कृषि क्षेत्र में कुछ अलग करने की चाहत के चलते अब तेजी से युवा अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. नए स्टार्टअप भी तेजी से शुरू हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जनपद की मिश्रौलिया के टेनूआ गांव के रहने वाले नियाज ने भी कुछ अलग करने की चाहत के चलते अपनी नौकरी को छोड़कर गांव में केले की खेती करने लगे. घर से दूर रहकर वह दिल्ली में 16000 का वेतन पाते थे लेकिन अब परंपरागत खेती से कुछ अलग करने कि उनकी सोच को अब लोग सलाम कर रहे हैं. उन्होंने गांव में ही केले की खेती शुरू की इस खेती के माध्यम से वह दूसरों को भी रोजगार बांट रहे हैं.
सिद्धार्थ नगर जनपद की मिश्रौलिया के रहने वाले नियाज अहमद नौकरी से कभी संतुष्ट न रहे फिर उन्होंने अचानक मन बनाया कि वह गांव में खेती के क्षेत्र में कुछ अलग करेंगे, फिर क्या उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे डॉ.अख्तर हुसैन से केले की खेती की ट्रेनिंग ली और फिर टिशु कल्चर के माध्यम से शुरू कर दी खेती. नियाज अहमद ने परास्नातक की पढ़ाई भी की है. वह गांव में बच्चों को पढ़ाते भी हैं और खेती भी करते हैं. नियाज अहमद ने बताया कि टिश्यू कल्चर के पौधे से केले की खेती कर रहे हैं. 4.5 बीघा खेत में 20 हजार पौधे लगाए हैं. उन्हें अब खुशी होती है कि दिल्ली में उन्हें जितना वेतन प्राप्त होता था उससे अधिक श्रमिकों की मजदूरी में बांट देते हैं.
सिद्धार्थनगर के रहने वाले किसान नियाज अहमद बताते हैं कि टिश्यू कल्चर के माध्यम से 3 साल पहले उन्होंने केले की खेती शुरू की. इसमें पौधों की एक समान बढ़ोतरी होती है और फल भी एक समान तैयार होता है. टिश्यू कल्चर में पौधे कम मरते हैं और नर्सरी के अपेक्षा लागत भी काम आती है. इस विधि से 15 से 16 महीने में केला तैयार हो जाता है. एक एकड़ में ₹30000 की लागत आती है जबकि इसमें एक से सवा लाख रुपए का केला तैयार हो सकता है. टिश्यू कल्चर केले के एक पौधे पर 17 रुपए का खर्च आता है जबकि 2 साल में 14 रुपए का सरकार से अनुदान भी मिलता है.
सिद्धार्थ नगर जनपद में अब बड़े पैमाने पर केले की खेती किस करने लगे हैं. जिले में कोई भी बड़ी मंडी नहीं है. इसके अलावा प्रोसेसिंग यूनिट भी नहीं है. नियाज अहमद बताते हैं की प्रोसेसिंग यूनिट होती तो किसानों का फायदा बढ़ जाता. आंधी तूफान में केला गिर जाता है तो इससे किसानों को बड़ा नुकसान होता है. प्रोसेसिंग यूनिट से कच्चे केले की बिक्री भी अच्छी कीमत पर होती है. काला नमक चावल की तरह केले की खेती को भी सुविधा मिलनी चाहिए.