उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के रहने वाले रवि प्रकाश मौर्य कभी भारत के पत्रकारिता में अपना जलवा दिखाया करते थे. उन्होंने पत्रकारिता का कोर्स भी किया और पत्रकारिता के क्षेत्र में काम भी कर रहा था. लेकिन उनके घर की मजबूरी और पिता की मृत्यु के बाद उनके लिए बहुत कुछ बदल गया. चूंकि वह अपने पिता के इकलौते बेटे थे, इसलिए वह घर लौट आए. उन्हें खेती-किसानी में काफी रुचि थी.
उन्होंने कृषि से जुड़ी पत्रिकाओं में भी काम किया. रवि प्रकाश मौर्य प्रयागराज के बहरिया के मंसूरपुर गांव के रहने वाले हैं. रवि प्रकाश का मानना था कि अब जब मैं इस क्षेत्र में आ गया हूं तो कुछ अलग करूं ताकि लोगों को फायदा हो और मुझे भी इस काम से फायदा हो. उन्होंने अपने खेतों में काले आलू उगाना शुरू किया. उन्होंने एक अनोखी खेती शुरू की जिसके कई फायदे हैं क्योंकि काले आलू आम आलू से कहीं ज्यादा फायदेमंद होते हैं.
दिल्ली में पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद वह एक अच्छे पत्रकार बनने में करियर तलाश रहे थे. लेकिन अब पत्रकारिता के साथ-साथ उन्होंने कृषि के क्षेत्र में एक नया आयाम शुरू किया है. साल 2016 में खेती की शुरुआत करने वाले रवि प्रकाश मौर्य अब अपना ज्यादातर समय अपने गांव में ही बिताते हैं. गांव के घर में उनकी पत्नी और तीन बेटियां अपनी मां के साथ रहती हैं. उनकी पत्नी एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका हैं और बाकी तीन बेटियां पढ़ाई कर रही हैं.
रवि प्रकाश मौर्य ने 10 साल तक मीडिया में काम किया है और मध्य प्रदेश में फीचर एडिटर रहते हुए उन्होंने फार्मिंग सप्लीमेंट का कार्यभार संभाला था. यहीं से उन्हें खेती से जुड़ी जानकारी मिली, जिसके बाद जब पिता की मौत के बाद वह घर लौटे तो उन्होंने खेती की ओर अपना कदम बढ़ा दिया. अब रवि प्रकाश मौर्य अपने खेतों में चावल, गेहूं, टमाटर, नाइजर बीज, हल्दी और अदरक और आलू उगा रहे हैं.
बदलते दौर में जब कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों की संख्या का ग्राफ भी बढ़ा है, तो लोगों ने अपने दैनिक खानपान पर ध्यान देना शुरू कर दिया है. जिसके चलते उनके खानपान में पारंपरिक खाद्यान्न व कई रोग प्रतिरोधक फसलें शामिल हो गई हैं. जिसमें रासायनिक खाद आदि का कम प्रयोग हो रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए अब किसान भी अपनी खेती में नए प्रयोग करने की ओर बढ़ चले हैं.
रवि प्रकाश मौर्य लगातार काला चावल, काला गेहूं व काले आलू की खेती करते आ रहे हैं. पिछले कुछ सालों से वह अपने खेतों में कलौंजी, काली हल्दी, काला टमाटर, काला प्याज आदि भी लगा रहे हैं. काली फसलों के प्रति उनके उत्साह ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई है.
रवि प्रकाश मौर्य के मुताबिक काली फसलों के जरिए उनका मिशन और जुनून दोनों ही कैंसर के खिलाफ हैं. इतना ही नहीं ये फसलें एंथोसायनिन से भरपूर होती हैं और इन सभी में एंटी-ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं. इस वजह से ये कैंसर, डायबिटीज आदि कई बीमारियों में काफी फायदेमंद है. ये शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स को डिटॉक्सीफाई करने का भी काम करता है. सबसे खास बात ये है कि काले आलू आम आदमी की सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद हैं. अगर सामान्य आलू का भाव 35 रुपये प्रति किलो है तो ये काला आलू करीब 80 रुपये प्रति किलो में मिल रहा है. ये काला आलू गहरे बैंगनी रंग का होता है और इसका रंग दो हिस्सों में बंटने के बाद दिखता है.
रवि प्रकाश मौर्य के मुताबिक एक किलो कंद से करीब 15 किलो आलू निकलते हैं. गोबर की खाद का इस्तेमाल कर उगाए गए आलू पर उनका करीब 6,000 रुपए खर्च आता है और उत्पादन करीब 90 कुंतल प्रति बीघा होता है. जो सामान्य आलू से थोड़ा कम है. काली फसलों में काला चावल, काला गेहूं, काले आलू, काले टमाटर, कलौंजी, काला प्याज, काला लहसुन (भुना हुआ), काली हल्दी, काली अदरक आदि शामिल हैं.
ये सभी फसलें कैंसर, डायबिटीज, मोटापा जैसी बीमारियों में काफी फायदेमंद हैं. ये फसलें और उनसे जुड़े उत्पाद खासकर काला आलू कई सालों से देश के 15 से ज्यादा राज्यों में लोगों तक पहुंच रहा है. आज तक रवि प्रकाश मौर्य हजारों किसानों को इसके बीज दे चुके हैं. इतना ही नहीं रवि प्रकाश मौर्य किसानों को काली खेती के बारे में जागरूक भी कर रहे हैं और इसके फायदे और नुकसान के बारे में भी बता रहे हैं.