PHOTOS: अरहर की इन 5 किस्मों से मिलता है अच्छा उत्पादन, जानिए इसकी खेती के बारे में सब कुछ

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PHOTOS: अरहर की इन 5 किस्मों से मिलता है अच्छा उत्पादन, जानिए इसकी खेती के बारे में सब कुछ

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अरहर की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकतें हैं, क्योकिं प्रोटीन युक्त होने के कारण लगभग सभी घरो में अरहर की दाल को भोजन में शामिल किया जाता हैं. जिसके कारण घरेलू बाज़ार के साथ-साथ विदेशी बाज़ारों में भी इसकी मांग बनी रहेती हैं.  इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. अरहर की खेती महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश इन राज्यों में की जाती  हैं. जानिए अरहर की ऐसी ही 5 किस्मों के बारे में, जिनकी खेती से किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है. अरहर की खेती की काफी कम है, ऐसे में इसकी खेती देश के लिए लाभदायक है.

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पूसा 992 -
 
भूरे रंग का, मोटा, गोल और चमकदार दाने वाली इस किस्म को वर्ष 2005 में विकसित किया गया। लगभग 140 से 145 दिनों में यह पक कर तैयार हो जाते हैं. प्रति एकड़ भूमि से 6.6 क्विंटल फसल की पैदावार होती है. इसकी खेती सबसे ज्यादा  पंजाब , हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में की जाती है.

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आईपीए 203-
 

इस किस्म की खास बात ये है कि इस किस्म में बीमारियां नहीं लगतीं और इस किस्म की बुवाई करके फसल को कई रोगों से बचाया जा सकता हैं साथ में अधिक पैदावार भी प्राप्त कर सकते हैं. इसकी औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है. इस किस्म की अरहर की बुवाई जून महीने में कर देनी चाहिए.

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नरेंद्र अरहर 2 -

इस किस्म की बुवाई के लिए जुलाई का महीना सर्वोत्तम है. यह देर से पकने वाली किस्मों में शामिल है. बुवाई के 240 - 250 दोनों इसकी कटाई की जा सकती है. प्रति एकड़ खेत में इसकी खेती की जाए तो लगभग 12 से 13 क्विंटल फसल प्राप्त किया जा सकता है. 
 

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पूसा 9 -

वर्ष 2009 में इसे विकसित किया गया। इसकी बुवाई खरीफ के साथ रबी मौसम में भी की जा सकती है. यह देर से पकने वाली किस्मों में से एक है. इसे पहले ने 240 दिनों का समय लगता है. प्रति एकड़ जमीन से 8 से 10 क्विंटल फसल की उपज होती है.

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पूसा16-

 यह किस्म शीघ्र पकने वाली है, इसकी अवधि 120 दिन की होती हैं। इस फसल में छोटे आकार का  पौधा 95 सेमी से 120 सेमी लंबा होता है, इस किस्म की औसत उपज 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.

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