'बकरी पालन की तुलना में भेड़ पालन किसानों को चारों तरफ से मुनाफा देने वाला कारोबार है. लेकिन राज्य सरकार इस क्षेत्र में विशेष ध्यान नहीं दे रही है. जिसके चलते बड़े पैमाने पर लोग भेड़ पालन से दूरी बना रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो मुझे भेड़ के बाल को खरीदने के बाद भी उसका कंबल और धागा तैयार करने के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर नहीं होना पड़ता'. सिलाई मशीन की आवाज के साथ भेड़ के बाल से डोरमैट तैयार कर रहीं पटना की पूनम कुमारी ने किसान तक को यह बात बताई. वे कहती हैं, आज से दो दशक पहले फैशन डिजाइनिंग का कोर्स सीखने के बाद कई क्षेत्रों में काम किया. लेकिन सपनों को एक नई उड़ान भेड़ के बाल से जुड़े प्रोजेक्ट बनाने के बाद ही मिलना शुरू हुआ.
पटना जिले के अथमलगोला प्रखंड के लहरिया टोला की रहने वाली पूनम कुमारी बीते सात सालों से भेड़ से जुड़े करीब 21 तरह का प्रोडक्ट बना रही हैं. इसमें कंबल, डोरमैट, तकिया, माउथ मास्क, सहित अन्य प्रोडक्ट शामिल हैं. इसके साथ ही गाय के गोबर का उपला सहित अन्य तरह के उत्पाद तैयार कर रही हैं. सालाना बीस लाख से अधिक की कमाई कर रही हैं. वहीं वह अन्य लोगों को रोजगार भी दे रही हैं.
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पूनम कुमारी कहती हैं कि वह ऊन के उत्पाद बनाने के लिए किसानों से बाल की खरीदारी भी करती हैं. वहीं बाल की क्वालिटी के आधार पर मूल्य का निर्धारण करती हैं. पांच रुपये से लेकर बीस रुपये प्रति किलो तक बाल की खरीदारी करती हैं. आगे वह बताती हैं कि बिहार में जो लोग भेड़ पालन कर रहे हैं, उसकी कीमत पांच रुपये प्रति किलो तक ही लगती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके बालों में उस तरह की क्वालिटी नहीं होती है. जबकि महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश से जो बाल की खरीदारी होती है, उन किसानों से बीस रुपये प्रति किलो तक बाल की खरीदारी की जाती है. अगर बिहार सरकार भेड़ पालन को लेकर बेहतर तरीके से काम करे तो जो बाहर पैसा दिया जा रहा है, वह अपने राज्य के लोगों को मिलेगा.
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महिला उद्यमी पूनम कहती हैं कि सरकार ने जिस तरह से बकरी पालन को लेकर कई तरह की योजनाएं शुरू की हैं. उसी तरह भेड़ पालन के क्षेत्र में काम किया जाए तो इससे सरकार से लेकर किसानों को चार तरह से फायदा मिल सकता है. किसानों को भेड़ के बाल का पैसा मिलेगा. बाल से बनने वाले प्रॉडक्ट का कारखाना स्थापित होगा. मीट और गोबर से ऑर्गेनिक खाद का एक बेहतर बाजार तैयार होगा क्योंकि बिहार में कोई फैक्ट्री नहीं होने की वजह से बाहर की मदद लेनी पड़ती है.
पूनम कहती हैं, हमें बाल से धागा हो या कंबल, इसे बनवाने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों पर निर्भर होना पड़ता है जो कि अधिक खर्च का काम है. एक कंबल पर करीब साढ़े चार हजार से लेकर 6 हजार रुपये तक खर्च आता है. अगर बिहार में इन सभी की सुविधा होती तो हजार रुपये से पंद्रह सौ रुपये कम खर्च पड़ता. पूनम सरकार से अपील करती हैं कि बिहार में भी इस तरह के काम शुरू होने चाहिए जिससे किसानों की कमाई बढ़ेगी.