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झारखंड के इस गांव में ATM कही जाती है ब्लैक बंगाल, बकरी पालन पर निर्भर है आधा गांव

झारखंड के इस गांव में ATM कही जाती है ब्लैक बंगाल, बकरी पालन पर निर्भर है आधा गांव

समय समय पर बकरियों का गांव में टीकाकरण किया जाता है. किसानों को सही समय पर दवाएं दी जाती है. इसके कारण गांव में बीमारियो से बकरियों की मौत नहीं होती है. गांववालों के लिए बकरी पालन ATM की तरह है. जिसे कभी भी जरूरत पड़ने पर बेचकर पैसे कमा सकते हैं.

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चामगुरु गांव में घर के बाहर बकरियां                        फोटोः किसान तक चामगुरु गांव में घर के बाहर बकरियां फोटोः किसान तक

बकरीपालन रोजगार का एक सशक्त साधन है, झारखंड में बकरीपालन को एटीएम कहा जाता है. क्योंकि इसमे जब भी किसान को जरूरत होती है, वह इसे बेचकर पैसे जुटा लेता है. राजधानी रांची के कांके प्रखंड का एक गांव है चामगुरू. इस गांव की एक अलग पहचान है. क्योंकि इस गांव में बकरियो की संख्या अधिक है. गांव में जब प्रवेश करते हैं तो खाली जगहों पर आपको बकरियां चरती हुई दिखाईं देंगी. क्योंकि गांव वालों की मानें तो यहां के 50 फीसदी से अधिक परिवारों का रोजगार बन चुका है बकरी पालन और इस रोजगार में उतरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

चामगुरू गांव में दशकों के किसान परिवारों के लोग बकरी पालन करते आ रहे हैं, पर साल 2011 के बाद इसमें काफी सुधार आया जब कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा गांव को गोद लिया गया. यहां गांव को गोद लेने का तात्पर्य समझाते हुए गांव के बकरी पालक आबिद अंसारी ने बताया कि बकरी पालन के जरिए गांव के किसानों को आजीविका से जोड़ने के लिए और उनकी कमाई बढ़ाने के लिए ग्रामीणों को मदद की गई, इसके तहत गांव में बकरियो की नस्ल में सुधार किया गया और उन्हें बीमारियों से मुक्त करने के उपाय किए गए. 

ब्रीड में किया गया सुधार

आबिद अंसारी बताते हैं कि बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा  गांव में नस्ल सुधार प्रक्रिया के तहत ब्लैक बंगाल ब्रीड के बकरे ग्रामीणों को दिए गए थे. इसके बाद गांव में नस्ल सुधार का काम शुरू हुआ. यह प्रक्रिया दो बार दोहराई गई. इस तरह से गांव में बकरियों की नस्ल में सुधार हुआ साथ ही ग्रामीणों में बकरी पालन को लेकर थोड़ी जागरूकता भी आई. साथ ही जागरूकता के साथ बकरी पालन करने के कारण उनकी कमाई भी बढ़ी. 

बकरियों का रखा जाता है पूरा रिकॉर्ड

आबिद ने बताया कि फिलहाल गांव में बकरियों की संख्या 1300-1400 के बीच है. समय समय पर बकरियों का गांव में टीकाकरण कराया जाता है. किसानों को सही समय पर दवाएं दी जाती हैं. इसके कारण गांव में बीमारियो से बकरियों की मौत नहीं होती है. किसानों की कमाई बढ़ती है. बाजार को लेकर उन्होंने कहा कि व्यापारी उनके गांव में आते हैं और बकरियों को खरीदकर ले जाते हैं. इसके अलावा पास में ही उरगुटू बाजार लगता है जहां पर जानवरों का कारोबार होता है. गांव में बकरियों की टैगिंग की जाती है इससे उनका पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है. 

डेढ़ लाख होती है कमाई

चामगुरू गांव के किसान विनोद उरांव बताते हैं कि वह पिछले 32 सालों से बकरी पालन कर रहे हैं. बकरी पालन से सालाना एक से डेड़ लाख रुपये की कमाई वो करते हैं. उन्होंने कहा की गांव के कई परिवार अब बकरीपालन में आने के बाद काम करने के लिए बाहर नहीं जाते हैं. यह गांव में एक बड़ा बदवाल है. वरना एक वक्त था जब गांव के कई परिवार काम करने के लिए बाहर जाते थे. अब बकरी पालन से गांव में ही रोजगार मिल गया है.

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