केंद्र सरकार के ऑनलाइन मंडी प्लेटफार्म ई-नाम (e-Nam) यानी राष्ट्रीय कृषि बाजार से अब 1361 मंडियां जुड़ चुकी हैं. देश की 2000 मंडियों को अगले कुछ ही वर्ष में इससे जोड़ने की योजना पर काम चल रहा है. हालांकि जब 14 अप्रैल, 2016 को इसकी शुरुआत हुई थी तब इसमें सिर्फ 21 मंडियां ही शामिल हुई थीं. यह कृषि क्षेत्र के लोगों का ऑनलाइन ट्रेडिंग में बढ़ते विश्चास को दर्शाता है. इस प्लेटफार्म से करीब 1.77 करोड़ किसान जुड़ चुके हैं. दरअसल, इस प्लेटफार्म के आने के बाद किसान और खरीदार के बीच का सीधा संबंध और गहरा हुआ है. दलालों की भूमिका काफी हद तक खत्म हो गई है. हालांकि, कुछ सरकारी एजेंसियां अब भी ऑफलाइन कारोबार को प्रमोट करने में जुटी हुई हैं, जबकि ऐसा करने से देश को नुकसान पहुंच रहा है.
इस प्लेटफार्म का 27 सूबों में विस्तार हो चुका है. इससे किसानों को अपनी कृषि उपज का कारोबार करने में बड़ी मदद मिल रही है. वो एक बड़े दायरे में उपज बेच पा रहे हैं. इस प्लेटफार्म पर 193 कमोडिटी की ट्रेडिंग हो रही है. ई-नाम एक इलेक्ट्रॉनिक कृषि पोर्टल है. जो पूरे भारत में मौजूद एग्री प्रोडक्ट मार्केटिंग कमेटी को एक नेटवर्क में जोड़ने का काम करता है. इसका मकसद एग्रीकल्चर प्रोडक्ट के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक बाजार उपलब्ध करवाना है. इस नेटवर्क से 3,366 एफपीओ का जुड़ना किसी बड़े दांव से कम नहीं है. इसके जरिए किसान मंडियों में भौतिक रूप से परिवहन किए बिना ही प्लेटफॉर्म पर अपनी उपज बेच रहे हैं.
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ई-नाम से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस प्लेटफार्म पर किसानों के बढ़ते भरोसे की वजह से कारोबार में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया है. साल 2022-23 में अप्रैल से नवंबर के बीच अंतर मंडी व्यापार सिर्फ 343.75 करोड़ रुपये का था जो 2023-24 में इसी अवधि के दौरान बढ़कर 988.54 करोड़ रुपये हो गया है. यानी इसमें 188 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है. अगर मात्रा में बात करें तो 120 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है. साल 2022-23 के अप्रैल से नवंबर के बीच 132713 मीट्रिक टन उपज का कारोबार हुआ था जो 2023-24 की इसी अवधि के दौरान बढ़कर 291447 मीट्रिक टन हो गया है.
फार्मगेट मॉड्यूल का उपयोग करके कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और ओडिशा सहित 11 राज्यों के किसानों ने मक्का, कपास, धान, कच्चा केला और सब्जियों जैसी कई वस्तुएं बेची हैं. दरअसल, यह मॉड्यूल कृषि घाटे के साथ-साथ परिवहन और हैंडलिंग खर्च को कम करता है. किसान ई-एनएएम प्लेटफॉर्म पर अपने निकटतम एपीएमसी मंडियों के माध्यम से खेत से वस्तुओं के लॉट साइज की तस्वीरें अपलोड करते हैं. मंडियों में रजिस्टर्ड खरीदार कृषि उपज के लिए बोली लगाते हैं और किसानों के बैंक खाते में भुगतान करने के बाद फार्मगेट से वस्तुओं को उठा लेते हैं.
उर्जा मंत्रालय के एक अनुरोध पर हाल ही में धान की पराली से प्राप्त बायोमास का ट्रेड ई-नाम की सूची में डाला गया है. अंबाला मंडी में ई-एनएएम का उपयोग करके 'कच्चे बायोमास' (कृषि-अवशेष) का व्यापार का परीक्षण किया गया. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाला 'लघु कृषक कृषि व्यापार संघ' (एसएफएसी) ई-नाम को संचालित कर रहा है. देश भर में करीब 2,700 कृषि उपज मंडियां और 4,000 उप-बाजार हैं. पहले कृषि उपज मंडी समितियों के भीतर या एक ही राज्य की दो मंडियो में कारोबार होता था. लेकिन ई-नाम से राज्यों की सीमाओं का प्रतिबंध खत्म कर दिया है.
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ऑनलाइन ट्रेड और बढ़ाने की जरूरत
कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि ई-नाम प्लेटफार्म का और विस्तार होना चाहिए. एफसीआई और नेफेड कृषि उपज की जितनी ऑफलाइन ट्रेनिंग करते हैं उसे बंद करके उसका ई-नाम पर ट्रेड शुरू करने की जरूरत है. ऑनलाइन ट्रेडिंग को बढ़ावा देने से किसानों को अच्छा दाम मिलेगा और उपभोक्ताओं को फायदा होगा. क्योंकि किसान के कंज्यूमर के बीच की कई कड़ियों का काम खत्म हो जाएगा. कारोबार में जितने कम भागीदार होंगे किसानों और उपभोक्ताओं को उतना ही फायदा होगा. ऑनलाइन ट्रेड बढ़ने से देश में ईंधन की काफी बचत होगी.