जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पारंपरिक चावल के बीजों को बचाने और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखते हुए, असम के जोरहाट जिले के मेलेंग गांव में महान चंद्र बोरा ने देशी बीजों, विशेष रूप से पुराने धान बीजों के संरक्षण का बीड़ा उठाया है और पिछले 20 वर्षों से इन्हें संरक्षित कर रहे हैं, ताकि किसान संकर (हाइब्रिड) किस्मों की जगह पारंपरिक और जलवायु परिवर्तन के दौर में देशी बीजों का इस्तेमाल करके अपनी उपज को सुनिश्चित कर सकें और लाभ ले सकें. उनका मानना है कि पारंपरिक बीज प्राकृतिक देन हैं, जो हर परिस्थिति में बेहतर प्रदर्शन करते हैं. इन बीजों के विलुप्त होने से बचाने के लिए उनका संरक्षण किया जा रहा है, ताकि भविष्य में इनका इस्तेमाल किया जा सके. इसके लिए महान चंद्र बोरा ने अन्नपूर्णा बीज लाइब्रेरी बनाई की है.
महान चंद्र बोरा एक किसान परिवार से हैं. साल 2002 में पढ़ाई के बाद वे खेती में जुट गए और देशी धान के बीज इकट्ठा करने शुरू कर दिए. इसके बाद उन्होंने दूसरे किसानों को भी बीज देकर उन्हें उगाने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू किया. इस तरह उन्होंने एक बड़ा बीज लाइब्रेरी नेटवर्क खड़ा कर लिया.
बीज लाइब्रेरी से बागवानी और खेती में रुचि रखने वाले लोगों को मुफ्त या न्यूनतम शुल्क पर बीज उपलब्ध कराए जाते हैं. किसान, बीजों को उगाने के बाद कुछ बीज वापस लाइब्रेरी में लौटाते हैं और दूसरे किसानों के साथ आदान-प्रदान करते. इससे न सिर्फ बीजों का संरक्षण हो जाता है, बल्कि यह कृषि समुदाय में सहयोग और समझ का एक मजबूत नेटवर्क भी बनाता है.
महान चंद्र बोरा ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण असम में कृषि क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. सूखा, बाढ़ और मौसम की अनियमितताएं किसानों के लिए समस्याएं पैदा कर रही हैं, लेकिन बोरा का कहना है कि पारंपरिक बीजों की विविधता ही किसानों को इन चुनौतियों से उबार सकती है. जैसे, असम की बाढ़-प्रभावित भूमि के लिए उपयुक्त "बाओ धान" जैसी किस्में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सहन करने में सक्षम हैं.
बीज लाइब्रेरी के माध्यम से बोरा ने न सिर्फ स्थानीय बीजों का संरक्षण किया, बल्कि उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर पर फैलाने का भी काम किया. उनकी बीज लाइब्रेरी से दक्षिण के राज्यों सहित महाराष्ट्र के किसान भी बीज मंगाकर खेती करते है. वर्तमान में, अन्नपूर्णा बीज लाइब्रेरी 500 से अधिक देशी धान की किस्मों का संग्रह रखती है, जिनमें से कई किस्में अब लगभग विलुप्त हो चुकी हैं. बोरा का मानना है कि इन बीजों का संरक्षण और पुन: इस्तेमाल जलवायु संकट से निपटने का एक प्रभावी तरीका है.
बोरा ने अपनी लाइब्रेरी को और भी बड़ा बनाया और इसे कैलिफोर्निया स्थित रिचमंड ग्रोज़ सीड लेंडिंग लाइब्रेरी से जोड़ दिया. यह साझेदारी बीज उधार प्रणाली को एक वैश्विक रूप देती है, जिससे दुनिया भर के किसान और बागवानी करने वाले लोग एक-दूसरे से बीजों का आदान-प्रदान कर सकते हैं. अन्नपूर्णा बीज लाइब्रेरी के तहत बहुत से किसानों ने धान की किस्म से लाभ उठाया है.
उन किसानों इन देशी बीजों को उगाकर कम बारिश के बावजूद अपनी फसल में सफलता पाई. इसी तरह, बहुत से किसान विभिन्न किस्मों के धान उगाए और खुद के इस्तेमाल के लिए उनका भंडारण किया. महान चंद्र बोरा अपने पुराने संरक्षित चावल के बीज कई कृषि विश्वविद्यालयों और रिसर्च सेंटर को दे चुके हैं, जिससे कि इस बीज को संरक्षित किया जा सके.
भले ही बोरा ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की हो, लेकिन वह मानते हैं कि उन्हें अभी और अधिक काम करना बाकी है. वह इन बीजों के बारे में आने वाली पीढ़ी को जानकारी देने के लिए स्कूलों के बच्चों को भी पढ़ाते हैं और इनके गुण और लाभ के बारे में बताते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी धरोहर को महत्व दें. आज भी कई पारंपरिक किस्में विलुप्त हो रही हैं और इन बीजों को बचाने की जरूरत है.
बोरा का सपना है कि उनके प्रयासों से न केवल असम, बल्कि देश भर में बीजों का आदान-प्रदान और संरक्षण बड़े पैमाने पर हो, ताकि किसान अपनी जमीन पर जैविक और पारंपरिक खेती से न केवल अच्छा उत्पादन पा सके, बल्कि जलवायु संकट से भी निपटा जा सके. महान चंद्र बोरा मानते हैं कि बीजों के संरक्षण का कार्य केवल किसानों तक सीमित नहीं रहना चाहिए.
उनका कहना कि पारंपरिक खेती और जैविक पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, इस तरह से हम न केवल अपनी कृषि व्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर संकटों से भी मुकाबला कर सकते हैं. यह एक सामूहिक प्रयास है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का योगदान अहम है.