इस तकनीक के इस्‍तेमाल से किसान ने बांस पर उगाई सब्जी, प्रति बीघा हो रहा 2 लाख रुपये मुनाफा

इस तकनीक के इस्‍तेमाल से किसान ने बांस पर उगाई सब्जी, प्रति बीघा हो रहा 2 लाख रुपये मुनाफा

राजस्‍थान का एक किसान दूसरे राज्‍य अपने दोस्‍त के घर गया तो उसे खेती का अनाेखा तरीका देखने को मिला और उसकी जिंदगी बदल गई. सीकर के रहने वाले किसान दिनेश ने अपने दोस्‍त को बुलाकार अपने खेत में लौकी की खेती शुरू की और अब उन्‍हें तगड़ा मुनाफा हो रहा है.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Dec 17, 2024,
  • Updated Dec 17, 2024, 6:39 PM IST

राजस्‍थान के सीकर जिले के एक छोटे-से गांव बेरी के रहने वाले किसान की दोस्‍त की सलाह से जिंदगी ही बदल गई. 12वीं पास दिनेश गांव में ही अपनी जमीन पर खेती करते हैं. वे 6 साल पहले यूपी में रहने वाले अपने दोस्‍त नबी के घर गए थे. इस दौरान उन्‍होंने बांस के स्ट्रक्चर पर सब्जियों की खेती होते देखी. वहीं, दोस्त नबी भी इसी तकनीक से खेती कर रहा था तो दोस्‍त से इसके बारे में पूछा. तब नबी ने बताया कि यह जर्मन तकनीक है, जो  बहुत फायदेमंद हैं. 

नबी ने दिनेश को भी सलाह दी कि वह अपने गांव में इस तकनीक से खेती करे. इसमें सि‍र्फ एक बार स्ट्रक्चर लगाने पर ही पैसा खर्च होता है, जो बहुत जल्‍द ही कमाई होने पर निकल जाता है. जमीन पर बिछने वाली सब्जियों के मुकाबले बांस के स्‍ट्रक्‍चर पर लगी सब्जियों की गुणवत्‍ता बढ़ि‍या मिलती है.

दोस्‍त को बुलाया अपने गांव

दैनिक भास्‍कर की रिपोर्ट के मुताबिक, दिनेश ने बताया कि वह ज‍ब गांव लौटे तो उन्‍होंने यूट्यूब पर भी इस तकनीक के वीडियो देखे और फिर दोस्‍त को गांव बुलाया. दिनेश ने दोस्‍त की मदद से 2019 में कुल 30 बीघा जमीन में से दो बीघा जमीन में जर्मन तकनीक से लौकी की खेती शुरू की. दिनेश ने बताया कि उन्‍होंने 2 बीघा खेत जोतने के बाद लौकी के बीज, 400 बांस, लोहे और प्लास्टिक तार खरीदने पर 2 लाख रुपये खर्च किए और खेत में जर्मन तकनीक से स्‍ट्रक्‍चर तैयार किया और 10x10 फीट की दूरी पर 5-5 बीज लगाए.

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बूंद-बूंद सिंचाई तकनीक का इस्‍तेमाल किया

कुछ दिन में पौधे निकलने के बाद उनके पास बांस रोप दिए और बाद में बेलों को बांस पर चढ़ा दिया. दिनेश ने लौकी की सिंचाई के लिए बांसों के जरिए ड्रिप इरिगेशन यानी बूंद-बूंद सिंचाई तकनीक का इस्‍तेमाल किया. बाद में उन्‍होंने ऊपर के सिरों में पर तारों का जाल बांधा और बेलों (लताओं) को उस पर फैलने  दिया. इसमें उन्‍हें खरपतावार से निपटने में भी आसानी हुई.

महंगी बिकती है इस तकनीक से उगी लौकी

डेढ़ महीने बाद ही उन्‍हें लौकी की उपज मिलने लगी, जो बहुत ही साफ-सुथरी, चमकदार और अच्‍छी क्वालिटी की हुई. साथ ही मंडी में भी अच्छा रेट मिलने लगा. दिनेश ने बताया कि सामान्य लौकी के मुकाबले उनके खेती की लौकी 5-6 रुपए महंगी बिकती है. इस सीजन में उन्‍हें बीघे के हिसाब से 2 लाख से ज्यादा का मुनाफा हुआ है. इस तकनीक से सिर्फ हल्‍की सब्जियां- खीरा, तोराई, ककड़ी, करेला और लौकी ही उगाई जा सकती हैं. 

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