न अंग है ऊंट

ऊंट सिर्फ खेती-बाड़ी ही नहीं बल्कि सेना का भी हमेशा से अभिन्न अंग रहा है. मुगल काल में जब पश्चिमी राजस्थान में आक्रमण हुए तब वहां के राजाओं ने ऊंटों की मदद ली थी. इतना ही नहीं ऊंटों ने प्रथम और दूसरे विश्व युद्ध में भी भाग लिया था. ऊंटों के इस महत्व को देखते हुए ही बीकानेर के राजा गंगासिंह ने अपनी सेना में ऊंटों की एक टुकड़ी बनाई. जिसे गंगा रिसाला नाम दिया. आज भी भारतीय सेना में यह 13 ग्रेनिडियर नाम से शामिल है. बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स रेगिस्तानी जिलों में भारत-पाकिस्तान की सीमा की चौकसी ऊंटों पर बैठकर करती है. इन्हीं सब महत्वपूर्ण बातों को बीकानेर के उष्ट्र अनुसंधान सेंटर में बताया गया है. 

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