देश में सबसे अधिक ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं. वहीं, राजस्थान में सबसे ज्यादा ऊंटों की संख्या जैसलमेर जिले में है. देश के 85 फीसदी ऊंट अकेले राजस्थान में हैं, लेकिन कई वजहों के चलते बीते कुछ सालों से ऊंटों के अस्तित्व पर संकट है. इसीलिए राजस्थान सरकार ने ऊंटों के संरक्षण के लिए एक योजना शुरू की. इसके तहत ऊंट पालने वाले पशुपालकों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है. इसका उद्देश्य ऊंटों का संरक्षण और ऊंट प्रजनन को बढ़ावा देना है. पशुपालकों ने इस योजना का दिल खोलकर स्वागत किया है. इसीलिए सरकार ने जितना लक्ष्य रखा था, उससे कहीं अधिक ऊंट पालकों ने इस योजना में आवेदन कर दिए हैं.
उष्ट्र संरक्षण योजना में पशुपालन विभाग ने पांच हजार ऊंट पालकों को वित्तीय सहायता का लक्ष्य रखा था. लेकिन योजना में अब तक प्रदेशभर से 17 हजार आवेदन विभाग को मिल चुके हैं. ऐसे में कम बजट के कारण नए पशुपालकों को प्रोत्साहन राशि नहीं भेजी गई है. इसीलिए विभाग ने सरकार ने योजना का बजट बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेजा है. पहले सरकार ने इस योजना के लिए 2.50 करोड़ रुपये का बजट रखा था.
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इसमें से 80 प्रतिशत बजट यानी दो करोड़ रुपये ऊंट पालकों को ट्रांसफर किए जा चुके हैं. वहीं, बाकी बचे पशुपालकों को लाभ देने के लिए विभाग ने और बजट की मांग सरकार से की है. इसके लिए विभाग की ओर से प्रस्ताव सरकार को भेज दिया गया है.
बीते कुछ सालों में राजस्थान में ऊंटों की संख्या में लगातार कमी हुई है. फिलहाल राजस्थान में 2.52 लाख के कुछ अधिक ही ऊंट बचे हैं, जो 10 साल पहले तक 4.5 लाख थी. इसीलिए राज्य सरकार ने ऊंटों के प्रजनन को प्रोत्साहन देने के लिए ऊंट संरक्षण योजना शुरू की है. इसके तहत ऊंटनी के ब्याने पर ऊंट पालकों को सीधे ही उनके खाते में पांच हजार रुपये ट्रांसफर किए जा रहे हैं. इसके लिए आवेदन के बाद टोडिया (ऊंटनी के बच्चे को टोडिया कहते हैं) के जन्म से दो महीने का होने तक नजदीकी पशु चिकित्सक से माध्यम से भौतिक सत्यापन किया जाता है.
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इसके बाद टोडिया के एक साल का होने पर दूसरा भौतिक सत्यापन किया जाएगा. इसके बाद ऊंट पालक के खाते में दूसरी किश्त के पांच हजार रुपये डाले जाएंगे. इस योजना का लाभ ऊंटनी के दूसरी बार ब्याने पर भी दिया जाएगा, लेकिन ऊंटनी का रजिस्ट्रेशन 15 महीने पुराना होना चाहिए. ऊंट पालक वेबसाइट पर आवेदन कर सकते हैं.
जोधपुर ज़िले के खाटावास निवासी ऊंटपालक जागाराम को इस योजना का लाभ मिला है. वे कहते हैं, “ऊंटने के ब्याने के बाद खाते में पांच हजार रूपए आए. इससे ऊंटनी के ब्याने के बाद जो खर्चा हुआ उसकी भरपाई हो गई. दूसरी किश्त भी आएगी तो उससे टोडिये की सार-संभाल करने में आसानी होगी.
ऊंट हमारे लिए सिर्फ जानवर नहीं है, बल्कि हमारे परिवार की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है. हालांकि अब खेती और परिवहन में ऊंट की उपयोगिता कम हो गई है, फिर भी बहुत सारे कामों में ऊंट की उपयोगिता अभी भी है.
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