PMFBY: क‍िसान 'बीमाधड़ी' से बेहाल, फसल बीमा कंपन‍ियां मालामाल...कमाई ने बनाया र‍िकॉर्ड

PMFBY: क‍िसान 'बीमाधड़ी' से बेहाल, फसल बीमा कंपन‍ियां मालामाल...कमाई ने बनाया र‍िकॉर्ड

केंद्र, राज्य और किसान मिलकर फसल बीमा कंपन‍ियों को जितना प्रीमियम दे रहे हैं क्या उतने में सरकारें खुद मुआवजा नहीं बांट सकती हैं? यह सवाल इसल‍िए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंक‍ि फसल बीमा कंपन‍ियों के न ब्लॉक में आफ‍िस हैं, न तहसील में और न ज‍िलों में. नुकसान का सर्वे भी सरकार ही कर देती है और फायदा कंपन‍ियों को म‍िलता है. आईए समझते हैं फसल बीमा योजना का गणित और आंकड़ों में छिपा असली खेल.

फसल बीमा कंपन‍ियों की कमाईफसल बीमा कंपन‍ियों की कमाई
ओम प्रकाश
  • New Delhi,
  • Sep 12, 2025,
  • Updated Sep 12, 2025, 6:16 PM IST

Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana: “बीमा कंपनी खेल खेलती रहती है. खुद सोचिए कि क्या कोई कंपनी घाटे में बीमा करेगी? अगर वो प्रीमियम लेंगे 4000 करोड़ तो देंगे 3000 करोड़. इसलिए अब हम खुद मुआवजा देंगे. दो लेगेंगे तो दो और 10 लगेंगे तो 10 देंगे. काहे की कंपनी. आधी रकम नुकसान पर तुरंत दे देंगे और आधी नुकसान का आकलन करने के बाद. प्रधानमंत्री से मिलकर इसकी अनुमति लूंगा...” साल 2020 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान ने एक कार्यक्रम में यह बात कही थी. वही श‍िवराज स‍िंह चौहान, जो आजकल केंद्रीय कृष‍ि मंत्री हैं और पीएम फसल बीमा योजना की वकालत कर रहे हैं. असल में, कृष‍ि मंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद क‍िसी भी योजना के ख‍िलाफ न बोलने की मजबूर‍ियां हो सकती हैं, लेक‍िन उन्होंने मुख्यमंत्री रहने के दौरान बात तो सही कही थी. इस योजना की शर्तें कंपन‍ियों के पक्ष में इस तरह से झुकी हुई हैं क‍ि फसल खराब होने के बावजूद क‍िसानों को आसानी से मुआवजा नहीं म‍िलता. 

शिवराज सिंह चौहान ने कृष‍ि मंत्री के तौर पर 10 अगस्त 2025 को कहा, "वर्ष 2016 से शुरू हुई फसल बीमा योजना के तहत अब तक 1.83 लाख करोड़ रुपये की क्लेम राशि का वितरण किया गया है, जबकि किसानों ने मात्र 35,864 करोड़ रुपये प्रीमियम की रकम ही दी है. औसतन 5 गुना से अधिक क्लेम भुगतान, यह सरकार की किसान-हितैषी नीति का प्रतीक है." अब सवाल यह है क‍ि क्या कृष‍ि मंत्री का यह बयान सही है? दरअसल, यह प्रीमियम का आधा सच है. बहुत चालाकी से यह बताने की कोश‍िश की गई है क‍ि प्रीम‍ियम से अध‍िक क्लेम म‍िल रहा है. लेक‍िन ऐसा है नहीं. इसका गुणा-गण‍ित हल करेंगे तो पता चलेगा क‍ि फसल बीमा योजना की असली ‘फसल’ तो कंपन‍ियां काट रही हैं. 

कंपन‍ियों को क‍ितना फायदा? 

दरअसल, फसल बीमा कंपन‍ियों को म‍िलने वाले प्रीम‍ियम के तीन पार्ट होते हैं. इसका एक ह‍िस्सा क‍िसान, एक ह‍िस्सा राज्य और एक ह‍िस्सा केंद्र सरकार की ओर से जाता है. राज्य और केंद्र सरकार के ह‍िस्से को तकनीकी तौर पर हम प्रीम‍ियम सब्स‍िडी बोलते हैं. अब यहां चौहान ने स‍िर्फ क‍िसानों के ह‍िस्से के प्रीम‍ियम का ज‍िक्र क‍िया है, बाकी की बात नहीं की. क्योंक‍ि पूरा प्रीम‍ियम जोड़ते ही पता चलता है क‍ि क‍िसानों के नाम पर तो स‍िर्फ पर्चा फाड़ा जा रहा है, असल में कमाई तो कंपन‍ियां कर रही हैं. योजना शुरू होने के बाद से अब तक बीमा कंपन‍ियों ने 1,81,575 करोड़ रुपये का क्लेम द‍िया, जबक‍ि उन्हें 2,56,671 करोड़ रुपये का प्रीम‍ियम म‍िला. यानी बीमा कंपन‍ियों को 75,096 करोड़ रुपये की कमाई हुई. इसका मतलब यह है क‍ि सालाना 9,387 करोड़ रुपये का फायदा.

प्रीम‍ियम छ‍िपाने की वजह क्या है? 

सरकारी प्रेस नोट में भी यही बताया जा रहा है क‍ि क‍िसानों ने बहुत कम प्रीम‍ियम द‍िया जबक‍ि उन्हें क्लेम ज्यादा म‍िला. यानी सरकार हर जगह प्रीम‍ियम के बाकी दो ह‍िस्सों को छ‍िपा रही है. ऐसे में सवाल यह है क‍ि आख‍िर प्रीम‍ियम के तौर पर जो राज्यों और केंद्र की ओर से फसल बीमा कंपन‍ियों को पैसा म‍िल रहा है क्या सरकार उसे पैसा नहीं मानती? वो भी तो देश के टैक्सपेयर्स का पैसा है. आख‍िर संसद से लेकर बाहर तक सरकार बीमा कंपन‍ियों को म‍िलने वाले प्रीम‍ियम को क्यों छ‍िपा रही है. 

फसल बीमा कंपन‍ियों का क्या काम?

केंद्र, राज्य और किसान मिलकर फसल बीमा कंपन‍ियों को जितना प्रीमियम दे रहे हैं क्या उतने में सरकारें खुद मुआवजा नहीं बांट सकती हैं? यह सवाल इसल‍िए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंक‍ि फसल बीमा कंपन‍ियों के न ब्लॉक में आफ‍िस हैं, न तहसील में और न ज‍िलों में. नुकसान का सर्वे भी सरकार ही कर देती है और फायदा कंपन‍ियों को म‍िलता है. क‍िसान महा पंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है क‍ि जब सारा काम सरकार ही कर देती है तो कंपन‍ियों का क्या काम है? आठ साल में कंपन‍ियों को 2,56,671  करोड़ रुपये का प्रीम‍ियम म‍िला है. इतने में तो सरकार आसानी से खुद ही मुआवजा दे सकती है.  

कंपन‍ियों की कैसे इतनी बढ़ी कमाई?  

  • क‍िसान लंबे समय से मांग कर रहे हैं क‍ि फसल बीमा योजना को भी मेडिकल या व्हीकल इंश्योरेंस की तर्ज पर कर द‍िया जाए, लेक‍िन सरकार ने ऐसा नहीं क‍िया. क‍िसान नेता रामपाल जाट का कहना है क‍ि शर्तें कंपन‍ियों के पक्ष में बनाई गई हैं, इसल‍िए क‍िसानों को फसल नुकसान के बावजूद मुआवजे के ल‍िए भटकना पड़ता है. क‍िसानों के साथ धोखाधड़ी की तरह 'बीमाधड़ी' हो रही है और इसके ल‍िए कंपन‍ियों से ज्यादा सरकार ज‍िम्मेदार है, क्योंक‍ि शर्तें उसी ने बनाई हैं. शर्तें ऐसी हैं क‍ि क‍िसान परेशान और कंपन‍ियां मालामाल हैं.    
  • हर ब्लॉक और ज‍िले में फसल बीमा कंपन‍ियों के कार्यालय होने चाह‍िए, लेक‍िन शायद ही आपको इन फसल बीमा कंपन‍ियों के कार्यालय द‍िखें. क‍िसान फसल बीमा की क‍िसी बात को लेकर परेशान होता है तो वह अपनी समस्या क‍िसे बताएगा, इसका टोल फ्री नंबर के अलावा कोई समाधान नहीं है. फसल नुकसान का आकलन राजस्व और कृष‍ि व‍िभाग के कर्मचारी करते हैं. कंपनी का कोई प्रत‍िन‍िध‍ि आता नहीं. यानी न ऑफ‍िस न सर्वेयर. यह सारा काम सरकार करके देती है और प्रॉफ‍िट पूरा कंपनी कमाती है. इससे अच्छा ब‍िजनेस क्या होगा? 
  • यवतमाल के क‍िसान म‍िल‍िंद दामले का कहना है क‍ि उत्पादन के 30 फीसदी नुकसान पर बीमा कंपनी से क्लेम नहीं म‍िलता है. उससे अध‍िक नुकसान पर ही क्लेम म‍िलता है. यह सबसे अजीब शर्त है. इसी तरह हर खेत के ल‍िए क‍िसान अलग प्रीम‍ियम जमा करता है, लेक‍िन जब क्लेम देने की बारी आती है तो खेत को इंश्योरेंस यून‍िट मानने का पैमाना खत्म हो जाता है. क्लेम समूह में आकलन के ह‍िसाब से म‍िलता है. कुछ फसलों में पटवार मंडल तो कुछ में गांव को एक यून‍िट माना जाता है. इन दोनों शर्तों की वजह से कम से कम क‍िसानों को कम से कम मुआवजा म‍िलता है. 

इसे भी पढ़ें: फसलों का रक्षक, कीटों का भक्षक...विदेशों से आया क‍िसानों का मसीहा, ये है व‍िज्ञान की अद्भुत कहानी

इसे भी पढ़ें: Cotton Crisis: प्राइस, पॉलिसी और पेस्ट ने तबाह की 'सफेद सोने' की खेती, कौन चुकाएगा कीमत?

 

MORE NEWS

Read more!