सुपौल की धरती पर कोसी नदी दो चेहरे लेकर आती है. इसका एक चेहरा विनाश का है. जब यह बाढ़ बनकर जिंदगियां तबाह कर देती है. वहीं, इसका दूसरा चेहरा वरदान का भी है- जब यह अपने पीछे रेत छोड़ जाती है. इस समय किसान इसमें- तरबूज, खीरा, कद्दू और लौकी उगा रहे हैं और लाखों की कमाई कर रहे हैं.
बाढ़ की विकराल लहरों से तबाही का मंजर रचाने वाली कोसी, बाढ़ उतरते ही रोजगार, हरियाली और उम्मीद दे जाती है. कोसी नदी की बाढ़ जब शांत होती है तो यह अपने पीछे दूर-दूर तक रेत का अथाह अंबार छोड़ जाती है और सैकड़ों-हजारों किसानों के लिए वरदान बन जाती है.
नेपाल के कोसी बैराज से लेकर कटिहार के कुरसेला तक फैले क्षेत्र में सुपौल, सहरसा, मधेपुरा समेत दर्जनों जिलों के हजारों किसान कोसी की रेत पर लाखों एकड़ में खेती कर रहे हैं और लाखों की आमदनी कर रहे हैं. हालांकि, ये खुशी अब कुछ ही दिनों की मेहमान है, क्योंकि जून से बारिश का मौसम फिर दस्तक देने वाला है और कोसी फिर से अपना बाढ़ रुपी रौद्र रूप दिखा सकती है.
वर्तमान में कोसी की इस रेत में तरबूज, खीरा, ककड़ी, कद्दू जैसी सब्जियां और फलों की खेती हो रही है और कई किसानों की आय का साधन बनी हुई है. यह बानगी इंडो-नेपाल सीमा पर बसे सुपौल जिले के भगवानपुर गांव की है. कोसी के बीचो-बीच फैले बालू के मैदान पर दूर-दूर तक हरियाली फैली हुई है.
सुपौल के एक किसान सुशील कुमार ने बताया कि बाढ़ लौटने के बाद जहां तक नजर जाती है, वहां तक रेत पर हजारों एकड़ में तरबूज, खीरा, ककड़ी, कद्दू, लौकी जैसी फसलों की खेती हो रही है. सैकड़ों लोगों को इससे रोजगार मिला है और लाखों की आमदनी हो रही है.
सुशील कुमार ने बताया कि उन्होंने कई एकड़ में तरबूज और लौकी की खेती की है. उनकी उपज को सिलीगुड़ी, पटना और कोलकाता की मंडियों में भेजा जा रहा है. इलाके के मजदूरों, गाड़ी वालों और किसानों को इस रेत खेती से रोजगार मिल रहा है और अच्छी कमाई हो रही है. ऐसे हजारों किसान हैं, जो रेत पर सब्जियां उगा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के बागपत से आए एक किसान ने बताया कि वे लोग रेत पर खेती के अनुभवी हैं. कोसी घूमने आए तो यहां की रेत देख खेती शुरू की. उनके देखादेखी सुपौल सहित कई जिलों के किसान भी रेत पर खेती करके कमाई कर रहे हैं. हालांकि, अब जल्द ही मॉनसून आने वाला है और कोसी में फिर से बाढ़ का तांडव देखने को मिलने वाला है. (रामचंद्र मेहता की रिपोर्ट)