Khadin Special: मजदूर से क‍िसान बने गाजीराम, खड़ीन में खेती से कमा रहे सालाना 12 लाख

Khadin Special: मजदूर से क‍िसान बने गाजीराम, खड़ीन में खेती से कमा रहे सालाना 12 लाख

पहले पार्ट में आपने पढ़ा कि जैसलमेर जैसे शुष्क जिले में खड़ीन व्यवस्था से किस तरह पानी का सदुपयोग कर पूरी तरह जैविक और अच्छा उत्पादन लिया जाता है. खड़ीन व्यवस्था पर दूसरे पार्ट में आप पढ़ेंगे एक ऐसे मजदूर की कहानी जिसने बंजर भूमि पर खड़ीन तैयार कर खुद को आत्मनिर्भर किया और अब एक लाख रुपये तक की मजदूरी दूसरे लोगों से करा रहे हैं.

जैसलमेर में खड़ीन खेती कर किसान बढ़ा रहे आमदनी. फोटो- माधव शर्माजैसलमेर में खड़ीन खेती कर किसान बढ़ा रहे आमदनी. फोटो- माधव शर्मा
माधव शर्मा
  • Jaisalmer,
  • Feb 20, 2023,
  • Updated Feb 20, 2023, 4:00 PM IST

जैसलमेर जैसे शुष्क जिले में खड़ीन व्यवस्था से किस तरह पानी का सदुपयोग कर पूरी तरह जैविक और अच्छा उत्पादन लिया जाता है. क‍िसान तक की खड़ीन खेती पर स्पेशल स्टोरी के पहले पार्ट में आपने ये सब पढ़ा है. इसी सीरीज के दूसरे पार्ट में एक मजदूर की कहानी है. सड़क से रेत हटाने का काम करने वाले गाजीराम ने खड़ीन खेती से अपना जीवन ही बदल ल‍िया है. गाजीराम ने बंजर भूमि पर खड़ीन तैयार कर खुद को आत्मनिर्भर किया और अब वह एक लाख रुपये तक की मजदूरी दूसरे लोगों से कराते हैं.

बंजर थी जमीन, सड़कों से रेत हटाता था पर‍िवार 

जैसलमेर जिले का रामगढ़ कस्बा. यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर है एकलपार गांव. गांव में 50-60 परिवारों भीलों के हैं. इसी गांव में रहते हैं 63 साल के गाजीराम भील. गाजीराम 15 साल पहले तक रोजाना मजदूरी करते थे. इस तरह गाजीराम का जीवन काफी गरीबी में कट रहा था. हालांकि एकलपार गांव की सरहद पर गाजीराम की 75 बीघे खेत थे. लेकिन. उसका कोई उपयोग नहीं था. जमीन बंजर थी.

ये भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट 1ः क्या आप रेगिस्तान में होने वाली खड़ीन खेती के बारे में जानते हैं, जानें कैसे होती है?

गाजीराम और उनका पूरा परिवार सड़कों से रेत हटाने का काम करता था. रोजाना के हिसाब से उन्हें मजदूरी मिलती थी. मानसून में वे सिर्फ बाजरे की खेती करते थे. ऐसे में रामगढ़ में रहने वाले और इस पूरे क्षेत्र में पानी के पारंपरिक ज्ञान के लिए माने जाने वाले चतरसिंह जाम इनके खड़ीन पर आए.

किसान तक से बातचीत में जाम बताते हैं क‍ि मैंने देखा कि गाजीराम के खेत ढलान पर हैं. यहां बरसात के दिनों में पानी बहकर आता है. इसीलिए मैंने इन्हें यहां खड़ीन बनाने का सुझाव दिया. पूरे परिवार ने इसमें मेहनत की. अब 15-17 साल की मेहनत का परिणाम दिखने लगा है.

कैसे बनते हैं खड़ीन?

जैसलमेर में बड़े-बड़े घास के मैदानों के ढलान में खड़ीन बनाए जाते हैं. गाजीराम ने चतरसिंह जाम के सुझाव पर अपने 75 बीघा के खड़ीन तैयार किए हैं. वे बताते हैं क‍ि यहां गर्मियों में धूलभरे अंधड़ चलते हैं. वहीं, सालभर तेज हवाएं चलती रहती हैं, जिससे रेत उड़कर आती है. मैंने इसी रेत को कांटों की बाड़ से रोककर खड़ीन तैयार किए हैं. पिछले 10-15 साल में खड़ीन की मेड़ इसी रेत से बनकर तैयार हुई है. इस तरह जहां बारिश का पानी आकर रुकता था, वहां कांटों की बाड़ से रेत का आना बंद हो गया. हर साल जुताई के कारण मिट्टी की उर्वरता बढ़ती गई. अब 15 साल की मेहनत के बाद मेरी बंजर जमीन पूरी तरह उपजाऊ बन गई है. ये सब चतरसिंह जाम के पानी को लेकर उनकी समझ से ही संभव हुआ.”

ये भी पढ़ें- मारवाड़ी घोड़ों का बढ़ा कद, 64 इंच तक हुई ऊंचाई, मापदंड बदलने की हो रही मांग

पहले सड़कों से रेत हटाने का काम, अब प्रति हैक्टेयर 20 क्विंटल पैदावार

गाजीराम किसान तक से बतचीत में बताते हैं क‍ि मैं और मेरा पूरा परिवार 15 साल पहले तक आर्मी की गाड़ियों के आने-जाने के लिए सड़कों से रेत हटाते थे.इससे 40-50 रुपए की मजदूरी मिलती थी. खेती की जमीन तो 75 बीघा थी,लेकिन, सिर्फ बारिश के पानी पर पूरी निर्भरता थी. चतरसिंह जाम से संपर्क में आने के बाद हमने अपनी जमीन की कांटों से बाड़ेबंदी की. इससे खेतों में रेत आना बंद हो गई. बारिश के पानी के साथ गोबर, मिट्टी और घास बहकर आने लगा. धीरे-धीरे खेतों की मिट्टी उपजाऊ बन गई.

ये भी देखें- Video: इंस्टेंट मिल्क चिलर मशीन कैसे करती है काम, रेगिस्तानी इलाकों में क्यों पड़ती है जरूरत?

गाजीराम जोड़ते हैं क‍ि ये सब पानी की महिमा है. जितना पानी मेरे खड़ीन में समाता है उसे जमा होने देता हूं और जरूरत से ज्यादा पानी को बंबा (नाले) से बाहर निकाल देता हूं अब 75 बीघा खेती में प्रति हेक्टेयर सरसों, गेहूं और चना 15-20 क्विंटल की पैदावार होती है. चूंकि यह पूरी तरह जैविक होती है. फसल का दाना भी यूरिया वाली फसल से ज्यादा होता है. इसीलिए भाव भी आम फसल से ज्यादा मिलता है.

साल में 12 लाख की कमाई

गाजीराम भील अब खड़ीन में होने वाली खेती से साल में 10-12 लाख तक की फसल बेचते हैं. वे रबी सीजन में गेहूं, चना, सरसों, तारामीरा की खेती करते हैं. वे बताते हैं क‍ि जब मैं मजदूरी करता था तब बमुश्किल 10-12 हजार रुपए कमा पाता था. पूरा परिवार मजदूरी करता था, लेकिन अब मैं अपने खड़ीन में ही सालभर में एक-डेढ़ लाख रुपए की मजदूरी दूसरों से कराता हूं. पूरी फसल से मुझे 10-12 लाख रुपये की आमदनी होती है.”
 

ये भी पढ़ें- राजस्थान सरकार की इस योजना से बढ़ेगी ऊंटों की संख्या! जैसलमेर के ऊंट पालक खुश

ये भी पढ़ें- कृषि ड्रोन किसानों के लिए कितना फायदेमंद, देखिए इसके काम करने का पूरा प्रोसेस

MORE NEWS

Read more!