लॉकडाउन में पढ़ाई छूटी तो मुंबई से गांव लौटा युवक, अब ड्रैगन फ्रूट की खेती से लाखों में कमाई

लॉकडाउन में पढ़ाई छूटी तो मुंबई से गांव लौटा युवक, अब ड्रैगन फ्रूट की खेती से लाखों में कमाई

जैसा कि आपको पता है, कोरोना लॉकडाउन के दौरान कई लोगों की जिंदगी बदल गई. पोलाडपुर के एक युवक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. इनका नाम अमर राजेंद्र कदम है जब ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे. तब उनके पिता राजेंद्र कदम ने अमर को सलाह दी कि वे पोलाडपुर तालुका में अपने गांव नानेघोल के पास की जमीन पर खेती करके अपना गुजारा करें.

ड्रैगन फ्रूट की खेती (सांकेतिक तस्वीर)ड्रैगन फ्रूट की खेती (सांकेतिक तस्वीर)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jan 06, 2025,
  • Updated Jan 06, 2025, 2:17 PM IST

महाराष्ट्र के रायगढ़ में पोलाडपुर तालुका के युवा अमर राजेंद्र कदम ने कभी सोचा नहीं था कि कोरोना में उन्हें मुंबई जैसी शहर छोड़नी होगी और गांव का रुख करना होगा. अमर राजेंद्र कदम रायगढ़ के गांव नानेघोल के रहने वाले हैं. वे गांव लौटे और प्रयोग के तौर पर खेती शुरू कर दी. खेती भी उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की चुनी क्योंकि उसके बारे में उन्होंने पढ़ा और सुना था. उनका यह प्रयोग सफल रहा और आज वे ड्रैगन फ्रूट से हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं.

जैसा कि आपको पता है, कोरोना लॉकडाउन के दौरान कई लोगों की जिंदगी बदल गई. पोलाडपुर के एक युवक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. इनका नाम अमर राजेंद्र कदम है जब ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे. तब उनके पिता राजेंद्र कदम ने अमर को सलाह दी कि वे पोलाडपुर तालुका में अपने गांव नानेघोल के पास की जमीन पर खेती करके अपना गुजारा करें. 

प्रयोग के तौर पर की खेती

बचपन में कीचड़ वाली मिट्टी को छूने से भी अमर को घिन आती थी, लेकिन इस सलाह के बाद अमर ने सोच में पड़ गए. इसके बाद अमर ने कोंकण में खासकर पोलाडपुर तालुका की ढलान वाली जमीन पर ड्रिप सिंचाई के जरिए सिंचाई की जा सकने वाली फसलों के साथ प्रयोग करने का फैसला किया.

'महाराष्ट्र टाइम्स' की रिपोर्ट के मुताबिक, अमर ने पारंपरिक चावल की खेती के बजाय शुरुआत में तरबूज, अनानास और गेंदा फूल जैसी फसलें उगाईं. इस दौरान मिट्टी और जलवायु को देखते हुए अमर को ड्रैगन फ्रूट की खेती का विचार आया. पोलाडपुर तालुका कृषि विभाग के मोरे, गुंड और भरत कदम ने अमर को ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू करने के लिए पौधे पाने में मदद की. 

कृषि विभाग की मिली मदद

पंचायत समिति कृषि विभाग के अरुण धीवरे ने बाड़ के लिए सब्सिडी देने का इंतजाम किया. इसके बाद अमर कदम ने अपनी पहल पर ड्रैगन फ्रूट की खेती में काम करना शुरू कर दिया. अमर ने खेत पर बाड़ के लिए सीमेंट के खंभे और जाल भी बनाए और एक साइड बिजनेस भी शुरू किया. 

शुरुआत में 350 ड्रैगन फ्रूट के लिए खंभे लगाने वाले अमर ने अब तक 1200 ड्रैगन फ्रूट के लिए खंभे लगा दिए हैं. शुरुआत में दो साल की कड़ी मेहनत और परिश्रम के बाद, अमर को अच्छी उपज मिलने में संदेह था. लेकिन अमर ने इस खेती को जारी रखा. अमर को संदेह था कि ड्रैगन फ्रूट के मार्केट पर विश्व बाजार में चीन और वियतनाम का कब्जा है. इसलिए शायद ही उनकी उपज को अच्छा बाजार और दाम मिल सके. इसके बाद भी अमर ने ड्रैगन फ्रूट की खेती जारी रखी.

4 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा

इस खेती का नतीजा रहा कि महज दो साल में खर्च निकालने के बाद शुद्ध लाभ खर्च से दोगुना होने लगा. यह खेती 25 साल तक दोगुनी आय देती है. साथ ही, चूंकि ड्रैगन ट्री कैक्टस की प्रजाति है, इसलिए इस पेड़ पर रोग, फफूंद और सड़न का खतरा नहीं है. इन सभी बातों को देखते हुए अमर कदम ने इस अवसर को भुनाया. 

आज अमर कदम इस ड्रैगन फ्रूट फार्म से खर्च छोड़कर तीन से चार लाख रुपये की शुद्ध कमाई कर रहे हैं. पिछले तीन-चार सालों में अमर ने अपनी जमीन पर आम और नींबू के बाग लगाने शुरू कर दिए हैं और प्रयोग के तौर पर कुछ अलग तरह के पौधे भी उगाने शुरू कर दिए हैं. मुंबई गए अमर का पहले मजाक उड़ाने वाले गांव के लोग अब उसकी लगन, दृढ़ संकल्प, मेहनत और प्रयोग के तौर पर खेती की तारीफ कर रहे हैं.

 

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