सोयाबीन की MSP बढ़ने के बाद भी महाराष्ट्र में मराठवाड़ा के किसान परेशान हैं. उनका कहना है कि सोयाबीन की कीमत अच्छी नहीं मिल रही. दूसरी ओर सरकार का कहना है कि सोयाबीन की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) 292 रुपये बढ़ाई गई है जो कि अच्छी बढ़ोतरी है. फिर सवाल है कि इतनी अच्छी बढ़ोतरी के बाद भी किसान खुश क्यों नहीं हैं. किसान आखिर चुनावी माहौल में सोयाबीन के दाम को लेकर इतनी बेचैनी में क्यों हैं.
इस सभी सवालों के उत्तर जानने से पहले एक बार मराठवाड़ा क्षेत्र पर नजर डाल लेते हैं. यह वही क्षेत्र है जहां से किसानों की सबसे अधिक आत्महत्या की खबरें आती हैं. यहां की 75 फीसदी आबादी खेती पर आश्रित है, लेकिन उनकी समस्याएं कई हैं. उनमें एक समस्या सोयाबीन भी है जिसकी यहां बड़े पैमाने पर बुवाई की जाती है. यहां के किसानों से बात करें तो पता चलेगा कि एमएसपी और फसल मुआवजा जैसी योजनाएं कई हैं, लेकिन उसका रिजल्ट किसान तक बहुत देरी से पहुंचता है या पहुंचता ही नहीं है.
इस क्षेत्र में सोयाबीन के अलावा कपास और प्याज की खेती बड़े पैमाने पर होती है. पहले किसानों को फसलों की एमएसपी के लिए जूझना पड़ता था. लेकिन बाद में जब एमएसपी बढ़ भी गई तो उसका समय से नहीं मिलना किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. किसान कहते हैं कि सरकार को एमएसपी पर फसल खरीद के लिए बड़ा और आधुनिक तंत्र बनाना होगा ताकि किसानों को समय पर इस स्कीम का लाभ मिल सके. अभी इस पूरे सिस्टम में झोल है जिससे किसानों को कई दिनों तक एमएसपी पर फसल बेचने के लिए इंतजार करना होता है.
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महाराष्ट्र में महायुति सरकार ने दावा किया है कि खरीद में सुधार हुआ है, लेकिन मराठवाड़ा के कई किसान इन दावों को नकारते हैं. उनका कहना है कि जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है. इस विवाद ने विपक्षी नेताओं का ध्यान खींचा है, जो खेती के संकट से निपटने के लिए सत्तारूढ़ सरकार की आलोचना कर रहे हैं.
पिछले लोकसभा चुनावों में किसानों की नाराजगी ने सत्तारूढ़ एनडीए के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया था, जिसके बाद सोयाबीन के लिए 292 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी में बढ़ोतरी की घोषणा की गई थी. हालांकि, किसानों का तर्क है कि मजबूत खरीद तंत्र के बिना एमएसपी में बढ़ोतरी का कोई मतलब नहीं है, जो मराठवाड़ा के लिए सरकार के सामने लंबे समय से एक कमी बनी हुई है.
मराठवाड़ा ऐसा क्षेत्र है जहां मराठा समुदाय के किसान बहुतायत में हैं. इन किसानों के लिए सोयाबीन और कपास की एमएसपी के अलावा मराठा आरक्षण का मुद्दा भी अहम रहा है. पिछले कई साल से इस आरक्षण के मुद्दे ने भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों को उलझा रखा है. हाल के महीनों में कई आंदोलन देखे गए हैं. इस बीच किसानों का सोयाबीन के दाम के लिए मुखर होना और सरकार के खिलाफ बिगुल फूंकना बड़ी चुनौती हो सकती है. हालांकि महायुति के नेताओं ने किसानों को भरोसा दिलाया है कि सोयाबीन की खरीद अच्छे दाम पर होगी और इसमें तेजी लाई जाएगी, लेकिन यह भरोसा कितना कारगर होगा, चुनाव में देखने वाली बात होगी.
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