
हिमाचल प्रदेश में दशकों से जंगली रूप में उगने वाली भांग अब राज्य की अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदलने जा रही है. जिस फसल को अब तक नशे और अवैध कारोबार से जोड़कर देखा जाता रहा है, वही भांग अब सरकार की नई नीति के तहत “औद्योगिक हेम्प” के रूप में पहचान पा रही है. मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि यह पहल हिमाचल को 2027 तक आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगी. मुख्यमंत्री ने बताया कि कुल्लू, मंडी और चंबा की घाटियों में सालों से अपने आप उगने वाली भांग को अब नियंत्रित तरीके से उगाया जाएगा. जिससे हर साल 1,000 से 2,000 करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त रेवेन्यू मिलने का अनुमान है.
सरकार का मकसद इस फसल को अवैध कारोबार से निकालकर एक कानूनी, वैज्ञानिक और फायदेमंद उद्योग के रूप में स्थापित करना है. इसी सोच के साथ “ग्रीन टू गोल्ड” पहल की शुरुआत की गई है, जिसके तहत भांग को औद्योगिक और औषधीय उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. औद्योगिक हेम्प का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जा सकता है. इसमें दर्द और सूजन के इलाज में काम आने वाली दवाइयां, कपड़ा और परिधान उद्योग, कागज और पैकेजिंग, कॉस्मेटिक और पर्सनल केयर उत्पाद, साथ ही बायोफ्यूल और ऊर्जा जैसे सेक्टर शामिल हैं.
सरकार का मानना है कि इन सभी क्षेत्रों में निवेश बढ़ने से हिमाचल में नए उद्योग लगेंगे और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे. इस पूरी नीति की सबसे अहम शर्त यह है कि उगाई जाने वाली औद्योगिक भांग में नशे की मात्रा बेहद कम होगी. मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि THC यानी टेट्रा हाइड्रो कैनाबिनोल की मात्रा 0.3 प्रतिशत से कम रखी जाएगी. यह सीमा वैज्ञानिक रूप से तय की गई है ताकि फसल नशीली न बने और उसका गलत इस्तेमाल न हो सके.
साथ ही कम THC होने के बावजूद इसमें फाइबर और बीज की गुणवत्ता बेहतर बनी रहती है, जिससे उद्योगों को फायदा मिलेगा. राज्य सरकार के मुताबिक, 24 जनवरी 2025 को कैबिनेट में लिए गए फैसले के बाद औद्योगिक हेम्प की नियंत्रित खेती के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि यह फसल उन किसानों के लिए एक नया विकल्प बन सकती है, जो जंगली जानवरों, खासकर बंदरों की वजह से पारंपरिक खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं.
हेम्प ऐसी फसल है जिसे जानवर कम नुकसान पहुंचाते हैं और इसकी देखभाल भी अपेक्षाकृत आसान है. औद्योगिक हेम्प को कपास जैसी फसलों के मुकाबले करीब 50 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है. यह कम उपजाऊ जमीन पर भी अच्छी तरह उग सकती है. बदलते मौसम और पानी की कमी के दौर में इसे एक जलवायु-सहनीय फसल माना जा रहा है. किसानों की मदद और शोध के लिए राज्य के प्रमुख कृषि और बागवानी संस्थानों को भी इस योजना से जोड़ा गया है.
पालमपुर स्थित सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय और नौणी स्थित डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय पायलट अध्ययन कर रहे हैं. इनका उद्देश्य ऐसे बीज विकसित करना है, जिनमें THC कम हो, पैदावार ज्यादा मिले और जो हिमालयी परिस्थितियों के अनुकूल हों. इस नीति को तैयार करने से पहले सरकार ने दूसरे राज्यों के अनुभव भी देखे हैं.
राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में बनी राज्य स्तरीय समिति ने उत्तराखंड के डोईवाला और मध्य प्रदेश का दौरा किया. वहां नियंत्रित भांग की खेती से जुड़े कानूनी और व्यावहारिक पहलुओं का अध्ययन किया गया. बाद में इस समिति की रिपोर्ट को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पेश किया गया, जिसे स्वीकार कर लिया गया.
मुख्यमंत्री ने आगे बताया कि सरकार का लक्ष्य केवल खेती तक सीमित नहीं है. प्रस्तावित “हेम्प हब” के जरिए हिमाचल को हेम्प आधारित उत्पादों के निर्माण का केंद्र बनाया जाएगा. इसमें हेम्पक्रिट जैसे पर्यावरण हितैषी निर्माण सामग्री, खास किस्म के कपड़े और आयुर्वेदिक दवाइयां शामिल होंगी. इससे स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिलेगा और युवाओं के लिए रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे.