मुद्दा विकट है. बात बड़ी है. भौकाल टाइट है. जलवा जलाल है. ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल थियेटर में चल रहा ड्रामा कमाल है! तो बात किसान आंदोलन की हो रही है. मुद्दा डल्लेवाल के आमरण अनशन का है. माहौल दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ पहले का है. पात्र शिवराज-केजरीवाल-आतिशी हैं. सहायक पात्रों में किसान आंदोलनकारी हैं. कोशिश सियासी फसल काटने की है. रंगमंच दिल्ली से लेकर पंजाब तक वाया खानौरी बॉर्डर है. डायलॉग तगड़े हैं. चलिए बात शुरू करते हैं...
लेकिन पहले शाद आज़ीमाबादी का एक शेर पेशे नज़र है.
मैं तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ,
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ...
तो सबसे पहले हुआ क्या था? विस्तार का तंबू ताने बिना इस पर बात कर लेते हैं. तो तू-तू, मैं-मैं यानी बात कहां से शुरू हुई. केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आप सरकार पर निशाना साधा कि AAP सरकार किसानों के कल्याण की कोई भी योजना दिल्ली में लागू नहीं कर रही है. एकीकृत बागवानी मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, बीज ग्राम कार्यक्रम और अन्य योजनाओं का लाभ दिल्ली के किसानों को नहीं मिल पा रहा है. कृषि विकास योजना दिल्ली में लागू नहीं होने से कृषि मशीनीकरण, सूक्ष्म सिंचाई, मृदा स्वास्थ्य, फसल अवशेष प्रबंधन, परंपरागत कृषि विकास योजना, कृषि वानिकी और फसल डायवर्सिफिकेशन के लिए सब्सिडी के लाभ से दिल्ली के किसान वंचित हैं.
इस बयान पर जैसा कि उम्मीद थी कि AAP की सीएम आतिशी ने पलटवार किया. बोलीं- भाजपा का किसानों के बारे में बात करना दाऊद इब्राहिम का अहिंसा के उपदेश देने जैसा है. भाजपा किसानों के नाम पर राजनीति कर रही है. आतिशी ने कहा कि पंजाब के किसान आमरण अनशन पर बैठे हैं और कृषि मंत्री को किसानों से बात करने के लिए प्रधानमंत्री को कहना चाहिए. भाजपा के शासनकाल में किसानों पर गोली और लाठी चलाई गई हैं.
इसके बाद AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी इस मामले में कूद पड़े. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा किसानों के काले कानून पिछले दरवाजे से लागू कर रही है. पंजाब के किसान कई महीने से अनशन और प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों की मांग को तीन साल पहले केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया था, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया. भाजपा सरकार किसानों से बातचीत करने के लिए तैयार नहीं है. अगर किसानों को कुछ होता है तो इसके लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार होगी.
केजरीवाल की पोस्ट पर फिर शिवराज ने हमला किया. इस बार उन्होंने लिखा- तू इधर-उधर की न बात कर. ये बता कि क़ाफ़िले क्यूं लुटे... क्यों दिल्ली के किसान भाई-बहनों की परेशानी से आप को फर्क नहीं पड़ता? किसान कल्याणकारी योजनाओं का फायदा आप दिल्ली के किसानों को क्यों नहीं देना चाहते? आखिर क्यों आप दिल्ली के किसानों के प्रति इतना संवेदनहीन हैं?
पत्र-पोस्ट बमों के वार-पलटवार के बाद लोगों कि दिलचस्पी इस बात में बढ़ गई है कि किसानों के मुद्दे पर आप और भाजपा में क्या भिड़ंत शुरू हो गई है? तो आइए ज़रा तफ्सील से समझते हैं. किसान आंदोलन, दिल्ली चुनाव और भाजपा-आप यानी दोनों पार्टियों के बीच इस आरोप-प्रत्यारोप की जड़ में क्या है.
1. वोटों की फसल पर नज़र- किसानों का मुद्दा आगामी विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. दोनों पार्टियां किसानों के वोट हासिल करने के लिए एक-दूसरे पर हमला कर रही हैं. सभी पैंतरें अपना रही हैं. केंद्र सरकार ने किसान मुद्दे पर आप को घेरने के लिए शिवराज सिंह चौहान को चुना. शिवराज अपनी सौम्य छवि, किसान समर्थक इमेज के चलते इसके लिए सबसे मुफीद आदमी हैं. किसान पूरे देश में बहुत बड़ा वोटर वर्ग है. पिछले किसान आंदोलन के बाद से ही भाजपा को अहसास है कि किसानों वर्ग में उनकी छवि कमजोर हुई है. तो पार्टी शिवराज के बहाने कोशिश कर रही है कि खुद को किसानों की हितैषी पार्टी साबित किया जा सके. यही प्रयास आप और केजरीवाल का भी है कि किसानों के मुद्दे पर भाजपा को बैकफुट पर रखा जाए. उन्हें कोई ऐज नहीं लेने दी जाए. कथित तौर पर ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस स्ट्रेटजी के तहत वे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को 38 दिन हो जाने के बाद भी अनशन से उठाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट इस बारे में बार-बार निर्देश दे रहा है. हालांकि दिल्ली चुनावों में किसानों की कितनी भूमिका रहेगी इसे लेकर भी संशय है. क्योंकि दिल्ली के आसपास कुल मिलाकर लगभग 30 हजार के आसपास ही किसान हैं. जिनके वोट बहुत महत्व नहीं रखते लेकिन इस मुद्दे का पूरे देश में व्यापक महत्व है.
2. हम हितैषी- AAP किसानों के बैरी- उधर, भाजपा भी देशभर में किसानों के वोटों को देखते हुए दिल्ली में अपनी रणनीति की प्रीटेस्टिंग कर रही है. भाजपा साबित करने की कोशिश मे है कि दिल्ली में केजरीवाल और आतिशी ने कभी किसानों के हित में सही फैसले नहीं लिए. केजरीवाल इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ तो उठाते रहे, लेकिन काम नहीं किए. पिछले 10 साल से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन किसानों के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. शिवराज ने अपने पत्र में दिल्ली सरकार के किसानों की स्थिति को लेकर उदासीन रहने का आरोप लगाया है. उन्होंने किसानों के प्रति दिल्ली सरकार की असंवेदना को उभारने की कोशिश की है. भाजपा यह साबित करना चाहती है कि आम आदमी पार्टी चुनावों से पहले वादे तो बहुत करती है, लेकिन सरकार बनने के बाद उन वादों को लागू करने के लिए बहाने बनाने लगती है. भाजपा दिल्ली की जनता को यह मैसेज दे रही है कि केंद्र की कई कल्याणकारी योजनाओं को केजरीवाल सिर्फ अपने फायदे के लिए लागू नहीं कर रहे हैं.
3. दिल में दिल्ली, दिमाग में पंजाबः आम आदमी पार्टी का अपने दोनों रूलिंग राज्यों दिल्ली और पंजाब को लेकर फोकस बहुत क्लियर है. दोनों जगहों पर वह किसानों के समर्थन में खुद को मजबूत पोजीशन में रखने की कोशिश कर रही है. पंजाब में जहां किसान बहुत बड़ा वड़ा वोटर वर्ग है, उसके हर मुद्दे पर समर्थन जता कर किसानों को अपने पाले में रखना चाहते हैं. केजरीवाल कह भी रहे हैं कि पंजाब में जो किसान अनिश्चित अनशन पर बैठे हैं, भगवान उन्हें सलामत रखें. लेकिन, यदि उन्हें कुछ होता है तो इसके लिए बीजेपी सरकार जिम्मेदार होगी. वहीं भाजपा की दिक्कत है कि दिल्ली में वो लंबे समय से सत्ता से बाहर है. लोकसभा में तो उसे जबर्दस्त समर्थन मिलता है लेकिन विधानसभा में उसका वोट बैंक पिछले 40 सालों से 35 फीसदी के आसपास बना हुआ है. इसमें बढ़ोतरी नहीं हो रही है. साथ ही केजरीवाल के बरक्स कोई चेहरा भी बीजेपी के पास नहीं है. दोनों ही मामलों को लेकर भाजपा हर कदम बहुत फूंक-फूंककर रखना चाहती है. उसे किसी भी तरह अपना वोटबैंक बढ़ाना है. साथ ही केजरीवाल और आप की सरकार को अलोकप्रिय करने का कोई मौका नहीं छोड़ना है.
4. भाजपा का डर, दिल्ली के पंजाबी वोटबैंक पर न पड़े असर- बीजेपी की एक चिंता इस बात को लेकर भी है कि कहीं किसान आंदोलन की आंच दिल्ली तक भी ना आ पहुंचे. यहां अच्छी खासी पंजाबी आबादी रहती है. इसके अलावा हरियाणा से भी बहुत से लोग दिल्ली में रहते हैं. किसान आंदोलन में मुख्यतौर पर इन्हीं दो राज्यों के किसान दिखाई दे रहे हैं. बाकी राज्यों से समर्थन मिल रहा है. लेकिन सबसे ज्यादा सक्रियता इन्हीं दो राज्यों की है. फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव हैं. अपने 35 फीसदी फिक्स वोट बैंक के बावजूद भी भाजपा नेक टू नेक फाइट में पिछड़ रही है. नजदीकी मुकाबले में एक दो परसेंट वोट से भी सीट इधर से उधर हो जाती है. यही भाजपा की बड़ी चिंता है. पार्टी नहीं चाहती है कि किसान आंदोलन का कोई इमोशनल प्रभाव दिल्ली पर पड़े. जिस किले को वो लंबे समय से जीतने के लिए प्रयासरत है.
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल पिछले 38 दिनों से भूख हड़ताल पर हैं. उन्होंने कहा कि वह अपना विरोध जारी रखने के लिए गांधीवादी तरीके का पालन कर रहे हैं. वे किसी भी तरह की चिकित्सा सहायता भी नहीं ले रहे हैं. पंजाब-हरियाणा सीमा के खनौली और शंभू बॉर्डर पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी कई मांगें हैं जिनमें फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी सबसे प्रमुख है.