भारतमाला परियोजना के तहत बनारस से कोलकाता तक बनने वाले एक्सप्रेसवे के लिए जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों का विरोध लगातार जारी है. वहीं, किसान अधिग्रहित जमीन का मुआवजा वर्तमान सर्किल रेट के आधार पर देने की मांग पर अड़े हुए हैं. सोमवार को राजधानी पटना में कई किसान संगठनों के आह्वान पर बक्सर के सांसद और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के नेतृत्व में करीब एक हजार किसान मुख्यमंत्री का आवास घेराव करने निकले, जहां आंदोलन की शुरुआत बुद्ध पार्क से हुई. लेकिन जैसे ही यह जुलूस डाकबंगला चौराहे पर पहुंचा, पुलिस ने इसे रोक दिया. इस दौरान किसानों और पुलिस के बीच नोकझोंक भी हुई.
किसानों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को मुख्य सचिवालय में प्रधान सचिव अमृत लाल मृणा से वार्ता के लिए भेजा था. वहीं, बैठक के बाद सांसद सुधाकर सिंह ने बताया कि बिहार सरकार के सामने दो प्रमुख मांगें रखी गई थीं—पहली, जमीन के मूल्य को लेकर और दूसरी जमीन के वर्गीकरण को लेकर. वहीं, प्रधान सचिव ने स्पष्ट किया कि जमीन के मूल्य का निर्धारण वर्ष 2013 से 10% चक्रवृद्धि ब्याज जोड़कर किया जाएगा. इस आधार पर लगभग 12 वर्षों में किसानों को उनकी जमीन का मूल्य ढाई से तीन गुना अधिक मिलेगा, जो उनके लिए लाभकारी साबित होगा.
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वहीं, जमीन का वर्तमान वर्गीकरण कृषि योग्य, व्यावसायिक या आवासीय के आधार पर उसका मूल्य तय किया जाएगा. इससे कैमूर सहित अन्य जिलों से आए किसानों की प्राथमिक मांगों को सरकार ने स्वीकार कर लिया है, जिसे किसानों की बड़ी जीत माना जा रहा है.
प्रधान सचिव से मिलने से पहले बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों की मांगें पूरी तरह उचित हैं और सरकार को इन्हें मानना ही होगा. उन्होंने कहा कि देश की गूंगी-बहरी सरकारों को किसानों ने हमेशा अपनी आवाज सुनने और झुकने पर मजबूर किया है, और इस बार भी ऐसा ही होगा. सुधाकर सिंह ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं और वे स्वयं इसमें सहयोग करने आए हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि मुख्यमंत्री किसानों की बात नहीं सुनते तो उनके लिए संकट खड़ा होगा. “हम क्रांतिकारी तरीके से विरोध करेंगे. सरकार को मजबूरन किसानों की बात माननी पड़ेगी.
मुख्यमंत्री आवास घेराव आंदोलन में शामिल कैमूर, रोहतास, बक्सर, औरंगाबाद सहित राज्य के विभिन्न जिलों से आए किसानों ने कहा कि सरकार राज्य में विकास कार्यों के लिए जमीन तो अधिग्रहित कर रही है, लेकिन उसका उचित मुआवजा नहीं दे रही है. कैमूर जिले के चांद प्रखंड से आए किसानों ने बताया कि उत्तर प्रदेश में इसी परियोजना के लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया तो सरकार ने उन्हें मोटी राशि दी. लेकिन बिहार में इसी योजना के तहत किसानों की जमीन को औने-पौने दामों पर लिया जा रहा है.
वहीं किसान शंभू कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जो किसानों को पैसा मिला है उसे 75% कम पैसा हमें मिल रहा है. यूपी के किसानों को एक बीघा के लिए 65 लाख रुपये के आसपास राशि मिल रही है. वही हमें उतनी ही जमीन का 20 लाख रुपये दिया जा रहा है.
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सरकार 2011–12 के सर्किल रेट के अनुसार कृषि योग्य जमीन का मूल्य तय कर रही है, जबकि वर्तमान समय में इनमें से कई जमीनें आवासीय या व्यावसायिक क्षेत्र में बदल चुकी हैं. किसानों ने आरोप लगाया कि रजिस्ट्री के समय सरकार इन्हीं जमीनों को आवासीय या व्यावसायिक दर से मानकर शुल्क वसूलती है, लेकिन मुआवजा कृषि योग्य जमीन के हिसाब से देती है.
भारतमाला परियोजना के तहत बन रहे बनारस रांची टू कोलकाता एक्सप्रेस-वे निर्माण कार्य को लेकर बीते दिनों कैमूर जिले में किसान और प्रशासन आमने-सामने आ गए थे. जहां प्रशासन ने पुलिस के सहयोग से कई बीघा की धान की फसल को रौंद दिया गया. इसके बाद से किसान काफी आक्रोशित हो गए. वहीं, किसानों के विरोध को देखते हुए प्रशासन ने हाल के समय में काम को रोक दिया है.
चुनावी साल होने के कारण हर वर्ग अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. वहीं, भारतमाला परियोजना के तहत बनारस से कोलकाता तक बन रहे एक्सप्रेसवे में जिन किसानों की जमीन ली जा रही है, वे लंबे समय से उचित मुआवजा न मिलने के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं. पहली बार राजधानी पटना में किसानों ने मुख्यमंत्री आवास घेराव का ऐलान किया. इससे पहले राकेश टिकैत समेत कई नेताओं के नेतृत्व में आंदोलन हुए, लेकिन इस बार किसान बिना किसी सहारे अपनी आवाज खुद बुलंद कर रहे हैं.