होली के मौके पर बाजार में कई तरह के रंग-बिरंगे गुलाल मिलते हैं. लेकिन राजस्थान में वन विभाग द्वारा तैयार किए गए हर्बल गुलाल की मांग सबसे ज्यादा है. यह गुलाल पूरी तरह प्राकृतिक है. यह गुलाल खास तरह के फूलों और पत्तियों से तैयार किया जाता है. इसमें कोई रंग या केमिकल नहीं मिलाया जाता. गुलाल त्वचा को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाता. इसलिए हर्बल गुलाल की मांग सबसे ज्यादा है.
होली को लेकर बाजार रंगीन होने लगा है. बाजार में तरह-तरह के रंग और पिचकारियां उपलब्ध हैं. दुकानें सज गई हैं. खरीदार भी अपने बच्चों के साथ खरीदारी करने बाजार पहुंच रहे हैं. इन सबके बीच राजस्थान में वन विभाग की ओर से हर्बल गुलाल तैयार किया गया है. इस गुलाल की मांग बाजार में उपलब्ध गुलाल से ज्यादा है. क्योंकि यह गुलाल प्राकृतिक फूलों से तैयार किया जाता है.
पहाड़ी इलाकों में सर्दियों के दौरान पेड़ों से पनाश के फूल गिरते हैं. उन फूलों को इकट्ठा करके गुलाल तैयार किया जाता है. इसके अलावा पेड़ों के पत्तों से भी गुलाल तैयार किया जाता है. वन विभाग पांच से छह रंगों में गुलाल तैयार करता है. इसमें नारंगी, हरा, पीला और केसरिया रंग शामिल हैं. हरा रंग का गुलाल नीम के पत्तों से तैयार किया जाता है.
वन विभाग के डीएफओ राजेंद्र हुड्डा ने बताया कि अलवर के आसपास के इलाकों में पेड़ों की ऐसी प्रजातियां हैं. जिनसे सर्दी के मौसम में पेड़ों से रंग-बिरंगे फूल झड़ते हैं. वनकर्मी इन फूलों को इकट्ठा करते हैं. सबसे पहले इन फूलों की पत्तियों को सुखाया जाता है. उसके बाद इन्हें पानी में उबालकर इनका बारीक पाउडर बनाया जाता है और उस पाउडर से गुलाल तैयार किया जाता है.
वन विभाग द्वारा तैयार किया गया गुलाल पूरी तरह हर्बल है. इसे रंग-बिरंगे फूलों से तैयार किया जाता है. इसके अलावा नीम की पत्तियों से भी हरे रंग का गुलाल तैयार किया जाता है. यह गुलाल लोगों को खूब पसंद आ रहा है. क्योंकि यह त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाता.
आंखों में जलन नहीं होती. साथ ही इस गुलाल को चेहरे पर लगाने से लाभ होता है. यह गुलाल शरीर पर फेस पैक का काम करता है. शहर में जगह-जगह काउंटर लगाकर गुलाल बेचा जा रहा है. वन विभाग के काउंटर पर 50 रुपये का पैकेट मिल रहा है. इसमें 250 ग्राम गुलाल होता है.
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि गुलाल गांव के महिला सहायता समूह की मदद से तैयार किया जाता है. इसका लाभ वन विभाग के अलावा महिलाओं को भी मिलता है. यह गुलाल सदियों पुरानी विधि से हाथ से तैयार किया जाता है.