देश के कई राज्य इस समय भयंकर गर्मी की चपेट में हैं. आसमान से आग बरस रही है. तेज धूप के कारण खेतों में खड़ी सब्जियों और फसलों को भी नुकसान हो रहा है. साथ ही मवेशियों को भी उससे बचाने की जरूरत है. ऐसे मौसम में मछली पालन करने वाले किसानों को भी अपने तालाब का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. इस गर्मी से मछलियों को भी नुकसान हो सकता है. तेज धूप के कारण पानी का तापमान गर्म हो जाता है. इससे पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. साथ ही ऊपरी सतह पर पानी का तापमान गर्म हो जाता है जिससे मछलियों में रोग होने का खतरा बढ़ जाता है.
ऐसे मौसम में मछलियों का खयाल कैसे रखें, इसके बारे में बताते हुए केंद्रीय मात्सियकी अनुसंधान संस्थान मोतीपुर के वैज्ञानिक डॉ मो अकलाकुर ने कहा कि मछलियों को स्वस्थ रखने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि पानी का पारामीटर सही रहना चाहिए. किसान चाहे किसी भी पद्धति से मछली पालन कर रहे हों, पारंपरिक तालाब हो, टैंक हो या फिर आधुनिक तकनीक से लैस बॉयोफ्लॉक या फिर आरएएस हो, इन सभी में पानी के पैरामीटर का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. चूंकि बॉयोफ्लॉक और आरएएस आधुनिक तकनीक से लैस हैं, इनमें पानी धूप के कारण गर्म नहीं होता है क्योंकि पानी का बहाव होता रहता है और एरिएटर के जरिए ऑक्सीजन की सप्लाई जारी रहती है.
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डॉ अकलाकुर ने कहा कि तेज धूप के कारण पानी का जब तापमान बढ़ता है तो तालाब में इसके दो प्रभाव पड़ते हैं. पहला यह होता है कि पानी बहुत तेजी से सूखता है और पानी गर्म भी होता है. तापमान बढ़ने के कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. इसके कारण मछलियों को सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है. इसलिए मछली रात के समय सतह पर आने लगती है. इसलिए इससे बचाव के लिए पानी में आक्सीजन की मात्रा बनाए रखनी चाहिए. साथ ही तालाब में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते रहना चाहिए ताकि पानी का तापमान नियंत्रित और सामान्य रहे. तालाब, बॉयोफ्लॉक औऱ आरएएस इन तीनों में ही ग्राउंड वाटर डालना चाहिए ताकि उसका तापमान अधिकतम 30-32 डिग्री पर बना रहे. उन्होंने कहा कि किसान के पास पानी डालने की सुविधा नहीं है और तापमान बढ़ जाता है तो स्प्रिंकलर लगा कर स्प्रे किया जा सकता है ताकि तापमान सामान्य बना रहे.
पानी का तापमान अधिक होने पर कुछ-कुछ मछलियों में जैसे कॉमन कार्प और अमूर में बीमारी आने की संभावना रहती है क्योंकि यह मछलियां ठंडे प्रदेश की होती हैं. ठंड में ये मछलियां काफी अच्छा रहती हैं पर बहुत गर्मी पड़ने पर इनमें परेशानी शुरू हो जाती है. इसिलए अगर गर्मी से कारण तालाब में मछलियों की मौत होती है तो सबसे पहले मरने वाली मछली कॉमन कार्प ही होती है. इसके बाद ग्रास कार्प और दूसरी कार्प मछलियों की मौत होती है. इसलिए हमेशा इस बात का खयाल रखना चाहिए कि तापमान 28 से 32 डिग्री के बीच में बना रहना चाहिए.
गर्मी के कारण तालाब या किसी भी मछली पालन की पद्धति में थर्मल स्टेटिफिकेशन होने की संभावना रहती है. खास कर उसमें जहां पर पानी का मिश्नण नहीं हो रहा है. ऐसे में उपर जो पानी गर्म हो रहा है वो उपर ही रहता है और जो पानी निचली सतह पर रहता है वो ठंडा रहता है. पर जब और गर्मी बढ़ती है तो ऊपर का पानी और अधिक गर्म हो जाता है. इससे ऊपर का पानी ऊपर और नीचे का पानी नीचे रह जाता है उसे थर्मल स्टेटिफिकेशन कहा जाता है. यह मिट्टी के तालाब और लाइन पॉन्ड तालाब में ज्यादा हो सकती है. इसलिए इससे बचने के लिए पानी को मिलाते रहना चाहिए. इससे थर्मल स्टेटिफिकेशन नहीं होगा और पानी का तापमान भी सामान्य बना रहेगा. साथ ही ऑक्सीजन की मात्रा भी पानी में बनी रहेगी. इसके अलावा जो ऑर्गेनिक क्लॉट तालाब की तलछटी में जमा रहता है वो उपर आएगा इससे बैक्टिरिया का खतरा खत्म हो जाएगा.
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गर्मी के दिनों में इसके प्रभाव से होने वाली बीमारियों का जिक्र करते हुए डॉ अकलाकुर ने कहा कि इन दिनों अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि मछलियों में बेक्टीरियल या वायरस जनित बीमारियां होती हैं. फंगस से बीमारी नहीं होती है. इससे बचावे के लिए पानी को मिलाते रहें. साथ ही गर्मी के दिनों में जब तालाब में किसान चारा डालें तो उसमें यीस्ट (yeast) की मात्रा मिला दें. इससे बचा हुआ खाना खत्म हो जाएगा. इसके अलावा 15 दिनों के अंतराल पर सुबह के वक्त चूना और प्रोबॉयोटिक का इस्तेमाल करें. इससे तालाब की उत्पादकता बनी रहेगी.
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