महाराष्ट्र में को-ऑपरेटिव चीनी मिलों पर सरकारी लेवी लगाने के विवाद ने एक बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले लिया है. राज्य सरकार के मुखिया सीएम देवेंद्र फडणवीस ने पिछले हफ्ते ऐलान किया था कि हर टन गन्ने पर मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए 10 रुपये और किसानों को सीधे सहायता देने के लिए 5 रुपये प्रति टन का योगदान अनिवार्य किया जाएगा. इस तरह कुल 15 रुपये प्रति टन का योगदान के साथ मराठवाड़ा समेत उन सभी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है जो इस साल भारी बारिश से प्रभावित हुए हैं. हालांकि, विपक्ष ने इस कदम की तीखी आलोचना की है और इसे किसानों के मुनाफे पर अनुचित दबाव डालने वाला बताया है.
रविवार को इस विवाद ने और तेज रूप धारण किया. एक हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम में, जिसमें केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे, मुख्यमंत्री फडणवीस ने लेवी का कड़ा बचाव किया और मिल मालिकों पर आरोप लगाया जो इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. सीएम फडणवीस ने कहा, 'राज्य में करीब 200 मिलें हैं. एक मिल को मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए करीब 25 लाख रुपये का योगदान देना पड़ सकता है. हम यह राशि मिलों के मुनाफे से मांग रहे हैं, किसानों से नहीं.' उनका कहना था कि विपक्ष उनके प्रस्ताव को गलत तरीके से पेश कर रहा है.
सीएम फडणवीस की मानें तो कुछ लोग इतना नीचे गिर गए हैं कि इसे सरकार की तरफ से किसानों से पैसा लेने के तौर पर देख रहे हैं जबकि हकीकत कुछ और है. फडणवीस ने कहा कि योगदान मिलों को हुए प्रॉफिट से है और यह मराठवाड़ा के बाढ़ प्रभावित किसानों के लिए जाएगा. उनकी मानें तो कुछ मिलें, किसानों के साथ टन के हिसाब में भी धोखाधड़ी कर रही है और इसके जरिए वह उन्हें आईना दिखाना चाहते हैं.
सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाल रहे हैं वरिष्ठ नेता और एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार. पुणे के वसंतदादा शुगर इंस्टिट्यूट में बैठक के बाद पवार ने इस आदेश की कड़ी आलोचना करते हुए इसे 'चौंकाने वाला' और 'अनुचित' बताया. उन्होंने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि सरकार ने नुकसान झेलने वाले लोगों का समर्थन करने के बजाय चीनी उत्पादकों से बड़ी राशि जुटाने का निर्णय लिया. यह लेवी सीधे सहकारी मिलों की आय पर असर डालती है और ये किसानों की है. पवार की मानें तो यह साफतौर पर सरकार की अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए किसानों के हिस्से से पैसा लेने का मामला है.
सरकार का अनुमान है कि मिलों से कुल लेवी कलेक्शन काफी होगा और इससे बाढ़ राहत प्रयासों को महत्वपूर्ण मदद मिलेगी. हालांकि, विपक्ष इसे राजनीतिक तौर पर धन का दुरुपयोग मान रहा है. राज्य के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों के बीच इस बहस के चलते सरकारी चीनी मिल लेवी विवाद आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति पर छाया डालने वाला है.(रित्विक भालेकर की रिपोर्ट)
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